इस घोल ने बांग्लादेश युद्ध में बचाई थी लाखों की जान
कोलकाता । ओआरएस के जनक दिलीप महालनोबिस को मेडिसिन (बाल रोग) के क्षेत्र में पद्म विभूषण (मरणोपरांत) पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। पिछले साल अक्टूबर में ही मशहूर बाल चिकित्सक डॉ. दिलीप महालनोबिस का 88 साल की उम्र में निधन हो गया था। उनका जन्म अविभाजित बांग्लादेश के किशोरगंज जिले में हुआ था। उन्होंने बांग्लादेश युद्ध के दौरान लाइफ सेविंग सॉल्यूशन को विकसित किया था जिसने कई लोगों की जान बचाई थी।
दरअसल 1971 में जब पाकिस्तान ने पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) पर हमला बोल दिया था। युद्ध के चलते करीब 1 करोड़ लोग जान बचाकर बंगाल के बॉर्डर जिलों में भाग आए थे। उस वक्त बोनगांव स्थित रिफ्यूजी कैंप में हैजा महामारी फैल गई थी और अंत: स्रावी द्रव का स्टॉक भी खत्म हो गया था। इसके बाद डॉ. महालनोबिस ने कैंप में ओआरएस भिजवाए। ओआरएस के चलते रिफ्यूजी कैंप में मरीजों की मृत्युदर 30 फीसदी से घटकर 3 फीसदी तक हो गई।
थाईलैंड सरकार ने किया था सम्मानित
ओआरएस को मेडिसिन में 20वीं शताब्दी की महान खोज करार दिया गया। डॉ. महालनोबिस को 2002 में यूनिवर्सिटी ऑफ कोलंबिया ऐंड कॉरनेल में पोलिन पुरस्कार और 2006 में थाईलैंड सरकार ने उन्हें प्रिंस महिडोल अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। डॉ. महालनोबिस ने कोलकाता स्थित इंस्टिट्यूट ऑफ चाइल्ड हेल्थ को अपनी एक करोड़ की सेविंग दान की थी। यहीं से उन्होंने बाल चिकित्सक के रूप में अपनी यात्रा शुरू की थी।
डॉ. महालनोबिस ने 1966 में जनस्वास्थ्य में कदम रखने के साथ ओरल रीहाइड्रेशन थेरपी (ओआरटी) पर काम करना शुडॉ. महालनोबिस का योगदान अभूतपूर्वरू किया था। डॉ. महालनोबिस ने डॉक्टर डेविड आर नलिन और रिचर्ड ए कैश के साथ कोलकाता के जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी इंटरनैशनल सेंटर फॉर मेडिसिन रिसर्च ऐंड ट्रेनिंग में इसे लेकर रिसर्च की थी।
डॉ. महालनोबिस का योगदान अभूतपूर्व
इसी टीम ने ओआरएस बनाया जिसकी प्रभावशीलता 1971 के युद्ध तक केवल नियंत्रित परिस्थितियों में ही आजमाई गई थी। आईसीएमआर-एनआईसीईडी के डायरेक्टर शांता दत्त ने ओआरएस को एक महान खोज बताया था जिसके लिए डॉ. महालनोबिस का योगदान अभूतपूर्व है। बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान कोलेरा (हैजा) से संक्रमित मरीजों की मृत्युदर कम करने में कारगार साबित होने के बाद ओआरएस को वैश्विक रूप से स्वीकार्यता मिली।