ये दौर बहुत अजीब है…हर ओर संशय से घिरे हम…एक दूसरे पर शक कर रहे हैं। कहने को धर्म जोड़ता है मगर अपनी जिद और अहंकार में हमने इसे दीवार में तब्दील कर दिया है और हालत इतनी खराब है कि अब तो अपराध की गम्भीरता को धर्म के हिसाब से आँका जा रहा है और इसकी जद में हम सब आ रहे हैं…तमाम बच्चे…तमाम औरतें…और ये सारी दुनिया…..दो हिस्सों में बँट गयी है और जहर ही जहर फैल रहा है। इससे भी खराब स्थिति है हमारी जो आँख बंद करके कुछ भी बस आगे सरका दे रहे हैं।
औरतों और बच्चियों के साथ होने वाली हैवानियत को हिन्दू या मुस्लिम औरत या बच्चे के हिसाब से आँकना और इस पर हो रही बहस बता देती है कि हमारी सोच किस गटर में जा रहे हैं। पीड़िताओं की वीभत्स तस्वीरें साझा करके आप हमदर्दी नहीं जता रहे बल्कि मरने के बाद भी उसकी तकलीफ का घृणित सौदा कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में स्त्रियों की जिम्मेदारी बढ़ जाती है, उनको बेटियों के साथ अब बेटों की परवरिश और एक स्वस्थ मानसिकता बनाने के लिए आगे बढ़ना होगा। रिश्तों से ऊपर उठकर गलत को गलत कहने की आदत डालनी होगी और लड़कियों को इंंसान समझने की प्रवृति लड़कों में डालनी होगी।
समय आ गया है जब इस देश में बचपन से ही काउंसिलिंग पर जोर दिया जाए और एक ऐसा दिमाग विकसित किया जाए जो इन्सानों की तरह सोचे। यह जिम्मेदारी अब हर औरत और हर माँ को उठानी होगी कि वह अपने बच्चों को लड़के या लड़की की तरह नहीं बल्कि एक इन्सान की तरह बड़ा करे। तय कीजिए कि आप समाज को हैवान नहीं बल्कि इंसान देंगी तभी मातृत्व की सही परिभाषा को हर स्त्री रूपायित कर सकेगी..और हर बेटी को एक सुरक्षित दुनिया दे सकेगी।