नयी दिल्ली : बुंदेलखंड के बांदा जिले के जखनी गांव को नीति आयोग ने जलग्राम का माॅडल घोषित किया है। इसी की तर्ज पर जल संकट से जूझ रहे देश के 1030 गाँवों को जखनी जैसा जलग्राम बनाने की भी घोषणा की गयी है। कारण, यहाँ ग्रामीणों ने खेत की मेड़-मेड़ पर पेड़ लगाकर गाँव को हराभरा बना दिया है। इससे गाँव से परिपूर्ण बन गया है। अब तालाब और कुएं बारह महीने लबालब रहते हैं। खेत लहलहा रहे हैं और गाँव का तापमान भी आसपास के इलाकों के मुकाबले कम हो गया है। इस तरह सूखे से जूझ रहे बुंदेलखंड के बांदा जिले का जखनी गांव देशभर के लिए मिसाल बना है। जखनी ने जिस तरह खुद को बदला, उसका अध्ययन करने इजराइल के कृषि वैज्ञानिक, नेपाल के साथ ही तेलंगाना, देवास (मप्र), महाराष्ट्र और बांदा विश्वविद्यालय के छात्र आ रहे हैं।
पूर्व राष्ट्रपति एपीजे कलाम ने तकनीक बताई थी
जखनी को पानी से परिपूर्ण बनाने के नायक उमाशंकर पांडेय कहते हैं, वर्ष 2005 में दिल्ली में जल और ग्राम विकास को लेकर एक कार्यशाला हुई थी। उसमें तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने बिना पैसे और बिना तकनीक खेत पर मेड़ बनाने की बात कही थी। हमारे गाँव में कोई किसान ऐसा नहीं कर रहा था। इसलिए मैंने फावड़े से अपने पाँच एकड़ खेत की मेड़ बनाई और पानी को रोका। नवम्बर में धान, दिसंबर में गेहूं और अप्रैल में दाल-सब्जी की फसलें लीं। पहले पांच किसानों ने अनुसरण किया, फिर 20 किसान आगे आए।
खेतों में बनाए छोटे कुएं, पाँच फीट पर मिल रहा पानी
जल शक्ति मंत्रालय द्वारा दिल्ली में आयोजित छठे भारत जल सप्ताह में आए उमाशंकर ने बताया कि मेड़ बनाने से आठ महीने खेत में पानी रहता है। बाकी चार महीने नमी बनी रहती है। मिट्टी की उर्वरक शक्तियां, खनिज-लवण बहने से बच जाते हैं। इससे भूजल स्तर बढ़ा और किसान मनपसंद फसल ले पाए। गांव के कुओं में पांच फीट पर ही पानी मिल रहा है। सूखे के चलते शहर पलायन कर गए 2000 युवा गाँव लौट आए हैं।