कालाजार के खिलाफ जागरूकता फैला रही है पिंकी की पाठशाला

देवरिया । बीमारियां लोगों के जीवन को प्रभावित करती है। कई बार जीवन के साथ ही जाती है। कई लोग बीमारी को हराने के बाद उसको याद नहीं करना चाहते। उस दर्द भरे पल को भूल जाना चाहते हैं। लेकिन, कुछ लोग उस प्रकार के दर्द से लोगों को निजात दिलाने की मुहिम पर जुट जाते हैं। बताते हैं अगर छोटी-छोटी सावधानियां बरती जाए तो संक्रामक रोगों से बचा जा सकता है। जागरूकता कई प्रकार की बीमारियों के लिए काफी जरूरी होती है। कोरोना जैसी संक्रामक बीमारी के काल में हमने जागरूकता का प्रभाव देखा है। कालाजार भी ऐसी ही बामारी है। संक्रमण लोगों को तोड़ती है। दर्द देती है। कालाजार से पीड़ित पिंकी ने जिस दर्द को सहा था, अब उसे लोगों के बीच ले जा रही हैं। उन्हें एहतियात बरतने की सलाह देती हैं। देवरिया की पिंकी चौहान की पाठशाला हर जगह चलती है। लोगों के बीच जागरूकता फैला रही पिंकी अब साइकिल वाली दीदी के रूप में भी जानी जाने लगी है। कालाजार आज के समय में देश में एक बड़े वर्ग को अपनी चपेट में लेती है, लेकिन पिंकी इस रोग को हराने की मुहिम में जुटी हैं।
क्या है पिंकी की पाठशाला?
कॉलेज में पढ़ाई करने वाली पिंकी चौहान 19 वर्ष की हैं। वे अपने साथ कलरफुल पिक्चर बुक लेकर चलती हैं। यूपी के देवरिया जिले के घरों में उनके बैग में पड़ी इस किताब को पिंकी की पाठशाला के नाम से जाना जाता है। पिंकी अपनी पाठशाला में कालाजार रोग से निपटने की जानकारी देती हैं। राज्य सरकार के स्कूलों में भी वह इस रोग के बारे में बताती हैं। पिंकी कालाजार सर्वाइवर हैं। वर्ष 2015 में जब वह 12 साल की थी, तब उन्हें कालाजार हुआ था। वह अभी तक उस दर्द को भुला नहीं पाई हैं। पिंकी को जब कालाजार हुआ तो वह इस रोग को मात देने में सफल रही। लेकिन एक साल बाद कालाजार का दोबारा अटैक हुआ। पोस्ट कालाजार इंफेक्शन ने उनकी त्वचा को प्रभावित किया। उन दिनों को याद कर आज भी पिंकी सिहर उठती है। उनके अभियान को उनके माता-पिता का भी सहयोग मिला हुआ है।
पिंकी उन दिनों को याद करते हुए कहती हैं कि दोनों बार बीमारी में मुझे परेशान किया। पोस्ट ट्रीटमेंट के दौरान दिक्कतों का सामना करना पड़ा। साथ ही, पैसे भी काफी खर्च हो गए। जब मैंने इस रोग को मात दी, तब मुझे लगा कि कुछ चीजों को नजरअंदाज किए जाने के कारण इस प्रकार की स्थिति का मुझे सामना करना पड़ा। कालाजार का मुख्य कारण सैंड फ्लाई होता है। वैश्विक स्तर पर संक्रमण इसी मच्छर से फैलता है। इसका ट्रीटमेंट भी काफी सामान्य है। पिंकी कहती हैं कि कालाजार के रोग ने मेरे ऊपर काफी असर डाला और इसके खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए मुझे दिमागी तौर पर मजबूत किया। पिंकी ने जब इस प्रकार की मुहिम शुरू की तो उनके माता-पिता जनार्दन चौहान और प्रभावती ने इसके लिए अनुमति दे दी। पिंकी अभी 12वीं कक्षा में पढ़ाई करती हैं और लोगों को जागरूक कर रही हैं।
यूपी सरकार की मुहिम से जुड़ी पिंकी
नवंबर 2021 में पिंकी उत्तर प्रदेश सरकार के सामुदायिक जागरूकता अभियानों से जुड़ीं। कालाजार के रोग को लेकर उन्होंने जागरूकता फैलानी शुरू की। पिंकी कहती है कि इस प्लेटफार्म के जरिए मुझे मौका मिला है। मैं इस रोग के बारे में लोगों को बता सकती हूं। मेरे दिमाग में जो इस रोग को लेकर समझ है। इस विषय के बारे में जानकारी है। उसे लोगों को समझा सकती हूं। यह मेरे उद्देश्यों को पूरा करने में सहायक साबित हुआ है। अप्रैल 2022 में पिंकी ने अपने संस्थान बबन सिंह इंटरमीडिएट कॉलेज रतसरैया से अभियान की शुरुआत की। देवरिया जिले के ही बुद्ध महाविद्यालय रतसरैया में उनका अगला कार्यक्रम हुआ। इसके बाद जुलाई से वह स्कूलों और सामुदायिक जागरूकता कार्यक्रमों में भाग लेना शुरू किया। पिंकी की साइकिल जिले के विभिन्न इलाकों तक पहुंचती है। हर रोज वह 20 लोगों से संपर्क करती हैं।
