आस्था और विश्वास के साथ मनाएं आलोक पर्व दीपावली

सुनीता सुराना, युग्म ऐस्ट्रो कन्सल्टेंसी

दीपावली हमारा सबसे प्राचीन धार्मिक पर्व है। यह पर्व प्रतिवर्ष कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। यह पर्व ‘प्रकाश-पर्व’ के रूप में मनाया जाता है। यह बात और है कि आज का युग दिखावे का युग हो गया है और महंगी लाइट और साज सज्जा को ही हम दीवाली मानते हैं। हकीकत यह है कि दीवाली पर्व के साथ अनेक धार्मिक एवं पौराणिक मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। मुख्यतया: यह पर्व लंकापति रावण पर विजय हासिल करके और अपना चौदह वर्ष का वनवास पूरा करके अपने घर आयोध्या लौटने की खुशी में मनाया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार जब श्रीराम अपनी पत्नी सीता व छोटे भाई लक्ष्मण सहित आयोध्या में वापिस लौटे थे तो नगरवासियों ने घर-घर दीप जलाकर खुशियां मनाईं थीं। इसी पौराणिक मान्यतानुसार प्रतिवर्ष घर-घर घी के दीये जलाए जाते हैं और खुशियां मनाई जाती हैं।

दीपावली पर्व से कई अन्य मान्यताएं, धारणाएं एवं घटनाएं भी जुड़ी हुई हैं। कठोपनिषद् में यम-नचिकेता का प्रसंग आता है। इस प्रसंगानुसार नचिकेता जन्म-मरण का रहस्य यमराज से जानने के बाद यमलोक से वापिस मृत्युलोक में लौटे थे। एक धारणा के अनुसार नचिकेता के मृत्यु पर अमरता के विजय का ज्ञान लेकर लौटने की खुशी में भू-लोकवासियों ने घी के दीप जलाए थे। यही आर्यवर्त की पहली दीपावली भी मानी जाती है।

इसी दिन श्री लक्ष्मी जी का समुन्द्र-मन्थन से आविर्भाव हुआ था। इस पौराणिक प्रसंगानुसार ऋषि दुर्वासा द्वारा देवराज इन्द्र को दिए गए शाप के कारण श्री लक्ष्मी जी को समुद्र में समाना पड़ा था। लक्ष्मी जी के बिना देवगण बलहीन व श्रीहीन हो गए। इस परिस्थिति का फायदा उठाकर असुर सुरों पर हावी हो गए। देवगणों की याचना पर भगवान विष्णु ने योजनाबद्ध ढ़ंग से सुरों व असुरों के हाथों समुद्र-मन्थन करवाया। समुन्द्र-मन्थन से अमृत सहित चौदह रत्नों में श्री लक्ष्मी जी भी निकलीं, जिसे श्री विष्णु भगवान ने ग्रहण किया। श्री लक्ष्मी जी के पुनार्विभाव से देवगणों में बल व श्री का संचार हुआ और उन्होंने पुन: असुरों पर विजय प्राप्त की। लक्ष्मी जी के इसी पुनार्विभाव की खुशी में समस्त लोकों में दीप प्रज्जवलित करके खुशियां मनाईं गई। इसी मान्यतानुसार प्रतिवर्ष दीपावली को श्री लक्ष्मी जी की पूजा-अर्चना की जाती है।

मार्कंडेय पुराण के अनुसार समृद्धि की देवी श्री लक्ष्मी जी की पूजा सर्वप्रथम नारायण ने स्वर्ग में की।
इसके बाद श्री लक्ष्मी जी की पूजा दूसरी बार ब्रह्मा जी ने,
तीसरी बार शिव जी ने, चौथी बार समुन्द्र मन्थन के समय विष्णु जी ने, पांचवी बार मनु ने और छठी बार नागों ने की थी।

दीपावली पर्व के सन्दर्भ मे भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ा एक प्रसंग भी प्रचलित है। इस प्रसंग के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण इसी दिन बाल्यावस्था मे पहली बार गाय चराने के लिए वन में गए थे। संयोगवश इसी दिन श्रीकृष्ण ने इस मृत्युलोक से प्रस्थान किया था। एक अन्य प्रसंगानुसार इसी दिन श्रीकृष्ण ने नरकासुर नामक नीच असुर का वध करके उसके द्वारा बंदी बनाई गई देव, मानव और गन्धर्वों की सोलह हजार कन्याओं को मुक्ति दिलाई थी। इसी खुशी में लोगों ने दीप जलाए थे, जो बाद मे एक परंपरा में परिवर्तित हो गई।
मेरा आप सभी से अनुरोध है कि हमें यह पर्व पौराणिक तरीकों से ही मनाया जाना चाहिए ना कि दिखावे के साथ।

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