नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने पिता की पैतृक संपत्ति में हिन्दू लड़की के हक पर अहम व्यवस्था दी है। कोर्ट ने कहा है कि हिन्दू उत्तराधिकार कानून 1956 के बनने से पहले पैदा हुई लड़की को भी पिता की संपत्ति में पुत्रों के बराबर हक है। कानून की व्याख्या करते हुए कोर्ट ने कहा है कि 2005 में हिन्दू उत्तराधिकार कानून में किये गए संशोधन में बेटी को पिता की संपत्ति में जन्म से अधिकार दिया गया है जैसा कि पुराने कानून में बेटे को मिला है। ऐसे में बेटी को भी बेटे की तरह संपत्ति में जन्म से अधिकार मिलेगा। दोनों पैतृक संपत्ति में जन्म से सहभागी माने जाएंगे।
यह अहम व्यवस्था न्यायमूर्ति एके सीकरी व न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ ने गत 1 फरवरी को कर्नाटक की दो बहनों के पिता की संपत्ति में हक पर मुहर लगाते हुए दी। निचली अदालत और कर्नाटक हाईकोर्ट ने यह कहते हुए बेटियों की संपत्ति में हिस्सेदारी की मांग खारिज कर दी थी कि उनका जन्म हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के बनने से पहले हुआ था। इतना ही नहीं बेटियों की ये दलील भी खारिज कर दी थी कि 2005 में हिन्दू उत्तराधिकारी अधिनियम में हुए संशोधन के बाद उन्हें पिता की संपत्ति में कानूनन हक मिला है।
हिन्दू लड़की के पैतृक संपत्ति मे हक पर अहम व्यवस्था
सुप्रीम कोर्ट ने पिता की संपत्ति में दोनों बहनों को हिस्सेदारी देते हुए अपने फैसले में कहा कि मिताक्षरा से संचालित होने वाले हिन्दू अविभाजित परिवार के कानून में अभूतपूर्व बदलाव हुआ है। ये बदलाव संपत्ति में हक रखने वाले सहभागी के नजदीकी महिला रिश्तेदार जैसे बेटी को बराबरी का हक देने के लिए किया गया। कानून में कहा गया है कि बेटी संपत्ति में जन्म से साझी हिस्सेदार होगी और उसके भी वही अधिकार और जिम्मेदारियां होंगी जो बेटे की होती हैं। बेटी साझी हिस्सेदार होगी और उसे वह संपत्ति वसीयत या किसी और तरीके से निस्तारित करने का भी हक होगा।
कोर्ट ने कहा कि बेटी के साथ भेदभाव खत्म करने और उसे बराबरी का हक देने के लिए ये बदलाव किये गये। हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 में ये मूलभूत बदलाव 2005 के संशोधन के जरिये किये गए। 2005 के संशोधित कानून की धारा 6 कहती है कि बेटी जन्म से ही संपत्ति पर उसी तरह साझी हिस्सेदारी की अधिकारी होगी जैसे कि बेटा होता है। कोर्ट ने कहा कि पुराना हिन्दू कानून बेटे को जन्म से संपत्ति का साझा हिस्सेदार मानता है ऐसे ही संशोधित कानून में बेटी को जन्म से साझा हिस्सेदार माना गया है। कानून में ठीक वैसे ही शब्द प्रयोग किये गये हैं जैसे बेटे के लिए किये गये हैं। इसलिए बेटे और बेटी दोनों का संपत्ति पर जन्म से साझा हक होगा।
कर्नाटक के गुरुलिंगप्पा सावादी अविभाजिक हिन्दू परिवार के थे। उनकी 2001 में मृत्यु हो गई। उनके दो बेटे, दो बेटियां व पत्नी थी। उनकी मृत्यु के बाद उनके पोते ने संपत्ति में बटवारे का मुकदमा किया। मुकदमें में गुरुलिंगप्पा की दोनों बेटियों को संपत्ति का साझा हिस्सेदार नहीं बनाया गया। दलील थी कि इन बेटियों का जन्म हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के आने से पहले हुआ था। ये भी कहा कि इनकी शादी हो चुकी है और उसमे इन्हें सोना और पैसा मिला था इसलिए इन्होंने अपना हिस्सा छोड़ दिया है। दोनों लड़कियों ने पिता की संपत्ति में हिस्सेदारी मांगी थी। निचली अदालत और हाईकोर्ट से निराश होने के बाद दोनों बहनें सुप्रीम कोर्ट आयीं थी।