नयी दिल्ली : केंद्र सरकार का सड़कों के निर्माण में प्लास्टिक कचरे का प्रयोग सफल रहा है। विभिन्न सड़क निर्माण एजेंसियों ने अब तक एक लाख किलोमीटर से अधिक सड़कें प्लास्टिक कचरे से बनाई हैं। यह अधिक टिकाऊ, सस्ती और गड्ढा रहित हैं।
दशकों बाद प्लास्टिक कचरे को ठिकाने लगाने की राह मिल गई है। प्लास्टिक से पर्यावरण को नुकसान पहुंचने का खतरा कम होगा। इसके खाने से पशुओं की जान नहीं जाएगी और कूड़ा बीनने वालों की अतिरिक्त कमाई होगी। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने जुलाई 2016 में सड़क निर्माण में ठोस और प्लास्टिक कचरे का इस्तेमाल करने की घोषणा की थी।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि पायलट प्रोजेक्ट के तहत 10 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्ग में 10 फीसदी प्लास्टिक कचरे का इस्तेमाल किया गया। सेंटर रोड रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीआरआरआई) द्वारा गुणवत्ता और क्षमता के अध्ययन के बाद जनवरी 2017 में राष्ट्रीय राजमार्गों, राज्य राजमार्ग, जिला सड़कें, नगर निगम, नगर निकाय आदि सड़कों निर्माण में 10 फीसदी प्लास्टिक कचरे के प्रयोग करने के आदेश जारी हुए।
अधिकारी ने बताया कि देश के 11 राज्यों में एक लाख किलोमीटर सड़कें बन चुके हैं और चालू वित्त वर्ष में यह आंकड़ा दो गुना बढ़ेगा। असम में इस साल पहली बार राष्ट्रीय राजमार्गों में एनएचएआईडीसीएल प्लास्टिक कचरे का प्रयोग शुरू हो गया है। इंडियन रोड कांग्रेस (आईआरसी) ने कोड ऑफ प्लास्टिक के नए मानक नवंबर 2013 में तैयार किए थे। प्लास्टिक कचरे को सड़क निर्माण में इस्तेमाल करने का यह विश्व का यह पहला कोड ऑफ प्लास्टिक है।
270 किलोमीटर लंबे जम्मू-कश्मीर राष्ट्रीय राजमार्ग में प्लास्टिक का कचरा मिलाया गया। नोएडा सेक्टर 14ए में महामाया फ्लाइओवर तक सड़क निर्माण में छह टन प्लास्टिक कचरा लगा। दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस वे के यूपी गेट के पास दो किमी सड़क के लिए 1.6 टन प्लास्टिक कचरा लगा। दिल्ली के धौलाकुआं से एयरपोर्ट जाने वाले एक किलोमीटर राजमार्ग में प्लास्टिक कचरे का इस्तेमाल हुआ।
इन जगहों पर भी चल रहा है निर्माण
चेन्नई, पुणे, जमशेदपुर, इंदौर, लखनऊ आदि शहरों में प्लास्टिक कचरे की सड़कें बनाई जा रही हैं। सड़क परिवहन मंत्रालय की पांच लाख और अधिक आबादी वाले शहरी क्षेत्रों में 50 किलोमीटर के दायरे में प्लास्टिक कचरे के लिए कलेक्शन सेंटर बनाने की योजना है।
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