लिटरेरिया 2019 का पहला दिन सपन्न
कोलकाता : नीलांबर संस्था के वार्षिकोत्सव लिटरेरिया 2019 का पहला दिन आज सफलतापूर्वक आरंभ हुआ ।इस कार्यक्रम का मूल उद्देश्य साहित्य को सामान्य जनता से जोड़ना है। कार्यक्रम की शुरुआत से पहले हाल में दिवंगत हुए साहित्यकारों को श्रद्धांजलि देकर उन्हें याद करते हुए हुई। कार्यक्रम की शुरुआत सुपरिचित सितारवादक विदिशा बनर्जी के सितारवादन के साथ हुआ।उनके साथ तबला पर डॉ शमीन्द्र नाथ सन्याल थे। नीलांबर के अध्यक्ष यतीश कुमार के स्वागत भाषण के बाद सचिव ऋतेश पांडेय का प्रतिवेदन और संस्था के संरक्षक एवं पुलिस महानिदेशक मृत्युंजय कुमार सिंह ने अपनी बात रखी।उद्घाटन सत्र का संचालन नीलू पांडेय ने किया।
इस बार के आयोजन का थीम ‘मिथ,फैन्टेसी और यथार्थ’ है। जिसे केंद्र में रखकर वक्ताओं ने अपनी बात रखी। पहले सत्र में इतिहासविद एवं गांधीवादी सुधीर चंद्र ने अध्यक्षता करते हुए इतिहास ,मिथक और राजनीति’ विषय पर अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि स्मृतियाँ मनोस्थिति और परिस्थिति के अनुसार परिवर्तित होती रहती है। जो महाभारत में है – वो दुनिया में है, जो महाभारत में नहीं है – वो दुनिया में नहीं है । ‘नई सदी में स्मृति और कल्पना के प्रश्न’ विषय पर अपनी बात रखते हुए अशोक कुमार पाण्डेय ने कहा कि साहित्य उन स्मृतियों को संजोए रखती है , जो राजनीति भूला देना चाहता है । प्रकाश उदय ने ‘लोक साहित्य में मिथक’ से हमें अवगत कराते हुए कहा कि संवाद संभव है,सबसे और सबका- यह लोक साहित्य की मिथकीय चेतना का अनिवार्य हिस्सा है।और उसके लिए बेहद जरूरी है कि यह बराबरी के स्तर पर हो। श्रुति कुमुद ने ‘फैन्टेसी का देशकाल’ विषय पर अपनी बात रखते हुए यह बताया कि मिथक में रचनाकार अवास्तविक की सहायता से वास्तविक पर टिप्पणी करना चाहता है । सत्र का संचालन विनय मिश्रा ने किया। दूसरे सत्र में डॉ शंभुनाथ ने अध्यक्षता करते हुए ‘मिथकों की दुनिया और आधुनिक मन’ विषय पर कहा कि आज का समय मिथकों से घिरा हुआ है। आज राजनीति और बाजार अपने मिथक निर्मित कर रहे हैं।झूठ के कपड़े में सच की कथा है मिथक। मनोचिकित्सक एवं कवि डॉ विनय कुमार ने मिथकों के मनोविज्ञान पर विस्तार से बात करते हुए कहा कि मिथक हमें अनुभव देते हैं कि हम मनुष्य जीवित हैं।सारे मिथक अवचेतन से आते हैं।आशीष त्रिपाठी ने ‘मिथक की आधुनिकता: सांस्कृतिक विउपनिवेशन और सामाजिक प्रतिरोध’ विषय पर अपनी बात रखते हुए कहा कि मिथक एक तरह की कल्पना है जो इतिहास से अलग है। मिथकों पर समय के आवरण होते हैं। मिथकों को इतिहास बना देने की साज़िश से सतर्क रहने की जरूरत है। प्रियंकर पालीवाल ने ‘मिथकों का राजनीतिकरण’ विषय पर अपनी बात रखी और कहा कि मिथक प्रागैतिहासिक मनुष्य का सामूहिक स्वप्न है जिसमें अलौकिकता के साथ लोकानुभूति अभिव्यक्त होती है। उन्होंने भारत माता के गतिमान मिथक के माध्यम से मिथकों के राजनैतिक उपयोग पर प्रकाश डाला।अच्युतानन्द मिश्र ने ‘आभासी यथार्थ और नई सदी की कविता’ विषय पर अपनी बात रखते हुए कहा कि क्लासिक रचना या स्थापित कला में क्रम भंग, कविता में नया करने के लिए जरूरी है।कला आज सूचना क्रांति से परिचालित है – इसलिए कला के साथ कलाकार का सरोकार कम हुआ है। सत्र का संचालन इतु सिंह ने किया। इसके बाद साहित्य,समाज और मनोविज्ञान से जुड़े मुद्दों पर बातचीत करते हुए डॉ स्कंद शुक्ल और डॉ विनय कुमार ने विषय से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की। सत्र का संचालन ऋतु तिवारी ने किया । धन्यवाद ज्ञापन लोकनाथ तिवारी ने किया।