नयी दिल्ली । भारत के एक महान राजा नागभट्ट-1 ने अरबों को सिखाया था। भारतीय इतिहास में भुला दिए गए प्रतिहार राजा नागभट्ट प्रथम ने अपने शासनकाल के दौरान अरबों को युद्ध में बुरी तरह हराया था। देश की तरफ आंख दिखाने वाले अरबों को इस महान राजा ने न केवल सालों तक सीमा से खेदेड़े रखा बल्कि अपनी अदभुत वीरता से हमेशा दुश्मनों के दांत खट्टे करते रहे।
माना जाता है कि 6-7वीं सदी के दौरान गुर्जर-प्रतिहार राजवंश की स्थापना हरिचंद्र ने की थी। नागभट्ट-1 की राजधानी उज्जैन थी। उनके नाम से दुश्मन खौफ खाते थे। लेकिन इतिहास में नागभट्ट प्रथम को वो स्थान नहीं मिला जिसके वो हकदार थे। अरब की सेनाएं अपनी क्रूरता के लिए विख्यात थीं। वो जहां भी जाते थे वहां कत्लेआम मचा देते थे। सिंध के पतन के बाद अरब आक्रमणकारी भारत समेत आसपास के इलाके में लगातार आक्रमण करते रहते थे। अरब खुद को श्रेष्ठ बताने की होड़ में शामिल रहते थे। तो क्या भारत में अरबों की श्रेष्ठता स्थापित हो पाई थी? इसका जवाब आपको ना में मिलेगा। क्योंकि नागभट्ट प्रथम के रूप में देश को विदेशी आक्रांताओं को धूल चटाने वाला एक महान राजा मिला हुआ था। नागभट्ट प्रथम ने देश को अरबों के आक्रमण से सालों तक बचाकर रखा था।
प्रतिहार राजवंश को अरबों को हमेशा मात देने वाले एक राजवंश के रूप में ही जाना जाता रहा है। अगर अरब आक्रांताओं को दुनिया में कहीं भी सबसे ज्यादा मुश्किल हालात का सामना करना पड़ा तो वो भारत था। नागभट्ट प्रथम के शासनकाल के समय को लेकर हालांकि विवाद है लेकिन माना जाता है कि उनका शासनकाल 730 से 756 के बीच रहा था। ये वही समय था जब सिंध पर अरबों ने कब्जा कर लिया था। नागभट्ट प्रथम का राज मौजूदा वक्त के भरूच, मालवा और ग्वालियर तक फैला हुआ था।
सिंध पर कब्जा करने के बाद अरब आक्रमणकारी भारत पर हमला करने लगे। अरब अपने ताकतवर सेनापति अमीर जुनैद ने सैनिकों को भारत में हमले का आदेश दे दिया। अरब सेनाओं ने सौराष्ट्र और भीलमाला पर कब्जा भी कर लिया। कहा जाता है कि अरब सेनाएं जोधपुर, जैसलमेर, भरूच और मालवा में तबाही मचाते हुए उज्जैन तक पहुंच गए थे। उन्होंने उज्जैन के करीब घेरा बना लिया था। इसके बाद नागभट्ट प्रथम ने पड़ोसी क्षत्रिय राजाओं गोहिल, परमार और चालुक्य के साथ मिलकर एक गठबंधन बना लिया। अरब सेनापति जुनैद 50 हजार सेना के साथ उज्जैन के पास डेरा जमाए हुए था। जब उसे भारतीय राजाओं के गठबंधन की खबर मिली। लेकिन जुनैद को अपनी घुड़सवार सेना की बदौलत बड़ा घमंड था। वो मानकर चल रहा था कि भारतीय सेनाओं को वो हरा देगा।
अरबों के दांत खट्टे कर दिए थे
इधर, नागभट्ट प्रथम ने 40 हजार घुड़सवार और पैदल सेना का मजबूत रक्षा दल तैयार कर लिया। माना जाता है कि मौजूदा समय में सिंध और राजस्थान की सीमा पर दोनों सेनाओं के बीच लड़ाई हुई थी। नागभट्ट ने बेहतरीन सैन्य संचालन की बदौलत अरब सेनाओं के छक्के छुड़ा दिए थे। अपने को बेहद मजबूत मान रहे जुनैद को भारतीय घुड़सवारों के आक्रमण ने चौंका दिया। जिस सर्वोच्चता पर अरब सेनाओं को घमंड था उसे भारतीय सेनाओं ने ध्वस्त कर दिया था। अरबों की योजना चारों खाने चित हो गई थी। भारतीय सेनाओं ने उनके छक्के छुड़ा दिए। नागभट्ट प्रथम की घुड़सवार और पैदल सेना ने अरबों को रौंदना शुरू कर दिया। इस लड़ाई में जुनैद भी मारा गया। इसके बाद अरब सेनाएं युद्ध का मैदान छोड़कर भाग गईं।
अरब को ध्वस्त करने के बाद नागभट्ट प्रथम ने नारायण की उपाधि धारण की। उनकी इस जीत ने उन्हें पश्चिम में देश की सीमा का रक्षक के रूप में स्थापित कर दिया। अरब शासक नागभट्ट प्रथम को जुर्ज शासक को पुकारने लगा। यानी ऐसा राजा जिसने भारत में अरबों के कदम को रोक दिया। हालांकि, सेनापति जुनैद की मौत के बाद उसके सक्सेसर तमीम को भी हार का सामना करना पड़ा। नागभट्ट प्रथम की सेनाओं को ये आभास था कि अरब पलटवार करेंगे। इसलिए उन्होंने इसकी बहुत पहले से तैयारी कर रखी थी। इस राजवंश ने दशकों तक अरबों को भारतीय सीमा से खदेड़े रखा था।
नागभट्ट प्रथम के बाद भी प्रतिहार राजवंश ने अपने इस पूर्व राजा की गरिमा को बनाए रखा और भारत को अरबों के आक्रमण से बचाए रखा। नागभट्ट द्वितीय, महान राजा भोज ने भी अरबों को युद्ध के मैदान में दांत खट्टे कर दिए थे।