पाकिस्तान में सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन की पूर्व अध्यक्ष और जानीमानी मानवाधिकार कार्यकर्ता आसमा जहांगीर का 66 साल की उम्र में लाहौर में निधन हो गया। बीबीसी से बात करते हुए मुंज़े जहांगीर ने अपनी मां के निधन की पुष्टि की। उनका कहना था कि वे इस वक्त देश से बाहर हैं और उनके भाई ने उन्हें इस ख़बर के बारे में बताया।
रिपोर्टों के मुताबिक़ आसमा जहांगीर की तबियत रविवार को ही अचानक ख़राब हुई जिसकी वजह से उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
अपने असाधारण साहस, बहादुरी और ताउम्र समाज के पिछड़े लोगों के अधिकारों के लिए लड़ने वाली आसमा जहांगीर पाकिस्तान के घर-घर में जानी जाती थीं।
आसमा पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन की पहली महिला अध्यक्ष थीं और उन्हें महिला सशक्तिकरण का आइकॉन माना जाता था।
वो अपने सहयोगी वकील आज़म तारार से फ़ोन पर बातें कर रही थीं, तभी उन्हें बहुत तेज़ दर्द हुआ और फ़ोन उनके हाथ से छूट गया।
मीडिया से बात करते हुए आज़म तारार ने कहा कि उन्हें उनकी चीख सुनाई दी, पहले उन्होंने सोचा कि उनका कोई पोता गिर गया है लेकिन फ़ोन कट गया।
आज़म ने कहा कि उन्होंने फिर फ़ोन करने की कोशिश की लेकिन 15 मिनट के बाद जब उनके घर के एक सहायक ने फ़ोन पर बताया कि उन्हें अस्पताल ले जाया गया है।
आसमा के निधन पर शोक
पाकिस्तान की सिविल सोसाइटी और क़ानून से जुड़े लोगों को इस मौत से बेहद सदमा लगा है। पाकिस्तान के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राजनेताओं, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों ने उनके निधन पर शोक प्रकट किया है। अपने शोक संदेश में प्रधानमंत्री शाहिद खाक़ान अब्बासी ने क़ानून, लोकतंत्र और मानवाधिकारों की सुरक्षा के लिए उनके महत्वपूर्ण योगदान की सराहना की।
पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश साक़िब निसार ने अपने शोक संदेश में न्यायपालिका की आज़ादी और पाकिस्तान के संविधान की सर्वोच्चता बनाए रखने में उनके योगदान की प्रशंसा की।
अपने शोक संदेश में मुख्य न्यायाधीश ने आगे कहा, “वो एक मुखर महिला थीं और अपनी कड़ी मेहनत और क़ानूनी पेशे के प्रति प्रतिबद्धता की बदौलत उनकी प्रतिष्ठा बहुत बढ़ी।”
कई राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले
आसमा ने संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार दूत के रूप में भी काम किया था। उन्हें कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। इसमें स्वीडन के नोबल पुरस्कार के विकल्प के रूप में विख्यात 2014 में मिला फ्रांस का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भी शामिल है।
उन्हें देश की राजनीति में सेना के प्रभाव का मुखर आलोचक माना जाता था। उन्होंने ज़िया उल हक़ और जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ की तानाशाह सरकारों के ख़िलाफ़ संर्घषों का नेतृत्व किया था।
जनरल ज़िया और मुशर्रफ़ के ख़िलाफ़ लड़ीं
साल 2007 में जब पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ़ ने पूर्व न्यायाधीश इफ़्तिखार मुहम्मद चौधरी को उनके पद से हटा कर देश में आपातकाल घोषित कर दिया था तो वो न्यायपालिका की बहाली के लिए आंदोलन में सबसे आगे थीं।
उन्हें अपने कॅरियर के दौरान मौत की धमकी, पिटाई और जेल जाने तक का सामना करना पड़ा। उन्हें 1983 में ज़िया उल हक शासन के दौरान मानवाधिकारों की बहाली के लिए आंदोलन में उनकी भूमिका के लिए जेल जाना पड़ा और फिर 2007 में जनरल मुशर्रफ़ के राज के दौरान न्यायपालिका की बहाली को लेकर उन्हें जेल भेजा गया।
मानवाधिकार की पैरोकार
आसमा जहांगीर पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग के सह-संस्थापकों में से थीं और उन्होंने इसके लिए सालों तक बतौर महासचिव और अध्यक्ष काम किया। वो दक्षिण एशिया फोरम फॉर ह्यूमन राइट्स की सह-अध्यक्ष और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संघ की उपाध्यक्ष रहीं।
उन्होंने अपनी सारी जिंदगी अल्पसंख्यकों, महिलाओं और बच्चों के मामलों का प्रतिनिधित्व किया.
पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट
आसमा जहांगीर का जन्म 27 जनवरी 1952 को लाहौर में हुआ था। लाहौर के ही कॉन्वेंट ऑफ़ जीसस एंड मैरी से ग्रैजुएशन और फिर पंजाब यूनिवर्सिटी से उन्होंने क़ानून की पढ़ाई की।
वे कानून की आगे की पढ़ाई के लिए स्विटज़रलैंड, कनाडा और अमरीका भी गईं। लाहौर के क़ायदे-आज़म लॉ कालेज में उन्होंने संविधान भी पढ़ाया था। उन्होंने दो किताबें भी लिखीं- डिवाइन सैंक्शन? द हदूद ऑर्डिनेंश (1988) और चिल्ड्रेन ऑफ़ ए लेसर गॉडः चाइल्ड प्रिसनर्स ऑफ़ पाकिस्तान (1992)।