कोलकाता । भारतीय भाषा परिषद में संस्थापक दिवस गत एक मई 2022 को मनाया गया जिसमें कोलकाता की अधिकतर संस्थाओं के प्रतिनिधियों और सदस्यों ने हिस्सा लिया। प्रथम सत्र में उद्घाटन समारोह में भारतीय भाषा परिषद की अध्यक्ष डॉ कुसुम खेमानी ने दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का उद्घाटन किया एवं वक्तव्य रखते हुए भागीरथ कानोडिया और सीताराम सेकसरिया के अमूल्य योगदान को स्मरण किया । इस अवसर पर प्रो दिलीप शाह, डॉ शंभुनाथ, डॉ. राज्यश्री , धनश्याम सुगला आदि गणमान्य लोगों की उपस्थिति रही ।
कार्यक्रम के द्वितीय सत्र में साहित्यिक अदालती चर्चा में ग्यारह संस्थाओं ने शिरकत की। यह पहला अवसर था कि कोलकाता में साहित्य को एक अदालती चर्चा के माध्यम से सामने रखा गया। पूरे मंच को अदालत का स्वरूप दिया गया था, जिसमें न्यायपीठ के रूप में उपस्थित थे छपते- छपते के संपादक विश्वंभर नेवर, कलकत्ता विश्वविद्यालय की हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. राजश्री शुक्ला, भवानीपुर एजुकेशन सोसाइटी के डीन दिलीप शाह। न्यायाध्यक्ष के रूप में उपस्थित थे भारतीय भाषा परिषद के निदेशक और वागर्थ के संपादक डॉ. शंभुनाथ।
अदालती चर्चा का विषय था ‘संस्थान की दृष्टि और सृष्टि’। चर्चा शुरू होने से पहले इस पूरे परिकल्पना के कर्णधार परिषद के मंत्री डॉ. केयूर मजमुदार ने अतिथियों का स्वागत किया। रवि प्रताप सिंह ने इस अदालती चर्चा की रूपरेखा बताई। सबसे अद्भुत बात यह थी कि इस परिचर्चा में कोलकाता के 11 संस्थाओं ने हिस्सा लिया।
सहभागी संस्थानों में राजस्थानी प्रचारिणी सभा से रतन लाल शाह, साहित्यिकी से कुसुम जैन, परिवार मिलन से अजीत बच्छावत, भारत विकास परिषद से राजीव कुमार अग्रवाल, रचनाकार से सुरेश चौधरी, संस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन से संजय जायसवाल, लिटिल थेस्पियन से उमा झुनझुनवाला, भारत जैन महामंडल से अंजू सेठिया, रंगशिल्पी से प्लाबन बसु और शब्दाक्षर से रवि प्रताप सिंह ने अपना वक्तव्य दिया। रचनाकार के संस्थापक सुरेश चौधरी ने कहा कि वह सिर्फ साहित्य का प्रचार – प्रसार ही नहीं करते बल्कि कई अच्छी पुस्तकों का प्रकाशन भी करते रहते हैं। उनके कार्यों की गवाही पलाश चतुर्वेदी और रावेल पुष्प ने दी।
रतन लाल शाह ने संस्थान की दृष्टि और सृष्टि विषय पर बात करते हुए कहा कि उनकी संस्थान का लक्ष्य राजस्थानी भाषा के प्रति सम्मान है, राजस्थानी भाषा का प्रचार- प्रसार है। उनके संस्थान के कार्यों की गवाही घनश्याम सुगला ने दी। कुसुम जैन ने कहा कि उनका काम मुख्य तौर से महिलाओं में साहित्यिक कार्यों के प्रति रुचि बढ़ाना है। सविता पोद्दार ने साहित्यिकी की ओर से गवाही दी। उमा झुनझुनवाला ने कहा कि कला और संस्कृति का विकास उनका मुख्य लक्ष्य है। सिर्फ हॉल में ही नहीं, खुले आँगन में भी रंगमंच का कार्य किया जा सकता है। उन्होंने लिटिल थेस्पियन के 28 वर्षों तक अका लेखा-जोखा भी पेश किया जिसकी गवाही रावेल पुष्प ने दी।