पिंकी मुख्य रूप से महिलाओं और परिवार के साथ बातचीत करती हैं। कालाजार के रोग को लेकर वह परिवार के साथ बैठकर उन्हें इस रोग के बारे में जानकारी देती है एक प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मी की तरह वे रोग के बारे में बात करती दिखाई देती है। रोग के संकेतों और सिम्पटम के बारे में बताती हैं। रोग के संकतों की उपेक्षा न करने की सलाह देती हैं। अगर लोगों के तमाम सवालों का जवाब देती हैं।
छोटे मच्छर से होती है बड़ी बीमारी
कालाजार रोग के बारे में बात करते हुए पिंकी कहती हैं कि मच्छरों के बारे में कौन नहीं जानता है? लेकिन, कालाजार का कारण सैंडफ्लाई, सामान्य मच्छरों से 50 से 60 गुना तक छोटी होती है। सामान्य आंखों से इसे देख पाना संभव नहीं होता है। यह छोटा मच्छर आदमी के स्वास्थ्य के लिए बहुत बड़ा खतरा है। सैंडफ्लाई पर रोक लगाने के लिए वह कुछ एहतियात बरतने की सलाह देती हैं। कहती है कि सैंडफ्लाई मुख्य रूप से छोटे-छोटे छेदों, नाम दीवार और गौशालाओं में पनपते हैं। इन स्थानों पर मच्छररोधी का प्रयोग कर इस पर रोक लग सकती है। साथ ही, वे लोगों को मच्छरों से बचाव के लिए पूरे बांह के शर्ट और फुल पैंट या पजामा पहनने की सलाह देती है।
10 हजार बच्चों को कर चुकी हैं जागरूक
पिंकी ने अब तक देवरिया जिले के करीब 10 हजार बच्चों के बीच कालाजार रोग के बारे में जागरूकता फैलाई है। स्कूल स्तर पर कार्यक्रमों के दौरान इस रोग के बारे में वे बच्चों को जागरूक करती हैं और संदेश परिवार तक पहुंचाने की बात करती हैं। दरअसल, देवरिया उत्तर प्रदेश के उन चार जिलों में शामिल है, जहां पर कालाजार रोग के सबसे अधिक रोगी पाए जाते हैं। पिंकी ने बनघटा ब्लाक के करीब 1200 घरों तक भी पहुंच कर उन्हें इस रोग के बारे में जानकारी दी है। विशेषज्ञों का कहना है कि रोग को लेकर पिंकी का व्यक्तिगत और सामुदायिक जागरूकता का प्रयास स्वास्थ्य अधिकारियों और सरकारी मशीनरी को बड़ा सहयोग दे रहा है। राष्ट्रीय वेक्टर बोर्न डिजीज कंट्रोल प्रोग्राम के अतिरिक्त निदेशक डॉ. बीपी सिंह कहते हैं कि हर छोटा प्रयास महत्वपूर्ण होता है। कालाजार पर 2023 के अंत तक पूरी तरह से रोक लगाने की योजना है। ऐसे में पिंकी का प्रयास काफी महत्वपूर्ण है। लोगों को इस रोग के प्रति जागरूकता अभियान में जुड़ना चाहिए। व्यक्तिगत और सामुदायिक प्रयासों से लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है।
कालाजार के प्रभाव में 16.5 करोड़ की आबादी
कालाजार एक जटिल वेक्टर जनित रोग है। वर्तमान समय में इस रोग के प्रभाव वाले इलाकों में करीब 16.5 करोड़ लोग आते हैं। देश के 54 जिलों में इस रोग का प्रभाव दिखता है। उत्तर प्रदेश के अलावा बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में इस रोग का प्रभाव है। 19वीं शताब्दी में प्रोटोजोआन स्पेसीज लीजमेनिया डोनावानी ने इस कालाजार रोग को जन्म दिया। काला मतलब ब्लैक और अजार मतलब डिजीज कह जाता है। इस रोग के रोगी के चमड़े पर काले धब्बे बन जाते हैं। इस कारण यह नाम पड़ा। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कालाबाजार को पूरी तरह से 2030 तक समाप्त करने की योजना पर काम शुरू किया है। वहीं, भारत सरकार 2023 का रोड मैप तैयार कर काम कर रही है।

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