कोयंबटूर : कोयंबटूर के सीरानैकेन पलायम की आर प्रीति को अपनी पढ़ाई बीच में छोड़नी पड़ी क्योंकि उसके परिवार के पास स्कूल फीस भरने के लिए पैसे नहीं थे। प्रीति के माता-पिता पेशे से मजदूर हैं। महामारी और लॉकडाउन में उन्हें काम नहीं मिला और बच्ची की पढ़ाई छूट गई। प्रीति के घर में बिजली भी नहीं है, दो वक्त का पेट भर खाना बहुत मुश्किल से जुट पाता है, लेकिन कबड्डी खेलते समय प्रीति के दिमाग में ये बातें नहीं आती हैं।
प्रीति ने पिछले महीने नेपाल में आयोजित एक टूर्नामेंट में लड़कियों की कबड्डी टीम का नेतृत्व किया। इससे पहले टीम ने राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता जीती थी। उनके पास नेपाल जाने के लिए रुपये नहीं थे। चूंकि यह सरकारी कार्यक्रम नहीं था, इसलिए उन्हें प्रायोजकों की तलाश करनी पड़ी। टीम के कोच जी सतीश कुमार ने कुछ लोगों से मदद ली और बाकी अपनी जेब से रुपये खर्च करके लड़कियों की टीम नेपाल भेजी, जहां उन्हें कामयाबी मिली।
छूट गयी पढ़ाई
प्रीति ने कहा, ‘पिछले साल मैंने कॉलेज जॉइन किया था, लेकिन ऑनलाइन कक्षाएं अटैंड करने के लिए मेरे पास मोबाइल नहीं था। मेरी पढ़ाई यहीं से बंद हो गई। अब मैंने फिर से दाखिला ले लिया है लेकिन मुझे आगे सेमेस्टर फीस देनी है, जो मेरे पास नहीं है। खेल कठिनाइयों को भूलने में मदद करता है। मैं पिछले छह साल से खेल रही हूं और सारी मुश्किलों का सामने कर रही हूं।’
पिता की मौत, मां ने पढ़ाने के लिए 5000 रुपये लिए उधार
प्रीती की टीम की साथी सी कीर्तना 11वीं में पढ़ती है। उसने कहा कि एक साल पहले उसके पिता का निधन हो गया। उसकी मां अपने चार बच्चों की परवरिश के लिए एक मजदूरी करती है। कबड्डी उनकी सबसे बड़ी प्रेरणा है। थडगाम के रहने वाले कीर्तना कोयंबटूर के नेहरू स्टेडियम के लिए सुबह 5.30 बजे बस पकड़ती है, तब वह सुबह 7 बजे तक प्रैक्टिस के लिए पहुंच पाती है, लेकिन वह कभी भी अपनी प्रैक्टिस मिस नहीं करती है।
खाली पेट कबड्डी खेलने को मजबूर
कीर्तना ने कहा, ‘मैं सुबह खाना खाकर नहीं आती हूं। दोपहर के भोजन के लिए, मैं अपने कोच के घर और एक टीम के साथी के घर पर वैकल्पिक दिनों में खाना खाती हूं क्योंकि मेरी मां मुझे खाने के लिए पैसे नहीं दे सकती हैं। उसने मेरे स्कूल में दाखिले के लिए 5,000 रुपये उधार लिए और उसे किश्तों में चुका रही है। लेकिन वह मुझे खेल को आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करती रहती हैं। मेरी इच्छा प्रो कबड्डी लीग में खेलने की है।’
चार साल पहले बनी यह टीम
चार साल पहले कोच सतीश के मार्गदर्शन में लड़कियां एक साथ आई थीं। एक पूर्व कबड्डी खिलाड़ी सतीश का कहना है कि 20 लड़कियों की टीम संगठित रूप से बनी है। उन्होंने एक निजी स्कूल में कोचिंग के साथ शुरुआत की, उसी दौरान इन बच्चियों ने उन्हें संपर्क किया। सतीश ने कहा कि आज उन्हें अपनी इस टीम पर गर्व है।
(साभार – नवभारत टाइम्स)