भारत में देवियों के पूजन की परम्परा है और स्त्रियों को सम्मान देने की बातें तो हमारे ग्रन्थों में भी विद्यमान हैं मगर हालात और हकीकत दोनों कुछ और ही बयान कर रहे हैं। शायद, एक भी दिन ऐसा न हो जब महिलाओं के प्रति अपराध की खबर पढ़ने को न मिले मगर हमारी सोच और संस्कार दोनों की शिकायत आजकल मीडिया और सोशल मीडिया कर देते हैं।
हम हमेशा से दोहरेपन के शिकार रहे हैं और इसे स्वीकार नहीं करते। नवरात्रि पर कुआँरी कन्याओं को पूजने वाले इस देश में गर्भ में ही कन्याओं को मार डाला जाता है और नवरात्रि के दौरान ही छेड़छाड़ का विरोध कर रही छात्राओं को केन्द्रीय विश्वविद्यालय में पीटा जाता है और पूरी घटना को लेकर राजनीति करने की कोशिश दोनों तरफ से होती है…अगर आपको लगता है कि ऐसी घटनाओं का असर सिर्फ लड़कियों पर पड़ रहा है तो आपको एक बार फिर सोचने की जरूरत है। बीएचयू बड़ा नाम है और यहाँ आने वाली लड़कियाँ कई अलग राज्यों से अपने हिस्से का संघर्ष लिए आती हैं।
घर के बाहर भी वे खुद को पूरी तरह आजाद नहीं कर पातीं…उनके पीछे उनका घर, समाज, सहेलियाँ, रिश्तेदार सब चलते हैं और ऐसी घटनाएँ उनके सपनों को कुचलने का काम कर रही हैं मगर इस बार लड़कियाँ लड़ीं….जमकर लड़ीं। आप गौर कीजिए तो पाएंगे कि जैसे –जैसे लड़कियाँ बाहर निकल रही हैं, उनके साथ अपराध भी बढ़ रहे हैं और यही सामन्तवादी मानसिकता को दर्शाता है जिसकी नजर में हर आगे निकलने वाली पीढ़ी उसे टक्कर दे रही है और यही उसे स्वीकार नहीं है।
यह नँगई कुछ और नहीं घबराहट और असुरक्षा का प्रतीक है…और बनारस की जड़ता को इन लड़कियों ने झकझोर दिया है जिससे यहाँ की रूढ़िवादी मानसिकता तिलमिला उठी है। लड़के जब ऐसा करते हैं तो वे लड़कियों से ज्यादा नुकसान अन्य लड़कों को पहुँचाते हैं जो बगैर किसी अपराध के मनचलों की श्रेणी में रख दिये जाएँगे….और उनको लेकर संशय खड़ा होगा…अगली बार जब भी आप बीएचयू के छात्र से मिलेंगे तो उसका पूरा समय खुद को ऐसे छात्रों से अलग साबित करने में बीतेगा…कि वे इस लम्पट परम्परा से नहीं आते और इसका असर उनके भविष्य पर भी पड़ना तय है।
अब सवाल यह है कि आखिर इस सोच पर अब तक लगाम क्यों नहीं लगी तो इसकी जिम्मेदार भी स्त्रियाँ ही हैं जो अपनी सुरक्षा के आवरण के नीचे दबी अपने घर में कभी बेटी तो कभी बहनों और भाभियों को दबाने के लिए उन पर हो रहे अन्याय का परोक्ष समर्थन करती हैं।
सच तो यह है कि स्त्री को बेटे, पति, भाई और पिता समेत अन्य पुरुषों से सुरक्षा चाहिए, आर्थिक निभर्रता है,एक भय का घेरा है और एक अन्धा प्रेम भी जो कभी सवाल नहीं करने देता। अपना घर बचाने के चक्कर में वह इनकी तमाम गलतियों पर परदा डालती हैं, ऐसी स्थिति में अगर ऐसे मर्द पूरी दुनिया को सल्तनत और हर औरत को अपनी सम्पत्ति समझें तो यह पुरुषों से अधिक स्त्रियों का दोष है।
मूर्ति को पूजो और जीवित बेटियों को जला दो, हवस का शिकार बनाओ और सार्वजनिक मंचों पर गालियाँ दो…….यह मानसिकता मर्दों को कभी आगे नहीं बढ़ने देगी और परम्परा के नाम पर रूढ़ियों को अपनाना इस देश को और पीछे ले जाएगा….।
इस घटना का असर पड़ा है और बहुत गहराई से पड़ा है…बीएचयू ही नहीं पूरे बनारस की छवि धूमिल हुई है। व्यक्ति की मानसिकता ही देश का भविष्य और उसकी प्रगति की दिशा तय करती है…अब यह इस देश को तय करना है कि वह आए जाए या पीछे रहकर कुंठा में जीए।