कोविड -19 के कारण काम करने का तरीका बदला है और ऑनलाइन माध्यमों की पकड़ गहरी हो रही है। ऑनलाइन माध्यमों का अपना महत्व है पर क्या सामान्य माध्यमों की जगह ले सकते हैं….? फौरी तौर पर देखा जाए तो जवाब हाँ में हो सकता है मगर हकीकत देखी जाए तो जवाब न ही होगा…विकल्प स्थायी समाधान नहीं हो सकता।। ऑनलाइन कक्षाएं अस्थायी तौर पर चल सकती हैं मगर क्लासरूम ही ऐसी जगह है जहाँ शिक्षक और विद्यार्थी, दोनों को सुकून मिलेगा। यही बात ऑनलाइन और ऑफलाइन कार्यक्रमों और पत्रकारिता पर भी लागू होती है। जमीन पर उतरे बगैर न तो कार्यक्रम हो सकते हैं और न पत्रकारिता ही की जा सकती है। अगर आप ऑनलाइन माध्यम के जरिए भी काम कर रहे हैं तो भी आपको फील्ड पर जाना ही पड़ेगा वरना पत्रकार और कलम घिसाऊ लोगों में कोई फर्क नहीं रहेगा और आप जो कहेंगे, उसमें प्रामाणिकता भी नहीं रहेगी। आज ऐसे ऑनलाइन सृजनात्मकता के नाम पर ऐसी वेबसाइट्स और ऐप की बाढ़ आ गयी है जो आपकी रचनाएं छापने का दावा करते हैं, छाप भी देते हैं मगर जल्दबाजी में छापी गयी इन रचनाओं में सम्पादन नहीं होता. नतीजा यह होता है कि अशुद्धियों से भरी रचनाएं सामने आती हैं…ऑनलाइन वेबसाइट का फायदा होता है, प्रतिभागी को भी छपने की खुशी होती है पर क्या यह क्षणिक प्रसन्नता स्थायी है…जरूरी है कि ऑनलाइन दुनिया में भी ऑफलाइन जिम्मेदारी को ऑनलाइन बनाया जाए। कहने का मतलब यह है कि ऑनलाइन माध्यमों के साथ भी हमें जिम्मेदारी के साथ ही रहना होगा क्योंकि यह जरूरी भी है और आने वाले समय की माँग भी।