भारतीय बॉलीवुड के सबसे ख़ूबसूरत चेहरों की जब भी बात होती है तो लोग मधुबाला का नाम सबसे पहले लेते हैं और मधुबाला का नाम लेते ही आपके जेहन में उनकी कई छवियां उभर आती हैं। महल में सस्पेंस जगाने वाली मधुबाला हों या फिर मिस्टेर एंड मिसेज 55 की शहरी बाला या फिर हावड़ा ब्रिज की मादक डांसर हो या फिर मुगले आज़म की कनीज अनारकली जिसका जलवा किसी शहजादी से कम नहीं लगता।
मोहक, ख़ूबसूरत, दिलकश और ताज़गी से भरपूर, जिसके चेहरे से नूर टपकता रहा हो, तो आप मधुबाला के अलावा शायद ही किसी दूसरे चेहरे के बारे में सोच पाएं। मधुबाला की ख़ूबसूरती का अंदाज़ा लगाना हो तो 1990 में एक फ़िल्मी पत्रिका मूवी के बॉलीवुड की आल टाइम ग्रेटेस्ट अभिनेत्रियों की लोकप्रियता वाले सर्वेक्षण को देखिए, उसमें 58 फ़ीसदी लोगों के वोट के साथ मधुबाला नंबर एक पर रहीं थीं, उनके आसपास कोई दूसरा नहीं पहुंच पाया था। इसमें नरगिस 13 फ़ीसदी वोटों के साथ दूसरे पायदान पर रहीं थीं। शोख और अल्हड़ अंदाज़ के साथ अपनी ख़ूबसूरती के लिए मशहूर मधुबाला को गुजरे पांच दशक हो चुके हैं लेकिन आज भी उनके चाहने वाले उन्हें जिस शिद्दत से याद करते हैं, उसकी दूसरी मिसाल नहीं मिलती।
सबसे ख़ूबसूरत मधुबाला
मधुबाला के साथ ही अपना डेब्यू करने वाले राजकपूर ने मधुबाला के बारे में एक बार कहा था लगता है कि ईश्वर ने खुद अपने हाथों से संगमरमर से उन्हें तराशा है। पेंगुइन इंडिया से प्रकाशित और भाईचंद पटेल की संपादित बॉलीवुड टॉप 20- सुपरस्टार्स ऑफ़ इंडिया में राजकपूर का ये बयान दर्ज है। इसी पुस्तक के मुताबिक शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे ने अपने फ़िल्मी जगत में काम करने के दिनों को याद करते हुए कहा कि जब एक दिन उन्होंने शूटिंग करते हुए मधुबाला को देखा था उन्हें लगा कि उनका दिन बन गया।
शम्मी कपूर ने अपनी ऑटोबोयोग्राफी शम्मी कपूर द गेम चेंजर में एक पूरा चैप्टर मधुबाला को समर्पित किया है। इसका शीर्षक है- फेल मेडली इन लव विद मधुबाला। शम्मी कपूर इसमें कहते हैं- मैं ये जानता था कि मधु किसी और के प्यार में हैं, लेकिन इसके बाद भी मैं ये स्वीकार करना चाहता हूं कि मैं उनसे पागलों की तरह प्यार करने लगा था। इसके लिए किसी को दोष नहीं दिया जा सकता था, क्योंकि मैं ने उनसे ख़ूबसूरत औरत कभी नहीं देखी। शम्मी कपूर ने 2011 में प्रकाशित इस आत्मकथा में कहा कि छह दशक बाद आज भी जब वो कभी मधुबाला के बारे में सोचते हैं तो उनके दिल की धड़कन मानो थम जाती है। मधुबाला की ख़ूबसूरती का ये आलम था कि शम्मी कपूर अपनी डेब्यू फ़िल्म रेल का डब्बा फ़िल्म की शूटिंग के दौरान मधुबाला को देखते ही अपने डॉयलाग भूल जाया करते थे।
महज 36 साल की उम्र, जीवन के आख़िरी नौ साल अपने घर में क़ैद हो कर रहने की मज़बूरी और केवल 66 फ़िल्में. लेकिन मधुबाला ने इन सबसे वो मुकाम हासिल कर लिया जो उन्हें हमेशा हमेशा के लिए अमर कर गया। जन्म से ही मधुबाला के दिल में छेद था और डॉक्टरों के मुताबिक उस बीमारी में उन्हें बहुत ज्यादा आराम की ज़रूरत थी लेकिन मधुबाला के पिता ने उन्हें ऐसी दुनिया में धकेला हुआ था जहां उन्हें लगातार काम करना पड़ा था।
दरअसल मधुबाला अपने माता-पिता ही नहीं 11 भाई बहन वाले परिवार में इकलौती आजीविका कमाने वाली थीं। पिता इंपीरियरल टौबेको कंपनी में काम किया करते थे, लाहौर में, वो नौकरी छूटी तो दिल्ली आए और फिर दिल्ली से बंबई पहुंचे तो यही ध्यान था कि ख़ूबसूरत मधुबाला को फ़िल्मों में काम मिल जाएगा। महज छह साल साल की उम्र से मधुबाला ने मायानगरी में अपने क़दम रख दिए थे।
