महिलाओं को आगे बढ़ाने के दावों के बीच सबसे अधिक असमानता का शिकार महिलाओं को होना पड़ता है। खासकर शादी के बाद तो घरेलू जिम्मेदारियों को निभाने के लिए कई महिलाएं के सपने अधूरे रह जाते हैं। दूसरी तरफ कार्यस्थल पर शादी के बाद अगर बच्चे हो जाएं तो आपको कमतर आँका ही नहीं जाता बल्कि उम्मीद की जाती है कि आप परिस्थिति से समझौता कर लें और अधिकतर मामलों में महिलाएं समझौता कर भी लेती हैं। यही स्थिति जब पत्रकार ऋतुस्मिता विश्वास के सामने आयी तो उनके लिए हैरत में डालने वाली घटना जरूर थी मगर इस अपराजिता ने हार नहीं मानी और आज वह एक नहीं दो कम्पनियाँ चला रही हैं। यह हम सभी के लिए सीखने वाली बात है कि मंजिलें अगर मुश्किल हो तो रास्तों को अपने हिसाब से मोड़ लेना चाहिए, मंजिल खुद आपके पास चलकर आएगी। वर्डस्मिथ राइटिंग सर्विसेज और डिजिटल ब्रांड्ज प्राइवेट लिमिटेड की प्रमुख ऋतुस्मिता विश्वास से अपराजिता ने खास तौर पर बातचीत की, पेश हैं प्रमुख अंश –
प्र. अपने बारे में बताइए?
उ. मेरे पिता झारखंड में कार्यरत थे और 18 साल तक वहीं रही और मेरी बुनियाद भी वहीं तैयार हुई। बचपन में कभी एहसास ही नहीं हुआ कि लैंगिक विषयमता या जेंडर डिस्क्रिमिनेशन होता क्या है। इकलौती बेटी थी। जादवपुर विश्वविद्यालय से साहित्य खासकर तुलनात्मक साहित्य पढ़ा तो थोड़ा – बहुत पता चला मगर इस दौरान भी मेरे सामने इस प्रकार की स्थिति नहीं आयी थी। उस दौरान पता चला कि मेरे साथ नहीं मगर दूसरी लड़कियों को पक्षपात से गुजरना पड़ता है। ससुराल में भी बहुत प्रोत्साहन मिला और पति ने भी हमेशा साथ दिया।
प्र. पत्रकारिता में कैसे आना हुआ?
उ. मैंने एशियन कॉलेज ऑफ जर्नलिज्म से पढ़ाई की है औऱ एशियन एज से बतौर सब एडिटर शुरुआत की। बाद में रिर्पोटिंग में आयी और फीचर खास तौर पर करती थी। एक अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका रेडी टू गो में काम किया। मैकमिलन पब्लिशर्स और आईसीएफएआई में भी रह चुकी हूँ। अब अक्सर कई ऱाष्ट्रीय और विश्वस्तरीय पत्रिकाओं में लिखती हूँ जिसमें बोहेमिया (सिंगापुर), डेकन हेराल्ड, द स्टेट्समेन, सहारा टाइम्स जैसे अखबार भी शामिल हैं।
प्र. पहली बार असमानता का शिकार आपको खुद कब और कैसे होना पड़ा?
उ. मैं संस्था का नाम नहीं लेना चाहूँगी मगर मेरी बेटी के जन्म के बाद जब मैं वापस काम पर लौटी तो मुझसे कहा गया कि मैं अपना सर्वश्रेष्ठ नहीं दे सकूँगी क्योंकि मैं शादीशुदा हूँ और मेरी बेटी काफी छोटी है। वे मुझे काम देना चाहते थे मगर यह पहले की तरह महत्वपूर्ण नहीं था। यह मेरे साथ असमानता की पहली घटना थी क्योंकि मुझमें विश्वास था कि मैं पहले की तरह अच्छा काम कर सकती हूँ मगर माँ होने के कारण मुझे कमतर समझा जा रहा था। यहाँ मेरी क्षमता पर संदेह किया जा रहा था।
प्र. आपकी एजेंसी की शुरुआत कैसे हुई?
उ. मैं लिखती थी और ब्लॉग भी लिखती थी, मेरे पूँजी मेरा लेखन ही था। इस घटना ने मुझे चुनौती दी और मैंने तय किया कि घर पर तो मुझे बैठना नहीं है। मैंने देखा कि मेरे आस – पास बहुत सी महिलाओं के साथ ऐसा हुआ है और मैंने 2005 में शुरू की वर्डस्मिथ राइटिंग सर्विसेज, जिसमें आज ज्यादातर शादीशुदा महिलाएं ही अपनी सेवाएं दे रही हैं। हमारे कई ओवरसीज क्लाइंट हैं। 2010 – 2011 में क्षेत्रीय तथा राष्ट्रीय स्तर पर लाडली मीडिया पुरस्कार जीता और वह मैंने अपनी बेटी के साथ लिया। 2014 में द यूएस हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव में मुझे आमंत्रित कर सम्मानित किया गया। इसके बाद सोशल मीडिया पर मार्केटिंग के लिए डिजिटल ब्रांड की शुरुआत की और इसे भी काफी सफलता मिली। आज मैं अपनी बेटी को भी बताती हूँ कि वह भाग्यशाली है क्योंकि उसे जो मिल रहा है, वह बहुत सी लड़कियों को नहीं मिल पाता।
प्र. महिला होने के नाते किस प्रकार का अनुभव हुआ?
उ. भारतीय महिलाएं तनाव में जी रही हैं। यहाँ लड़कियों के लिए हर काम और हर चीज के लिए उम्र तय कर दी गयी है। महिलाओं को सामाजिक तौर पर जागरूक होने की जरूरत है।। अगर वह कुछ अच्छा भी करे तो यह कहा जाता है कि उसे महिला होने का फायदा मिला मगर सच यह है कि उसे पुरुषों की तरह ही और कई बार उनसे अधिक मेहनत करनी पड़ती है।
प्र. आपकी भावी योजना क्या है?
उ. वेब पोर्टल पर कामकाजी महिलाओं के लिए नेटवर्क तैयार करना चाहती हूँ। अन्य गृहिणी महिलाओं को भी साथ लाने का इरादा है।
प्र. महिलाओं को क्या कहना चाहेंगी?
उ. मेरे पापा ने सिखाया है कि शादी हो या न हो, महिलाओं के लिए आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना बहुत जरूरी है और यही संदेश मेरा भी है। अपने आत्मसम्मान के लिए खुद कमाना सीखें और हमेशा आत्मनिर्भर रहें।