Monday, May 5, 2025
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भाषा और गरीबी की सीमाओं को तोड़कर आईआईएम के प्रोफेसर बने रामचन्द्रन

कोच्चि : केरल के रहने वाले रंजीत रामचंद्रन ने फेसबुक पर अपने घर की तस्वीर पोस्ट की है और उस फोटो के नीचे लिखा है, ‘आईआईएम के एक प्रोफेसर का जन्म यहीं हुआ था।’ दरअसल, 28 साल के रामचंद्रन का पिछले दिनों आईआईएम- रांची में प्रफेसर के तौर पर चयन हुआ है। उनकी संघर्ष भरी कहानी काफी लोगों को प्रभावित कर रही है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, रंजीत रामचंद्रन इन दिनों बेंगलुरु के क्रिस्ट यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। शनिवार को उन्होंने केरल के अपने घर की एक तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर की और लिखा, ‘आईआईएम के प्रोफेसर का जन्म इसी घर में हुआ है।’
प्लास्टिक और ईंट से बना ये छोटा सा घर किसी झुग्गी की तरह दिखता है। उस झोपड़ी पर एक तिरपाल टंगा नजर आ रहा है जिसमें से बारिश के दिनों में पानी झोपड़ी में टपकता था। रंजीत रामचंद्रन के पिता रवींद्रन टेलर का काम करते हैं। मां मनरेगा में मजदूर हैं। रामचंद्रन अपने माता-पिता और तीन भाई-बहनों के साथ 400 वर्ग फीट के घर में रहते हैं। प्रतिकूल परिस्थितियों में भी किया काम
पहरेदार से लेकर मशूहर संस्थान आईआईटी से स्नातक करने और अब रांची में आईआईएम में सहायक प्रफेसर बनने तक का 28 वर्षीय रंजीत रामचंद्रन का जीवन का सफर कई लोगों को जिंदगी में प्रतिकूल परिस्थतियों से संघर्ष करने की प्रेरणा देता है।
पहरेदार का भी किया काम
केरल के वित्त मंत्री टी एम थॉमस इसाक ने फेसबुक पर रामचंद्रन को बधाई दी और कहा कि वह सभी के लिए प्रेरणापुंज है। वह सोशल मीडिया पर ‘रंजीत आर पानाथूर’ नाम से जाने जाते हैं। रामचंद्रन ने जब पायस टेंथ कॉलेज से अर्थशास्त्र में डिग्री हासिल की तब वह कसारगोड़ के पानाथूर में बीएसएनएल टेलीफोन एक्सचेंज में पहरेदार का काम कर रहे थे।
भाषा के चलते छोड़नी पड़ी थी पढ़ाई
रामचंद्रन ने लिखा, ‘मैं दिन में कॉलेज जाता था और रात के समय टेलीफोन एक्सचेंज में काम करता था। स्नातक करने के बाद आईआईटी मद्रास में दाखिला मिला लेकिन उन्हें बस मलयालम भाषा आने के कारण मुश्किलें आईं। निराश होकर उन्होंने पीएचडी छोड़ देने का फैसला किया लेकिन उनके गाइड सुभाष ने उन्हें ऐसा नहीं करने के लिए मना लिया।’
‘युवाओं को प्रेरित करने के लिए लिखी थी पोस्ट’
प्रोफेसर ने लिखा, ‘मैंने संघर्ष करने का फैसला किया और अपना सपना साकार करने की ठानी। पिछले ही साल पीएचडी पूरी की। पिछले दो महीने से बेंगलुरु के क्राईस्ट विश्वविद्यालय में सहायक प्रफेसर रहे। मैंने कभी नहीं सोचा था कि यह पोस्ट फैल जाएगी। मैंने इस उम्मीद से अपने जीवन की कहानी पोस्ट की कि इससे कुछ अन्य लोगों को प्रेरणा मिलेगी। मैं चाहता हूं कि सभी अच्छा सपना देखें और उसे पाने के लिए संघर्ष करें।’

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