हिंदू मान्यताओं के हिसाब से 4 धामों में से एक बद्रीनाथ की खास महिमा है। प्रभु श्री हरि विष्णु स्वयं यहां विराजते हैं। इसलिए इसे धरती का बैकुंठ भी बोला जाता है। बद्रीनाथ धाम में यदि आपको दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ होगा तो आपने ध्यान दिया होगा वहां मंदिर में शंख नहीं बजाया है जबकि शंख ध्वनि के फायदों एवं उसे बजाने से होने वाले लाभों को विज्ञान भी अपनी मान्यता देता है। दरअसल, बद्रीनाथ धाम में शंख नहीं बजाए जाने की कई वजह हैं जिसमें पौराणिक, धार्मिक मान्यताओं के अतिरिक्त वैज्ञानिक कारण भी है। ऐसे में आइये आपको बताते है बद्रीनाथ मंदिर में शंख न बजाने का क्या कारण है।।।
धार्मिक मान्यता – यहां शंख नहीं बजाने के पीछे कुछ धार्मिक मान्यताएं भी हैं। शास्त्रों के वर्णित एक कथा के अनुसार, एक बार मां लक्ष्मी बद्रीनाथ धाम में ध्यान में बैठी थीं। उसी समय प्रभु श्री विष्णु ने शंखचूर्ण नाम के एक राक्षस का वध किया था। तथा सनातन धर्म की मान्यताओं में जीत पर शंखनाद अवश्य किया जाता है, मगर विष्णु जी लक्ष्मी जी के ध्यान में विघ्न नहीं चाहते थे, इसलिए उन्होंने शंख नहीं बजाया। ऐसी ही एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, एक मुनि इसी क्षेत्र में कहीं राक्षसों का नाश कर रहे थे। तभी अतापी एवं वतापी नाम के राक्षस वहां से भाग गए। अतापी जान बचाने के लिए मंदाकिनी नदी की शरण में गया तो वतापी अपने प्राण बचने के लिए शंख के भीतर छिप गया। ऐसे में बोला जाता कि यदि उस वक़्त कोई शंख बजाता, तो असुर उससे निकलकर भाग जाता, इस कारण बद्रीनाथ धाम में शंख नहीं बजाया जाता है।
वैज्ञानिक कारण – यहां पर पूरे वर्ष ठंड का अहसास होता है। कुछ महीनों को छोड़ दिया जाए तो यहां अक्सर बर्फ देखने को मिलती है। विज्ञान के मुताबिक, प्रत्येक जीवित शख्य या कोई ऑब्जेक्ट सबकी अपनी एक फ्रीक्वेंसी होती है। ऐसे हालातों में यदि यहां शंख बजाया जाए तो उसकी ध्वनि पहाड़ों से टकराकर प्रतिध्वनि पैदा करती है। इस कारण बर्फ में दरार पड़ने या फिर बर्फीले तूफान आने की आशंका बन सकती है। वहीं एक्सपर्ट्स का कहना है कि विशेष आवृत्ति वाले साउंड पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं। ऐसा होने पर पहाड़ों में भूस्खलन का संकट बढ़ जाता है। ऐसे में संभव है कि इसी कारण इस धाम में शंख नहीं बजाया जाता हो।