प्रीति साव
उमस थी, सुबह से
कभी गर्मी का एहसास,
जब चली हवा, मिली राहत
दिन बीत गया, हुई रात।
और,आधी रात
शुरू हुई बारिश
बादल गरजे,
चमकी बिजली, जैसे
चाह रहे हों दोनों
एक दूजे से मिलना।
बादल ने जैसे पुकारा
वह चीखा, वह गरजा
तेज हवाओं में हुई और तेज
आजादी की ख्वाहिश,
और बढ़ी तड़प
बढ़ती रही मिलन की चाह।
जितनी तेज बिजली चमके
उतनी ही उठे हूक
बरसती रही ख्वाहिश।
ऐसा अद्भुत सा गर्जन,
ऐसी तेज हवा का चलना,
ऐसी बिजली चमकना,
और ये आधी रात की बारिश
और, मैं अपने शब्दों के पास
मैं टटोलती खुद को
अब तक।।