कोलकाता । अर्चना संस्था द्वारा आयोजित आनलाइन काव्य गोष्ठी में सदस्यों ने अपनी स्वरचित कविताएं सुनाकर अपनी रचनात्मकता का परिचय दिया। माँ सरस्वती की वंदना करते हुए इंदू चांडक ने कार्यक्रम का संचालन किया। बारिश ने कोलकाता में अपनी दस्तक दे दी है तो फिर कवि पीछे क्यों रहे। प्रकृति के साथ अर्चना के सदस्यों ने अपने भावों के शब्द चित्रों द्वारा नई रचनाएं सुनाई। डॉ वसुंधरा मिश्र ने रेगिस्तान में बारिश, अस्तित्व और रंग कविताएं सुनाई ।रेत के तपते कणों ने/ अपनी तपन से मुझे चौंका दिया ।आओ अपने रंगों को/ एक सकारात्मक आकार में ढालें /एक नया इतिहास रचने का संकल्प बनाएं। डॉ वसुंधरा मिश्र की रंग और रेगिस्तान में बारिश पर कविता पसंद की गई।
इतना तो करो तुम बनाकर नये सांचे /निखरते रहो तुम।/आन मिलो प्रियतम मोरे/अब हरसिंगार झरे – संगीता चौधरी ने बारिश पर अपने भावों को व्यक्त किया।
मृदुला कोठारी ने बरखा के विषय में कविता सुनाई – बरखा तुम आती हो तो तुम्हारा रुप खनकती पायल सा होता है /पाखी तुम उड़ जाओ पूर्ण आकाश/मेरे आंगन की चिड़िया है /प्रभु और मेरी बेटियां /दाना पानी चुग चुग के /उड़ जाएगी बेटियां।
विज्ञान और अध्यात्म से जुड़ी हुई अहमदाबाद की कवयित्री भारती मेहता ने जीवन- मंच पर नृत्य कर रहीं दो नर्तकियां…अच्छाई और बुराई .और अक्सर खो जाता है कलम का ढक्कन…/यह ढक्कन कलम का घूंघट है…जो बचाता है कलम के मुखमंडल को तीखी रवि- दृष्टि से।सुनाकर एक नया प्रयोग किया।
शशि कंकानी ने जब – जब बदरी छाती हैं /बाबुल की याद दिलाती हैं।/उत्थान हो या पतन/ विचलित ना हो मन/ यदि दृढ़ हो प्रण, तो डरना क्या, कविता सुनाई ।
हिम्मत चौरडिया प्रज्ञा ने मुक्त छंद और कुंडलियां- ना चाहूँ मैं सोना चाँदी, ना माँगूं हीरे उपहार।केवल जीना चाहूँ माते, दिखला दो प्यारा संसार।।माँ! दो जीने का अधिकार।।1।कुण्डलिया-हलचल सागर में बढ़े, लहर बने विकराल।/तोड़े तट बंधन सभी, बनकर आए काल।।2।।सुना कर वाहवाही लूटी ।
संजू कोठारी ने राजस्थानी रंग में रंगी छोटा-सा मुक्तक सुनाया जो गहरा अर्थ दे गया – फूळ अर तितळी /सुंदरता रा/ओळखाण/मनभावण अर नरम !/बणावै /धरती नै लोकां में परम !/करे जद बात्यां../तोड़ देवै/सबदां रो भरम !/सीखावै
खिळ-हँस जीणै रो मरम !
कवयित्री इंदू चांडक ने – भावों का उन्मेष, सृजन कविता की करता/जीवन का परिवेश, रंग रुच रुच कर भरता और देश भक्ति से भरा हुआ गीत सुनाया। देश के प्रति प्रेम व्यक्त किया – वीर सपूतों भारत माँ के/जन्म भूमि के पहरेदार/आहुति प्राणों की देकर/ रक्षा करने को तैयार।यह कार्यक्रम इंदु चाँडक ने संचालन किया और मृदुला कोठारी ने धन्यवाद ज्ञापन किया।