राजस्थान की धरती पर ऐसे कई स्थान हैं जहाँ इस पर्व की पूजा एक अद्वितीय रूप ले लेती है। यह केवल सोना-चांदी की खरीदारी का त्योहार नहीं, बल्कि मां लक्ष्मी, भगवान धन्वंतरि और कुबेर देवता की आराधना का उत्सव है जो प्रत्येक शहर व कस्बे में अपना अलग रंग दिखाता है। अगर आप इस सांस्कृतिक धनतेरस का असली अनुभव चाहते हैं, तो 18 अक्टूबर 2025 के आसपास राजस्थान के प्रमुख शहरों की यात्रा आपकी सूची में होनी चाहिए। जयपुर, नाथद्वारा, उदयपुर, जोधपुर और पुष्कर—ये वो केंद्र हैं जहाँ इस दिन जीवंत परंपराएँ जीवित होती हैं और दर्शन के योग्य होती हैं।
जयपुर
जयपुर की गलियों में धनतेरस की शाम “सुवर्ण दीपदान” की परंपरा से जगमगा उठती है। लक्ष्मी नारायण मंदिर, जिसे बिड़ला मंदिर के नाम से भी जानते हैं, इस दिन हजारों दीयों की रोशनी में नहा जाता है। यहाँ भक्त चांदी या पीतल के बर्तन में दीप जला कर माँ लक्ष्मी का स्वागत करते हैं, यह मानते हुए कि इस अर्चना से पूरे वर्ष घर में समृद्धि बनी रहेगी। रात होते ही पूरी राजधानी सुनहरी रोशनी में बदल जाती है, और वातावरण दिव्य हो उठता है।
नाथद्वारा
नाथद्वारा में धनतेरस का महत्व भक्तिभाव से जुड़ा है। श्रीनाथजी मंदिर में इस दिन चांदी के सिक्के अर्पित करने की परंपरा है। भक्त पुराने सिक्के बदलकर नए चढ़ाते हैं, यह मानते हुए कि नए सिक्कों का अर्पण आने वाला वर्ष शुद्ध और शुभ बनाता है। यह एक पूजा ही नहीं, बल्कि श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक भी है।
उदयपुर
उदयपुर “झीलों की नगरी” होने के नाते धनतेरस पर अपनी विशिष्ट पहचान बनाता है। यहां भगवान धन्वंतरि की विशेष पूजा के साथ-साथ झीलों पर दीपोत्सव का आयोजन होता है। पिचोला झील और फतेहसागर की जलधाराओं पर तैरते हुए दीपों का दृश्य मन को मोह लेता है। इस अवसर पर आरोग्य पूजा भी होती है, जिसमें लोग अपने परिवार की स्वास्थ्य-कल्याण की कामना करते हैं।
जोधपुर
जोधपुर में मेहरानगढ़ किले के आसपास के मंदिरों में धनतेरस को कुबेर पूजन की परंपरा से जोड़ा जाता है। मान्यता है कि पुराने शासकों ने इसी दिन राजकोष की पूजा प्रारंभ की थी। आज भी व्यापारी समुदाय नए खातों या बहीखातों का पूजा-अर्चना करते हैं, जिसे “खाता पूजन” कहा जाता है। इस दिन व्यापार से जुड़ी शुभता की कामना करते हुए आर्थिक समृद्धि की प्रार्थना होती है।
पुष्कर
पुष्कर, भगवान धन्वंतरि को समर्पित असाधारण मंदिरों वाला स्थल, धनतेरस पर श्रद्धालुओं का केंद्र बन जाता है। यहां दूर-दूर से लोग आते हैं और आरोग्य यज्ञ, दीपदान, स्वास्थ्य पूजा जैसे अनुष्ठानों में भाग लेते हैं। कहा जाता है कि इस पूजा से जीवन में संतुलन, स्वास्थ्य और सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है।