भले ही आदिवासी समाज को आदिम और पिछड़ा कहा जाता हो, लेकिन कई मामलों में यह तथाकथित विकसित समाजों को सीख देता नजर आता है। विशेषकर बेटियों के मामले में इस समाज की परंपराओं का जवाब नहीं। यहां बेटी को पूरी तरजीह दी जाती है। यही वजह है कि दहेज प्रथा का चलन इस समाज में कभी नहीं रहा।
परंपरा आज भी कायम है। अगर वर पक्ष ने भूल से भी दहेज मांग लिया, तो पंचायत के लोग दंड तय करते हैं। विवाह में होने वाले अनावश्यक खर्च को भी वधु पक्ष पर नहीं थोपा जाता है। वर पक्ष को बेटी का हाथ मांगने जना पड़ता है, तब होती है शादी। यहां तक कि बराती अपने साथ अपना खाना भी खुद ही लेकर आते हैं।
बेटी के पिता के सामने झुकता है सिर: संथाली आदिवासियों में बेटी का पिता वर खोजने नहीं जाता बल्कि वर पक्ष स्वयं लड़की के घर आता है। लड़की के पिता से सिर झुकाकर और विनती कर लड़की का हाथ मांगता है। कन्या पक्ष को रिश्ता मंजूर तो ठीक अन्यथा वह इंकार भी कर सकता है। यदि कन्या पक्ष गरीब है तो वर पक्ष को विवाह का पूरा खर्च उठाना होगा। साथ ही, एक जोड़ा बैल या कुछ हजार रुपये कन्या के पिता को देने होंगे। यदि दोनों पक्ष समर्थ हैं तो कन्या पक्ष को सवा रुपये देकर बात बन सकती है। विवाह के बाद भूल से भी वर पक्ष ने दहेज की बात की तो समाज की ओर से दंड तक दिया जाता है।
झारखंड में संथाली आदिवासियों की इस परंपरा की बात करें तो राज्य के पूर्व सीएम शिबू सोरेन व बाबूलाल मरांडी ने भी अपने बेटों की शादी में आदिवासी परंपरा को निभाया। मात्र सवा रुपया लेकर शादी की गई थी। सोरेन के बेटे बसंत सोरेन की शादी बोकारो के खुंटरी कुसूलमुंडा गांव में शशिभूषण हांसदा की बेटी सरिता से हुई थी। इसमें भी इन्हीं परंपराओं का पालन किया गया था।
हजारीबाग जिले की मोरांगी पंचायत का महुआटांड़ आदिवासी टोला भी मिसाल पेश कर रहा है। करीब 50 घरों के इस टोले में बेटियों की शादी में किसी तरह के दान-दहेज की परंपरा नहीं है, यहां तक कि कन्या पक्ष पर कोई बोझ न पड़े इसके लिए बारातियों के खाने का इंतजाम भी न्योता के माध्यम से ही होता है। शादियों में जुटने वाले रिश्तेदार बोरियों में खाने-पीने का सामान लेकर पहुंचते हैं। बरात में आने वाले लोग भी खाना साथ लेकर ही आते हैं ताकि वधु पक्ष पर कोई भार न पड़े।
अगर कन्या पक्ष बारातियों के स्वागत में सक्षम नहीं है तो वर पक्ष ही शादी के दिन उन्हें अपने घर आमंत्रित करता है। रांची पंतगा की रहने वाली मुन्नी कुमारी की शादी पिछले वर्ष पांच मई को महुआटांड के आशीष लिंडा से हुई थी। वधु पक्ष के सक्षम नहीं होने की वजह से शादी का सारा इंतजाम वर पक्ष ने ही किया। मैट्रिक तक पढ़ी मुन्नी बताती हैं कि दहेज या अन्य खर्च की बात होती तो उस जैसी कई लड़कियों की शादी शायद ही हो पाती।
(साभार – दैनिक जागरण)