Thursday, December 18, 2025
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आजीविका साबुन 156 महिलाओं के लिए बना ‘आजीविका’ का साधन

रायसेन : ग्रामीण आजीविका मिशन और स्वच्छ भारत अभियान की ‘सारथी’ बन मध्यप्रदेश के रायसेन की ग्रामीण महिलाएं गरीबी और बीमारियों के विरुद्ध अपनी लड़ाई खुद लड़ रही हैं। स्वसहायता समूह से जुड़ी इन सैकड़ों महिलाओं द्वारा बनाया गया साबुन ‘आजीविका’ जिले में स्वच्छता- स्वास्थ्य का ब्रांड बन गया है। चंदन, मोगरा, नीबू, गुलाब और एलोवेरा फ्लेवर के इस साबुन से अब सरकारी स्कूलों के बच्चे भी रोजाना हाथ धोएंगे। आजीविका साबुन 156 महिलाओं के लिए आजीविका का भी साधन बन गया है, जो अपने परिवार को आर्थिक गति देने में जुटी हुई हैं।
प्रशासन ने स्वच्छ भारत अभियान के तहत अब सरकारी प्राइमरी एवं मिडिल स्कूलों के छात्र-छात्राओं के हाथ धुलाने के लिए जनपद शिक्षा केंद्रों को स्कूलों में आजीविका साबुन उपलब्ध कराने के निर्देश दिए हैं। इससे जहां बच्चों में बीमारियों का अंदेशा कम होगा, वहीं बच्चे स्वच्छता के प्रति प्रारंभिक स्तर पर ही जागरूक होंगे।
राज्य शासन के निर्देश पर जिलेभर के 2,538 शासकीय प्राथमिक एवं माध्यमिक स्कूलों में जनपद शिक्षा केंद्रों के माध्यम से साबुन उपलब्ध कराए जाएंगे। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम, नेशनल रूरल लाइवलीहुड मिशन) द्वारा इन स्वसहायता समूहों का गठन किया गया है। ग्रामीण महिलाएं इनमें बढ़चढ़ कर सहभागिता कर रही हैं।
50 ग्राम वजनी इस साबुन की कीमत 18 रुपए रखी गई है। जिलेभर के सभी शासकीय प्राथमिक एवं माध्यमिक स्कूलों में प्रति स्कूल दो साबुन प्रतिमाह के हिसाब से तीन माह के लिए 24,040 साबुन भेज दिए गए हैं, जिनकी कीमत करीब साढ़े चार लाख रुपए है। स्कूलों के अलावा यह साबुन फुटकर एवं थोक में भी बिक्री के लिए उपलब्ध कराया गया है।
आजीविका साबुन का इस्तेमाल सरकारी कर्मचारी, जनप्रतिनिधि और आम ग्रामीण भी कर रहे हैं। साबुन निर्माण के लिए सिर्फ एक घंटे के प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। एक घंटे में करीब 100 साबुन का निर्माण होता है।
मप्र राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन, रायसेन के जिम्मेदार अधिकारी डॉ. एसडी खरे कहते हैं, इस साबुन के जरिये जिले में स्वच्छता का संदेश भी दिया जा रहा है। यह साबुन शहरी-ग्रामीण इलाकों में स्वच्छता -स्वास्थ्य का चर्चित ब्रांड बन गया है।
स्वसहायता समूह से जुड़ीं ग्राम पांडाझिर की विमला तिवारी बताती हैं, गत दो माह में एक हजार साबुन बनाकर लगभग पांच हजार रुपए का मुनाफा हुआ है। स्कूलों में सप्लाई के अलावा हमारे द्वारा गांवों की छोटी-बड़ी दुकानों पर भी साबुन बेचा जा रहा है।
(साभार – दैनिक जागरण पर आनन्द कुशवाह की खबर)

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