“गीत” खुशी के कैसे गाऊं
सारे सपने बिखर गए हैं।
कैसे सुख के दीप जलाऊं
सारे अपने बिछड़ गए हैं।
आंखों में मोती की लड़ियां
हरदम बहता खारा दरिया
भूल गयी सारी रंगरेलियां
खुशियों के पल फिसल गए हैं।
दहलाती हैं सूनी रातें
तड़पाती हैं भूली बातें
ठहर गया दुख जाते- जाते
जब से हाकिम बदल गए हैं।
घने हो गए गम के बादल
दागदार बेटियों के आंचल
न्यायालय पर चढ़ी है सांकल
अच्छे दिन कहीं ठहर गए हैं।