इस काम ने उन्हें कितना खपा दिया इसकी झलक 1957 में फ़िल्मफेयर की उस ख़ास सिरीज़ में मिलती है जिसमें पत्रिका ने उस जमाने के सुपरस्टार से अपने बारे में कुछ लिखने को कहा था। नरगिस, मीना कुमारी, नूतन, राजकपूर, दिलीप कुमार, देव आनंद, किशोर कुमार, अशोक कुमार सबने इसमें अपने बारे में लिखा था।
अपने बारे में मधुबाला
इस सिरीज़ में मधुबाला ने अपने बारे में कुछ लिखने से इनकार करते हुए माफ़ी मांगी थी, माफ़ीनामे में मधुबाला ने लिखा था, “मैं खुद को खो चुकी हूं। ऐसे में खुद के बारे में क्या लिखूं. मुझे ऐसा लग रहा है कि आपने मुझे उसके बारे में लिखने को कहा है जिसे मैं नहीं जानती। समय ने मुझे खुद से मिलने का वक्त नहीं दिया। जब मैं पांच साल की थी तो किसी ने मेरे बारे में पूछा नहीं और मैं इस भूल भुलैया में आ गई. फिल्म इंडस्ट्री ने मुझे पहली सीख यही दी थी कि आपको अपने बारे में सबकुछ भूलना होता है, सबकुछ खुद को भी तभी आप एक्ट कर पाते हैं, ऐसे में मैं खुद के बारे में क्या लिखूं।”
मधुबाला के फिल्मी जीवन पर ख़तीजा अक़बर ने आई वांट टू लिव- द स्टोरी ऑफ़ मधुबाला लिखी है। इस पुस्तक से गुजरने के दौरान पता चलता है कि मधुबाला की ख़ूबसूरती ने उनके अभिनय के प्रति अनुशासन और सीखने की लगन को कभी कम नहीं होने दिया। मधुबाला उस दौर में फिल्मी दुनिया की इकलौती कलाकार थीं जो समय से पहले सेट पर मौजूद होती थीं. हालांकि स्वास्थ्य कारणों से वो रात में शूटिंग नहीं किया करती थीं और अपने पूरे करियर में उन्होंने कभी आउटडोर शूटिंग में हिस्सा नहीं लिया। इसके बावजूद मधुबाला अपने समय की टॉप अभिनेत्रियों में शुमार होती रहीं।
काम के प्रति उनके परफैक्शन की मिसाल देखनी हो तो मुगले आज़म फिल्म के वो प्रेम दृश्यों को देखिए जिसमें शहजादा सलीम, अनारकली को मोर के पंखों से छेड़ता है। इस दृश्य को भारतीय सिने संसार के सबसे रोमांटिक दृश्यों में शुमार किया जाता है। ये जानना दिलचस्प है कि इन दृश्यों के अलावा भी मुगले आज़म के तमाम प्रेम दृश्यों के वक्त दिलीप कुमार और मधुबाला की आपसी बातचीत बंद थी।
दिलीप कुमार-मधुबाला की प्रेम कहानी
दोनों को एक समय में भारतीय फिल्म इतिहास की सबसे रोमांटिक जोड़ी माना जाता था, दोनों एक दूसरे से प्यार भी करते थे। 1955 में पहली बार फ़िल्म इंसानियत के प्रीमियर के दौरान मधुबाला दिलीप कुमार के साथ सार्वजनिक तौर पर नज़र आईं थीं। ये पहला और इकलौता मौका था जब दिलीप कुमार और मधुबाला एक साथ सार्वजनिक तौर पर साथ नजर आए थे। इस मौके को कवर करने वाले पत्रकार के. राजदान ने बाद में लिखा था कि मधुबाला इससे ज़्यादा ख़ुश पहले कभी नज़र नहीं आई थीं। रॉक्सी सिनेमा में हुए इस प्रीमियर में मधुबाला हमेशा दिलीप कुमार की बांह थामे हुए नज़र आती रहीं। शम्मी कपूर ने इस बात का जिक्र भी किया है कि किस तरह से दिलीप कुमार केवल मधुबाला को देखने के लिए मुंबई से पूना तक कार चला कर आया करते थे और दूर खड़े होकर मधुबाला को देखा करते थे।
बहरहाल, एक आम धारणा ये है कि मुधबाला के पिता नहीं चाहते थे कि मधुबाला और दिलीप कुमार की शादी हो। इसको लेकर फ़िल्मी पत्र पत्रिकाओं में काफ़ी कुछ छपता भी रहा है. लेकिन दिलीप कुमार ने अपनी आत्मकथा दिलीप कुमार- द सब्सटेंस एंड द शैडो में इससे उलट बात कही है।
मधुबाला-दिलीप ऐसे हुए अलग?
