प्रेम की पीर के कवि घनानन्द की कुछ रचनाएँ

घनानन्द
  1. अति सूधो सनेह को मारग है जहाँ नेकु सयानप बाँक नहीं।
    तहाँ साँचे चलैं तजि आपनपौ झिझकैं कपटी जे निसाँक नहीं॥
    घनआनंद प्यारे सुजान सुनौ यहाँ एक ते दूसरो आँक नहीं।
    तुम कौन धौं पाटी पढ़े हौ लला, मन लेहु पै देहु छटाँक नहीं॥

2. प्रेम को महोदधि अपार हेरि कै, बिचार,
बापुरो हहरि वार ही तैं फिरि आयौ है।
ताही एकरस ह्वै बिबस अवगाहैं दोऊ,
नेही हरि राधा, जिन्हैं देखें सरसायौ है।
ताकी कोऊ तरल तरंग-संग छूट्यौ कन,
पूरि लोक लोकनि उमगि उफ़नायौ है।
सोई घनआनँद सुजान लागि हेत होत,
एसें मथि मन पै सरूप ठहरायौ है॥

3.

प्रीतम सुजान मेरे हित के / घनानंद

कवित्त

कैसे रहै प्रान जौ अनखि अरसायहौ।
तुम तौ उदार दीन हीन आनि परयौ द्वार
सुनियै पुकार याहि कौ लौं तरसायहौ।
चातिक है रावरो अनोखो मोह आवरो
सुजान रूप-बावरो, बदन दरसायहौ।
बिरह नसाय, दया हिय मैं बसाय, आय
हाय ! कब आनँद को घन बरसायहौ।। 12 ।।

4.

वहै मुसक्यानि, वहै मृदु बतरानि, वहै

वहै मुसक्यानि, वहै मृदु बतरानि, वहै
लड़कीली बानि आनि उर मैं अरति है।
वहै गति लैन औ बजावनि ललित बैन,
वहै हँसि दैन, हियरा तें न टरति है।
वहै चतुराई सों चिताई चाहिबे की छबि,
वहै छैलताई न छिनक बिसरति है।
आनँदनिधान प्रानप्रीतम सुजानजू की,
सुधि सब भाँतिन सों बेसुधि करति है।।

शुभजिता

शुभजिता की कोशिश समस्याओं के साथ ही उत्कृष्ट सकारात्मक व सृजनात्मक खबरों को साभार संग्रहित कर आगे ले जाना है। अब आप भी शुभजिता में लिख सकते हैं, बस नियमों का ध्यान रखें। चयनित खबरें, आलेख व सृजनात्मक सामग्री इस वेबपत्रिका पर प्रकाशित की जाएगी। अगर आप भी कुछ सकारात्मक कर रहे हैं तो कमेन्ट्स बॉक्स में बताएँ या हमें ई मेल करें। इसके साथ ही प्रकाशित आलेखों के आधार पर किसी भी प्रकार की औषधि, नुस्खे उपयोग में लाने से पूर्व अपने चिकित्सक, सौंदर्य विशेषज्ञ या किसी भी विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें। इसके अतिरिक्त खबरों या ऑफर के आधार पर खरीददारी से पूर्व आप खुद पड़ताल अवश्य करें। इसके साथ ही कमेन्ट्स बॉक्स में टिप्पणी करते समय मर्यादित, संतुलित टिप्पणी ही करें।