उच्चतम न्यायालय व्यभिचार पर औपनिवेशिक काल के एक कानून की संवैधानिक वैधता पर विचार करने के लिए शुक्रवार (8 दिसंबर) को तैयार हो गया। इस कानून में व्यभिचार के लिए सिर्फ पुरूषों को ही सजा देने का प्रावधान है जबकि जिस महिला के साथ सहमति से यौनाचार किया गया हो वह भी इसमें बराबर की हिस्सेदार होती है, लेकिन उसे दंडित करने का कोई प्रावधान नहीं है। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि यदि पति अपनी पत्नी और एक दूसरे व्यक्ति के बीच संसर्ग की सहमति देता है तो यह व्यभिचार के अपराध को अमान्य कर देता है और महिला को महज एक वस्तु बना देता है जो लैंगिक न्याय और समता के अधिकार के संवैधानिक प्रावधान के खिलाफ है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 497 के अनुसार जो कोई भी ऐसे व्यक्ति के साथ, जो कि किसी अन्य पुरुष की पत्नी है और जिसका किसी अन्य व्यक्ति की पत्नी होना वह जानता है या विश्वास करने का कारण रखता है, उस पुरुष की सम्मति या मौनानुकूलता के बिना ऐसा मैथून करेगा जो बलात्कार के अपराध की कोटि में नहीं आता है वह व्यभिचार के अपराध का दोषी है। इस अपराध के लिए भारतीय दंड संहिता में पांच साल की कैद और जुर्माना अथवा दोनों का प्रावधान है। हालांकि इस तरह के मामलों में पत्नी इस अपराध के उकसाने के लिए दण्डनीय नहीं होगी।