उन्होंने लिखा है, “जैसा कि कहा जाता है, उसके उलट मधु और मेरी शादी के ख़िलाफ़ उनके पिता नहीं थे। उनकी अपनी प्रॉडक्शन कंपनी थी और वे इस बात से बेहद ख़ुश थे कि एक ही घर में दो बड़े स्टार मौजूद होंगे। वे तो चाहते थे कि दिलीप कुमार और मधुबाला एक दूसरे की बाहों में बाहें डाले अपने करियर के अंत तक उनकी फिल्मों में डूएट गाते नजर आएं।”
फिर ऐसी क्या बात हुई, जिसके चलते बॉलीवुड की सबसे मशहूर प्रेम कहानी शादी तक नहीं पहुंच पाई. दिलीप कुमार ने इसके बारे में भी लिखा है, “जब मुझे मधु से उनके पिता की योजनाओं के बारे में पता चला तो मेरी उनसे कई बार बातचीत हुई जिसमें मैंने उन दोनों से कहा कि मेरे काम करने का अपना तरीका है, मैं अपने हिसाब से प्रोजेक्ट चुनता हूं और उसमें मेरा अपना भी प्रॉडक्शन हाउस हो तो भी ढिलाई नहीं कर सकता।”
दिलीप कुमार के मुताबिक उनकी यही बात मधुबाला के पिता अयातुल्ला ख़ान को पसंद नहीं आई और उन्होंने दिलीप कुमार को जिद्दी और अड़ियल मानना शुरू कर दिया। दिलीप के मुताबिक मधुबाला का रुझान हमेशा अपने पिता की तरफ़ रहा और वो कहती रहीं कि शादी होने के बाद सबकुछ ठीक हो जाएगा।
ऐसा भी नहीं था कि दिलीप शादी के लिए तैयार नहीं थे, 1956 में ढाके की मलमल फ़िल्म की शूटिंग के दौरान एक दिन उन्होंने मधुबाला से कहा भी काज़ी इंतज़ार कर रहे हैं चलो मेरे घर आज शादी कर लेते हैं लेकिन उनकी बातों पर मुधबाला रोने लगीं. दिलीप कुमार कहते रहे कि अगर आज तुम नहीं चली तो मैं तुम्हारे पास लौटकर नहीं आऊंगा, कभी नहीं आऊंगा।
दिलीप कुमार उसके बाद मधुबाला के पास नहीं लौटे क्योंकि दोनों के बीच 1957 में ऐसा विवाद हो गया जिसकी आंच ने इस मोहब्बत को असमय ख़त्म कर डाला। 1957 में प्रदर्शित नया दौर फ़िल्म के लिए दिलीप कुमार और मुधबाला को निर्देशक बीआर चोपड़ा ने साइन किया. इस फ़िल्म की आउटडोर शूटिंग पूना और भोपाल में होनी थी, लेकिन मधुबाला के पिता ने मधुबाला को भोपाल भेजने से इनकार कर दिया तब तक बीआर चोपड़ा अपनी फ़िल्म की काफ़ी शूटिंग कर चुके थे।
पेशे से वकील रह चुके बीआर चोपड़ा मामले को कोर्ट में ले गए और इस बीच उन्होंने मधुबाला की जगह वैजयंती माला को साइन कर लिया। इसी मामले की सुनवाई के दौरान दिलीप कुमार ने कोर्ट में कहा था कि वे मधुबाला से मोहब्बत करते हैं और उनके मरने तक तक मोहब्बत करते रहेंगे लेकिन उन्होंने अपना बयान बीआर चोपड़ा के पक्ष में दिया था।
दिलीप कुमार ने अपनी आत्मकथा में इसके बारे में लिखा है कि उन्होंने अपनी ओर से सुलह की बहुत कोशिश की थी लेकिन कोई फ़ायदा नहीं हुआ था और पूरे मामले में बीआर चोपड़ा का पक्ष सही था। इसके बाद मधुबाला को यक़ीन हो गया कि दिलीप कुमार उनके पास कभी नहीं लौटेंगे।
किशोर कुमार से शादी
इस अलगाव के चलते ही मधुबाला ने शादी करने का मन बनाया होगा लेकिन वो किशोर कुमार से एक दिन शादी कर लेंगी, इसका भरोसा किसी को नहीं था. लेकिन जिस वक्त मधुबाला और दिलीप कुमार की राहें अलग होने लगी थीं, उसी वक्त किशोर कुमार का अपनी पहली पत्नी रोमा देवी से तलाक़ हुआ था और दोनों एक साथ कई फ़िल्मों में काम कर रहे थे।
