भगवान गणेश के बारे में आखिर कौन नहीं जानता है हमारे यहां प्रत्येक महीने का चौथा दिन विनायक चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है, पर बहुत कम लोग जानते है कि भगवान गणेश का एक स्त्री रूप भी है। मान्यता है कि विनायक का इतिहास केवल मौखिक ही रहा है जिस कारण सदियों पहले ये कहीं खोकर रह गया था पर आज भी कई ऐसी किताबें हैं जो इस बात की तरफ ध्यान आकर्षित करती है कि भगवान गणेश का स्त्री रूप था। इन बातों से इनके स्त्री रूप का प्रमाण मिलता हैं…
स्त्री गणेश के हैं कई नाम
कई लोगों के इस विषय में अलग अलग कथन है, गणेश जी के स्त्री अवतार को गणेशानी, गजनीनी, गणेश्वरी, गजमुखी के अलावा भी कई और नामों से पुकारा जाता है। मदुरै, तमिलनाडु और व्याग्रपदा में इनकी गणपति के रूप में पूजा की जाती है तो वहीं तिब्बत में गणेश जी के स्त्री रूप की पूजा होती है यहां इनको गणेशानी कहकर पुकारा जाता है।
ऐसे हुआ गणेश का स्त्री अवतार
मत्स्य पुराण और विष्णु-धरमोत्तर पुराण में बताया गया है कि जब राक्षस आंदोक पार्वती का अपहरण करने की कोशिश कर रहा था तब भगवान शिव का त्रिशूल माता पार्वती को लग गया इस कारण जो रक्त जमीन पर गिरा वो स्त्री और पुरुष दो भागों में विभाजित होकर आधी स्त्री और आधा पुरुष का रूप ले लेता जिसे गणेशानी के नाम से जाना गया।
बौद्ध और जैन साहित्य में दर्ज है कथा
मान्यता ऐसी भी है कि विनायकी एक देवी है ना कि गणेशा की पत्नी, बौद्ध साहित्य की बात करें तो पता चलता है कि इसमें 64 योगियों की बात भी कही गई जिनकी बनावट भी गजानन की तरह ही है। इस तरह की बनावट वाली गणेशनी की इन मूर्तियों को काशी और उड़ीसा में पूजा जाता है इनके हाथ में अक्सर युद्ध की कुल्हाड़ी या परशु होता है। राजस्थान में सबसे पहले इनकी टेराकोटा की मूर्ति पायी गयी थी।
देवी हैं गणेशनी
कई लेखकों ने अपने लेख में इस बात का जिक्र भी किया है कि विनायकी 16वीं शताब्दी में जानकारी में आयी जिसकी आधी बनावट एक हाथी की और आधा शरीर एक सुंदर स्त्री का था इनकी मूर्ति बैठे हुए, खड़े हुए वा नृत्य करते हुए पाई गई। मान्यता ये भी है कि ये खुद एक देवी हैं गणेश जी से इनका कोई संबंध नहीं है।
(साभार – जबलपुर नवरात्रि डॉट कॉम)