नयी दिल्ली । सुरेखा यादव। एशिया की पहली महिला लोको पायलट। उनके नाम अब एक और उपलब्धि जुड़ गई है। वह वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेन चलाने वाली पहली महिला ड्राइवर भी बन गई हैं। सोमवार को सोलापुर स्टेशन और छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस (सीएसएमटी) के बीच उन्होंने इस सेमी-हाई स्पीड ट्रेन को दौड़ाया। सुरेखा यादव किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं। उनकी गिनती उन चंद महिलाओं में है जिन्होंने पुरुषों के वर्चस्व वाले क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाई है। वह लाखों-लाख लड़कियों को इंस्पायर करती हैं। 450 किमी की दूरी तय करने के बाद जब 13 मार्च को प्लेटफॉर्म नंबर 8 पर वह पहली बार वंदे भारत एक्सप्रेस लेकर पहुंचीं तो हर देशवासी का सीना फूल गया। अपनी हर राइड के साथ आज तक सुरेखा ने बेटियों की आस को पंख लगाए हैं। उन्हें उम्मीद दी है कि वे जो चाहें कर सकती हैं। 1988 में जिस दिन वह ट्रेन ड्राइवर बनीं, उसी दिन उन्होंने कई रवायतों को धराशायी कर दिया था। साधारण किसान की इस बेटी ने हमेशा माना कि अपने अधिकारों के लिए लड़ना चाहिए। जिस काम में हो उसे पूरी ईमानदारी और निष्ठा से करना चाहिए। रेलवे में अब तक का उनका सफर यादगार रहा है।
सुरेखा का जन्म महाराष्ट्र के सतारा में 2 सितंबर 1965 में हुआ था। सोनाबाई और रामचंद्र भोसले की पांच संतानों में सुरेखा सबसे बड़ी हैं। उनके पिता रामचंद्र अब दुनिया में नहीं हैं। वह किसान थे। सुरेखा की शुरुआती स्कूलिंग सेंट पॉल कॉन्वेंट हाईस्कूल से हुई। स्कूल की पढ़ाई खत्म करने के बाद उन्होंने वोकेशन ट्रेनिंग में एडमिशन लिया। सतारा जिले के कराड में ही उन्होंने गवर्नमेंट पॉलिटेक्निक से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया। वह मैथ्स में बीएससी पूरी करके बीएड करने के बाद टीचर बनाना चाहती थीं। लेकिन, रेलवे में नौकरी के अवसर ने आगे की पढ़ाई पर ब्रेक लगा दिए।
सुरेखा से पहले ट्रेन ड्राइवर नहीं बनी थी कोई महिला
1988 में सुरेखा सेंट्रल रेलवे से जुड़ गईं। उन्होंने कॅरियर की शुरुआत बतौर ट्रेनी असिस्टेंट ड्राइवर की। उनसे पहले कोई महिला ट्रेन ड्राइवर नहीं बनी थी। यहीं से सुरेखा ने इतिहास रचना शुरू कर दिया था। 1989 में वह रेगुलर असिस्टेंट ड्राइवर बन गईं। सबसे पहली लोकल गुड्स ट्रेन जो उन्होंने चलाई उसका नंबर एल-50 था। 1998 तक वह परिपक्व गुड्स ट्रेन ड्राइवर बन चुकी थीं। अप्रैल 2000 में सुरेखा ने सेंट्रल रेलवे के लिए पहली ‘लेडीज स्पेशल’ लोकल ट्रेन चलाई। तत्कालीन रेल मंत्री ममता बनर्जी ने चार मेट्रो शहरों में इनकी शुरुआत की थी।8 मार्च 2011 सुरेखा के करियर में सबसे यादगार लम्हों में से एक है। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के दिन वह डेक्कन क्वीन चलाने वाली एशिया की पहली महिला ट्रेन ड्राइवर बनी थीं। वह ट्रेन को पुणे से सीएसटी तक लेकर गई थीं। सेंट्रल रेलवे के मुख्यालय सीएसटी पहुंचने पर उनका स्वागत मुंबई की तत्कालीन मेयर श्रद्धा जाधव ने किया था। इसके पहले तक यही सुनने में आता था कि महिलाएं रेल नहीं चाहती हैं। 2018 में सुरेखा मुंबई से पुणे पैसेंजर ट्रेन लेकर गई थीं। यह उनके यादगार सफर में से एक है। इस दौरान उनकी ट्रेन मुश्किल मोड़ों से गुजरी थी। यह पूरा रूट भी बेहद मनोरम था। इस ट्रेन में पूरा स्टाफ महिलाओं का था। एक इंटरव्यू में सुरेखा ने कहा था कि उनके लिए सबसे गौरवपूर्ण पल वो था जब उन्होंने ड्राइवर के तौर पर पहली बार ट्रेन चलाई थी। उस दिन उन्हें महिला होने पर फख्र महसूस हुआ था।
कई पुरस्कारों से किया जा चुका है सम्मानित
सुरेखा 1991 में ‘हम भी किसी से कम नहीं’ नाम के सीरियल में भी काम कर चुकी हैं। वुमेन ट्रेन ड्राइवर के तौर पर उनके खास रोल को कई संगठनों ने काफी सराहा था। 2021 में इंटरनेशनल वुमेंस डे के अवसर पर वह मुंबई से लखनऊ स्पेशल ट्रेन चलाकर ले गई थीं। इसमें भी पूरा महिला स्टाफ ही था।
13 मार्च को महज 6.35 घंटों में सुरेखा वंदे भारत ट्रेन को सोलापुर से मुंबई लेकर पहुंचीं। यह दूरी 455 किमी थी। रेलवे के इतिहास में किसी एक दिन में इतनी लंबी दूरी पर ट्रेन चलाने वाली वह पहली महिला थीं। रेलवे में वह सबसे वरिष्ठ महिला ट्रेन ड्राइवर हैं। उनकी देखादेखी कई और महिलाएं भी लोको पायलट बनने की हिम्मत जुटा पाईं।
सुरेखा की शादी 1990 में शंकर यादव से हुई थी। शंकर महाराष्ट्र में पुलिस इंस्पेक्टर हैं। उनके दो बेटे हैं। अजिंक्य और अजितेश। सुरेखा को कई पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। इनमें आरडब्ल्यूसीसी बेस्ट वुमन अवार्ड (2013), वुमन अचीवर्स अवार्ड (2011), प्रेरणा पुरस्कार (2005) शामिल हैं। 2018 में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सुरेखा को राष्ट्रपति भवन में प्रतिष्ठित ‘फर्स्ट लेडीज अवार्ड’ से सम्मानित किया था।