2022 का यह अंतिम महीना है और यह समय है गुजरे दिनों को देखने का..। क्या देखा और क्या सीखा हमने…यह साल तो युद्ध और हिंसा की वीभत्स तस्वीरें दिखाते हुए ही बीता है । बहुत कुछ बदला है, बहुत कुछ नया हुआ है मगर इस नयेपन के बीच हमारे हिस्से क्या आया और हम आने वाली पीढ़ी को क्या देने जा रहे हैं, यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है । इस साल का अंत एक दिल दहला देने वाली घटना के साथ हो रहा है । श्रद्धा और आफताब को लीजिए क्या इस तरह की किसी भी नृशंस घटना को और उसके पीछे झाँकिए तो पता चलता है कि हमने हमारे आस – पास की दुनिया को कैसा बना दिया है। ऐसी विकृत मानसिकता कहाँ से आती है, हम अपने बच्चों को क्या सिखा रहे हैं और क्या दे रहे हैं…इस पर हमें सोचने की जरूरत है । कम से कम जो समाज मानवता, सहिष्णुता की बात करता है, उस समाज को तो अपने बचपन का इतना ध्यान तो रखना ही चाहिए था…क्या इस तरह की विकृत मानसिकता एक दिन की देन है…नहीं..और इसका समाधान क्या है ? हम यह कैसी दुनिया बना रहे हैं जहाँ आपसी सम्मान, सौहार्द और भावनाओं का कोई मोल ही नहीं है ?
युवाओं को दोष देकर अपनी जिम्मेदारी से मुँह नहीं मोड़ा जा सकता । हमने उनके हिस्से के अधिकार और सम्मान का आधार उनको मिलने वाले मोटे पैकेज के अनुसार तय किया और यह देखे या सोचे बिना कि इस पैकेज के नाम पर हम उनकी गलतियों को नजरअंदाज करते रहे हैं क्योंकि उस पैकेज का लाभ हमें मिलता रहा है । हमने स्वतन्त्रता और स्वच्छंदता का अन्तर खुद मिटाया है…आधुनिकता के नाम पर शराब, धोखा, व्याभिचार…हर एक चीज को स्वीकार किया है और उसे अपनी जिन्दगी में जगह दी । बोया पेड़ बबूल का…आम कहाँ से होय..बच्चों को सब कुछ देने का मतलब उनकी गलतियों को नजरअंदाज करना, उनको अपना स्टेटस सिंबल बनाना नहीं होता । आप समझिए कि ऐसा क्यों है कि वह आपसे बात नहीं करते..बदलाव की जरूरत दोनों को है और जब दोनों साथ आएंगे…तभी नया सूरज उगेगा ।