‘उर्दू की गीता’ के रचनाकार अनवर जलालपुरी

मैं जा रहा हूं…मेरा इंतजार मत करना…’, ये कहकर अनवर जलालपुरी तो बीती 2 जनवरी को दुनिया से अलविदा कह गए लेकिन ऐसे रोशन सितारों की चमक भला कब अलविदा कहती है। अशआर की शक्ल में जो नगीने अनवर जलालपुरी जमाने को दे गए, उनका रुतबा उस वक्त और बढ़ गया जब गुरुवार को पद्म पुरस्कारों की घोषणा हुई।

भारत सरकार ने मरणोपरांत अनवर जलालपुरी को पद्मश्री पुरस्कार देने की घोषणा की है। यह पुरस्कार उन्हें भगवद्गीता का उर्दू अनुवाद करने के लिए दिया गया है। अनवर जलालपुरी ने केवल संस्कृत में लिखी गई गीता को उर्दू के अशआर में ढाला, बल्कि अरबी में लिखी कुरान, बांग्ला में लिखी रवीन्द्रनाथ टैगोर की गीतांजलि और फारसी में रचे गए उमर खय्याम के साहित्य को भी सरल उर्दू (हिन्दुस्तानी भाषा) में लिखकर आम लोगों तक पहुंचाने को कोशिश की है।

 

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