रंगशिल्पी के प्लावन बसु ने कहा कि आज अगर हम इस मंच पर हैं तो इसकी वजह थिएटर ही है। उन्होंने इस बात पर अफसोस प्रकट किया कि आज थिएटर देखने वाले दर्शकों की संख्या बहुत ही नगण्य हो गई है। हमें बहुत मुश्किल परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है। तरुण नाथ गवाह रहे। सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन के संजय जायसवाल अपने संस्थान के कई कार्यक्रमों की चर्चा की और कहा कि मिशन की कोशिश इस प्रकार के संवाद स्थापित करने की होती है जहाँ सब कुछ सुंदर और सुसंस्कृति को बढ़ावा मिले। उनके कार्यों की गवाही पूजा सिंह ने दी।
न्यायपीठ के सदस्य दिलीप शाह ने नाट्यकर्मियों को अपने कॉलेज भवानीपुर एजुकेशन सोसाइटी में आकर वहांँ के विद्यार्थियों के साथ काम करने का प्रस्ताव किया।
राजीव कुमार अग्रवाल ने अपनी संस्था, जो 1963 में स्थापित हुई थी, के बारे में बताया कि आज पूरे भारत में चौदह सौ शाखाएँ हैं और पैंसठ हजार परिवार इस संस्था से जुड़े हुए हैं। विवेकानंद के आदर्श को लेकर उनकी संस्था चलती है। संस्थान को अर्जुन की दृष्टि रखनी चाहिए, ताकि कार्य सिद्ध हो सके। आज लोग अर्थ दान तो दे देते हैं लेकिन समय दान नहीं देते। अमित अम्बस्ट ने गवाही दी।
रवि प्रताप सिंह ने अपनी संस्था शब्दाक्षर के विषय में बताया कि 2012 में स्थापित संस्था आज बीस हजार लोगों से जुड़ी हुई है। 52 देशों के लोग ऑनलाइन इसमें शामिल हैं। उनके कार्यों की गवाही दयाशंकर मिश्र ने दी।
अंजू सेठिया ने भारत जैन महामंडल के कार्यों का लेखा-जोखा पेश किया। सरोज भंसाली ने गवाही दी। अजीत बछावत ने परिवार मिलन के बारे में बताया कि वह कई सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं, नेत्र चिकित्सा शिविर, मानस महोत्सव आदि। सौमित्र आनंद गवाह रहे।
न्यायपीठ से विश्वंभर नेवर, प्रो दिलीप शाह एवं कलकत्ता विश्वविद्यालय की हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो राजश्री शुक्ला ने अपना न्याय सुनाया और संस्थानों के प्रति अपने दृष्टिकोण को रखा। न्यायाध्यक्ष डॉ शंभुनाथ ने कई संस्थानों के कार्यों की सराहना की और आगे बढ़ने की सलाह दी। अदालती कार्यवाही की मध्यस्थता की भूमिका में डॉ. वसुंधरा मिश्र, डॉ. केयूर मजमुदार और डॉ. अल्पना सिंह रहे जिन्होनें अपनी भूमिका का निर्वहन किया। डॉ. केयूर मजमुदार ने कई सवालात गवाहों के सामने पेश किए। डॉ. शुभ्रा उपाध्याय ने धन्यवाद ज्ञापन दिया।
कुल मिलाकर यह कार्यक्रम सबके समक्ष एक नया कार्यक्रम था। इसकी परिकल्पना नयी और अनोखी थी। मंच को एक अदालती स्वरूप दिया गया था जो वक्ताओं के साथ-साथ दर्शकों को भी बहुत मनभावन लगा। मंच से बताया गया कि मासिक अदालती चर्चा में हर माह किसी न किसी नए – नए विषयों पर चर्चा जारी रहेगी।
संस्थान के प्रतिनिधियों को परिषद के वित्त मंत्री घनश्याम सुगला एवं सदस्य अमित मूंदड़ा ने सभी गणमान्य अतिथियों को भारतीय भाषा परिषद का मोमेंटो देकर सम्मानित किया। कार्यक्रम के संयोजकों में अमित मूंदड़ा, सुशील कान्ति, अमृता चतुर्वेदी और मीनाक्षी दत्ता की सक्रिय भागीदारी रही।