इस वजह से दोनों के बीच एक आकर्षण हुआ हो और 1960 में किशोर कुमार और मधुबाला ने शादी कर ली। किशोर कुमार के साथ शादी के फ़ैसले ने मधुबाला को दिलीप कुमार से अलग होने के तुलना में कहीं ज़्यादा अाघात पहुंचाया। किशोर कुमार को मधुबाला की बीमारी के बारे में पता तो था लेकिन उसकी गंभीरता का अंदाजा नहीं था. वे मधुबाला को इलाज़ के लिए लंदन ले गए, जहां डॉक्टरों ने जवाब देते हुए कहा कि अब ज्यादा से ज्यादा मधुबाला एक से दो साल ही जी पाएंगी।
इसके बाद किशोर कुमार जब लौटे तो उन्होंने मधुबाला को उनके पिता और बहनों के पास छोड़ आए और कहा कि वे इतने व्यस्त रहते हैं कि मधुबाला की देखभाल नहीं कर पाऐेंगे। वो मधुबाला से मिलने के लिए आते ज़रूर रहे लेकिन तीन चार महीनों के अंतराल पर यानी जब मधुबाला को किशोर कुमार के साथ की सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी, तब किशोर कुमार के पास उनके लिए समय ही नहीं था।
ऐसे में दिल की बीमारी बढ़ती गई लेकिन मधुबाला के अंदर जीने की इच्छा काफ़ी भरी हुई थी, लिहाजा वो डॉक्टरों के हाथ खड़े करने के बाद नौ साल तक जीवित रहीं लेकिन जीवन के आख़िरी नौ साल उन्होंने बेहद एकाकी में गुजारे। इस दौरान बेहद गिने चुने लोग ही उनका हाल चाल जानने के लिए उनके घर जाते रहे थे। इसमें दिलीप कुमार का परिवार भी शामिल था।
हालांकि मुगले आज़म के रिलीज़ होने के ठीक बाद मधुबाला गंभीर रूप से बीमार हो गईं, हालांकि अगले चार साल तक उनके काम वाली फिल्में रिलीज़ होती रहीं लेकिन मुधबाला आख़िरी दिनों में देखने में कैसी थीं, इसको लेकर भी कम कयास नहीं लगाए जाते रहे हैं.
बॉलीवुड टॉप 20- सुपरस्टार्स ऑफ़ इंडिया में मधुबाला के अंतिम दिनों की झलक मिलती है। दिलीप कुमार की बहन सईदा ख़ान के मुताबिक मधुबाला की मौत से एक दिन पहले वो उनसे मिली थीं और उस वक्त तक उनकी ख़ूबसूरती में किसी तरह की कोई कमी नहीं आई थी।
हालांकि लंबी बीमारी के चलते वो थकी हारीं ज़रूर हुई थीं लेकिन चेहरे का नूर बना रहा था लेकिन शायद बीमारी ने मधुबाला के आत्मबल को कमज़ोर किया था, तभी अपने अंतिम दिनों में वो मेकअप करने लगीं थीं। सुपरस्टार्श ऑफ़ इंडिया में फिल्म निर्देशक शक्ति सामंता ने बताया कि वो भी मधुबाला की मौत से ठीक एक दिन पहले उनसे मिले थे और वो काफी मेकअप में थीं हालांकि अपने पूरे फ़िल्मी करियर के दौरान वो काफ़ी कम मेकअप करने के लिए मशहूर रही थीं।
उनकी जिस ख़ूबसूरती का बॉलीवुड में कभी डंका बजता था, उस दुनिया ने उन्हें भुला दिया लेकिन वो भारतीय सिने प्रेमियों के दिलों पर राज करती रहीं। भारतीय डाक सेवा ने 18 मार्च, 2008 को मधुबाला की याद में एक डाक टिकट जारी किया था, इस मौके पर फ़िल्म अभिनेता मनोज कुमार ने कहा था, मधुबाला देश का चेहरा थीं। शताब्दी में कोई एक मधुबाला ही हो सकती हैं. जब भी उन्हें मैं देखता था तो मेरे दिल में ग़जल गूंजने लगती थी। वाकई में मधुबाला कोई दूसरी नहीं हो सकती थीं, जिसकी तस्वीर देखने मात्र से दिलों में संवेदनाओं के तार झंकृत होने लगते हों. हमारे भी और आपके भी।
(साभार – बीबीसी हिन्दी)