आसन पर बैठकर इसलिए करते हैं धार्मिक कार्य

हम सभी अमूमन धार्मिक कार्य पूजा, हवन, साधना करते समय आसन पर बैठते हैं लेकिन क्यों ? इसके पीछे वैज्ञानिक और धार्मिक मत दोनों ही हैं। दरअसल आसन पर बैठकर कर्मकांड करने से जहां व्यक्ति के मन में सात्विक विचार उत्पन्न होते हैं तो वहीं आत्मिक शुद्धता मिलती है। यह पूरी तरह से प्राकृतिक प्रक्रिया है। जो सेहत के लिए भी बेहतर मानी गई है।

जब भी हम आसन पर किसी भी धार्मिक कार्य करने या सामान्य रूप से बैठते हैं तो यह प्रक्रिया हमारे शिष्ठाचार और अनुशासन को इंगित करती है। आसन स्वयं में एक योग है। ऐसा करने से शरीर में स्थित विकार काफी हद तक नष्ट हो जाते हैं।

ब्रह्मांड पुराण के तंत्रसार में उल्लेख है कि, धार्मिक कर्मकांड करते समय यदि जमीन पर बैठते हैं तो मनुष्य का दुःख बढ़ जाता है, यदि पत्थर पर बैठते हैं तो रोग हो जाता है। अगर पत्तों पर बैठते हैं तो चित्त भ्रम की स्थिति में पहुंच जाता है। यदि लकड़ी पर बैठते हैं तो घर में दुर्भाग्य का आगमन होता है। घांस पर बैठकर धार्मिक कर्मकांड करना भी मना है ऐसा करने पर घर में अपयश आता है। इसलिए हमेशा कर्मकांड या कोई भी धार्मिक कार्य करते समय आसन पर बैठकर ही पूजा करनी चाहिए।

प्राचीन काल में ऋषि-मुनि, साधू-संत और तपस्वी जब किसी कार्य की सिद्धि के लिए प्रयत्न करते थे तो मृगछाल( हिरण की खाल), गोबर का चोक, वाघ या चीता की खाल, लाल कंबल का प्रयोग किया करते थे। इस बात के प्रमाण हमारे धर्मग्रंथों में मिलता है।

वर्तमान समय में गोबर के चोक में बैठकर पूजा आदि करने का प्रचलन ग्रामीण अंचलों में है। आसन पर बैठकर पूजा करने से आपकी आध्यात्मिक शक्ति बढ़ती है।

वैज्ञानिक दृष्टि में भी आसन उतना ही महत्वपूर्ण है। आसन पर बैठने से आपके चेहरे की लालिमा बड़ती है। आसन कुचालक( जो विद्युत को समाहित न करे) होना चाहिए। यदि आप प्रतिदिन आसन पर बैठकर पूजा करते हैं तो आपके चेहरे में आध्यात्मिक शक्तियों का समावेश होता है। आपकी आंखे बेहतर रहती हैं।

 

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