कोलकाता । भारतीय भाषा परिषद में युवा लेखन कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस नयी पहल से इसमें कविता, कहानी, साक्षात्कार विधि, समीक्षा, रपट, प्रूफ रीडिंग आदि की विधिवत शिक्षा दी जाएगी| इसमें जोर रचना पाठ और संवाद पर होगा| उद्घाटन करते हुए परिषद अध्यक्ष डॉ. कुसुम खेमानी ने कहा कि युवा लेखन ही हिंदी का भविष्य है| परिषद में तीन महीने के इस पाठ्यक्रम से सैकड़ों युवा प्रतिभाओं को मार्गदर्शन मिलेगा और भाषा सुधार के साथ उनकी रचनाओं में परिपक्वता आएगी| परिषद के निदेशक और वरिष्ठ लेखक डॉ. शंभुनाथ ने कहा कि युवा लेखन कार्यशाला कोलकाता और आसपास के जिलों की युवा प्रतिभाओं के लिए एक प्रेरक प्रयोगशाला का काम करेगा| कल्पनाशीलता को बचाने के लिए रचनात्मकता को बचाना जरूरी है| इसमें कविता, कहानी, साक्षात्कार विधि, समीक्षा, रपट, प्रूफ रीडिंग आदि की विधिवत शिक्षा दी जाएगी| इसमें जोर रचना पाठ और संवाद पर होगा|
उद्बोधन सत्र में डॉ अवधेश प्रसाद सिंह ने कहा कि एक लेखक के लिए पढ़ना बहुत जरूरी है| पढ़ने से बुद्धि और ज्ञान का विकास होगा जो रचनात्मक लेखन में सहयोगी होगा| मृत्युंजय ने कहा कि एक लेखक को अपनी संगति का ध्यान रखना पड़ेगा कि हम किससे मिलजुल रहे हैं| अच्छी संगति से रचनात्मकता में निखार आती है| प्रो. संजय जायसवाल ने कहा कि लिखते से रहने से अपने भीतर का आदमी बड़ा बनता है| प्रियंकर पालीवाल ने कहा कि इस दौड़ते समय में स्वयं पर नियंत्रण रखने की जरूरत है| ठहर कर सोचने की जरूरत है| यह भी देखने की जरूरत है कि हमारा समय आखिर कहां जाया हो रहा है| उन्होंने कहा कि बिना पढ़े रह पाना कितना बड़ा विरोधाभास है| साहित्य नहीं पढ़ना मतलब मानवता की सीमा से दूर होना है| युवा कवियों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया| कार्यक्रम का संयोजन और संचालन रेशमी सेनशर्मा, तृषान्विता बनिक और राजेश सिंह ने किया| धन्यवाद ज्ञापन साहित्यकार मृत्युंजय ने दिया|
उद्बोधन सत्र में डॉ अवधेश प्रसाद सिंह ने कहा कि एक लेखक के लिए पढ़ना बहुत जरूरी है| पढ़ने से बुद्धि और ज्ञान का विकास होगा जो रचनात्मक लेखन में सहयोगी होगा| मृत्युंजय ने कहा कि एक लेखक को अपनी संगति का ध्यान रखना पड़ेगा कि हम किससे मिलजुल रहे हैं| अच्छी संगति से रचनात्मकता में निखार आती है| प्रो. संजय जायसवाल ने कहा कि लिखते से रहने से अपने भीतर का आदमी बड़ा बनता है| प्रियंकर पालीवाल ने कहा कि इस दौड़ते समय में स्वयं पर नियंत्रण रखने की जरूरत है| ठहर कर सोचने की जरूरत है| यह भी देखने की जरूरत है कि हमारा समय आखिर कहां जाया हो रहा है| उन्होंने कहा कि बिना पढ़े रह पाना कितना बड़ा विरोधाभास है| साहित्य नहीं पढ़ना मतलब मानवता की सीमा से दूर होना है| युवा कवियों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया| कार्यक्रम का संयोजन और संचालन रेशमी सेनशर्मा, तृषान्विता बनिक और राजेश सिंह ने किया| धन्यवाद ज्ञापन साहित्यकार मृत्युंजय ने दिया|