दुनिया को बचाना है तो बच्चों को बचाइए

बच्चों को लेकर बातें बहुत होती हैं…गाँव से शहर तक..न जाने कितने मुद्दे हैं…न जाने कितने मसले हैं…न जाने कितनी समस्याएं है मगर खुद हम बच्चों को महत्व देना नहीं चाहते और यह मान लेते हैं कि हमारी सोच ही उनकी सोच है। यूनिसेफ जिन बाल अधिकारों की बात करता है, उनमें एक बाल अधिकार यह है कि बच्चों की बात को सुना जाए, समझा जाए और उसे लागू किया जाए मगर इस देश में और हमारे परिवारों की जिन्दगी से बच्चों का जिक्र गायब है क्योंकि वे वोट नहीं दे सकते…वे बड़ों की यौन हिंसा का शिकार होते है….3साल की बच्ची की नन्ही सी देह पर सुई चुभोई जाती है, यौन उत्पीड़न होता है और इन सबमें उसकी माँ का नाम शामिल होता है…अस्पतालों में बच्चों के हिस्से की ऑक्सीजन बड़ों का कमिशन बन जाता है…सैकड़ों बच्चों की जानें चली जाती है और प्रशासन के लिए यह मामूली बात होती है…हमारे पास बच्चों के लिए बजट में भी पर्याप्त अंश नहीं है…उनके खेलने के मैदान शॉपिंग मॉल बन जाते हैं…स्कूलों में एक मैदान नहीं है कि बच्चों को खेलने का सुख मिले। हमारी बसों में बच्चों के लिए सीट नहीं है और न ही उनके लिए सीट जल्दी छोड़ी जाती है..उनको क्या सिखा रहे हैं और क्या दे रहे हैं हम?

बड़े और महँगे स्कूलों में भी बच्चे यौन हिंसा का शिकार हो रहे हैं…शहरों में बच्चों में छोटी उम्र से ही मानसिक अवसाद हो रहा है…आखिर कैसी दुनिया बना रहे हैं हम अपने ननिहालों के लिए….हैरान हूँ कि हम उनकी परवरिश में लड़ना क्यों नहीं सिखाते…जूझना और हारकर उससे उबरना और नयी कोशिश करना हम क्यों नहीं सिखा पा रहे हैं…जैसी कृत्रिम जिन्दगी हम खुद जीते हैं…वही कृत्रिमता बच्चों की जिन्दगी में भर रहे हैं…हाल ही में ब्लू व्हेल के कारण कितने बच्चों की जान गयी…और हम जरा सी अपनी सुविधाओं से समझौता करते तो ऐसा नहीं होता..।

धार्मिक और साम्प्रदायिक उन्माद का शिकार हम बच्चों को बनाते हैं…जिस घर में रोटी नहीं है…वह बच्चों को काम पर भेजने पर मजबूर है और शिक्षित शहरों में माँ – बाप की महत्वाकांक्षा बच्चों को मार रही है…और हम सपने देखते हैं….भविष्य के..शिक्षा का अधिकार है मगर संसाधन नहीं है…फिर भी बच्चे हँसते हैं…खेलते हैं…जिन्दगी को जीते हैं…यह उनकी जीतने की मासूम सी जिद है जो बड़ों के बनाए नर्क को भी ध्वस्त करती है…हमें बच्चों से सीखने की जरूरत है…। इस दुनिया को बचाना है तो बच्चों को बचाइए।

शुभजिता

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