कोलकाता : हिंदी के प्रसिद्ध छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत की पुण्यतिथि के अवसर पर भारतीय भाषा परिषद के ‘कालजयी कृति विमर्श’ के कार्यक्रम में बोलते हुए इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष और आलोचक प्रो.राजेंद्र कुमार ने कहा कि पंत प्रकृति के सुकुमार कवि ही नहीं थे बल्कि वे मनुष्यता के विराट स्वप्न और विश्व चेतना से जुड़े हुए थे। उन्होंने कहा कि पंत का महात्वकांक्षी काव्य है ‘लोकायतन’ जिसमें उन्होंने गांधी में ‘जन के राम’ की खोज की और गांव को विषय बनाया। उन्होंने छायावाद के सौ साल पूरे होने पर पंत की काव्य यात्रा पर फिर से विचार करने की जरूरत बताई क्योंकि आलोचकों ने उनकी काफी उपेक्षा की थी। आरंभ में विषय प्रस्तुति करते हुए कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रोफेसर राजश्री शुक्ला ने ‘लोकायतन’ को भौतिक प्रगति और आध्यात्मिकता के समन्वय का काव्य कहा और इस पर अरविंद दर्शन के प्रभाव का रेखांकन किया। उन्होंने कहा कि पंत दुख और सुख के बीच सामंजस्य चाहते थे। अध्यक्षीय भाषण देते हुए डॉ.शंभुनाथ ने कहा कि छायावाद हर तरह के कट्टरवाद और भोगवाद को चुनौती देने वाला विश्व मानवता का काव्य है। पंत का लोकायतन राष्ट्रीयता, धर्म और जाति से ऊपर उठकर पृथ्वी के सभी लोगों के लिए एक घर का स्वप्न है। वे परिवर्तन के कवि हैं। उनका काव्य मानव हृदय का विस्तार करता है। आरंभ में परिषद की मंत्री श्रीमती बिमला पोद्दार ने सभी का स्वागत करते हुए हुए कहा कि यह कार्यक्रम युवाओं और विद्यार्थियों के बीच साहित्यिक ज्ञान बढ़ाने के लिए है। धन्यवाद देते हुए पीयूषकांत राय ने कहा कि यह प्रसन्नता की बात है कि हिंदी के पुराने शहर कोलकाता में फिर से एक साहित्यिक माहौल पैदा हो रहा है और सौहार्द का वातावरण बन रहा है। इस सभा का संचालन मधुमिता ओझा ने किया।