महाराष्ट्र के बोरेगांव में वर्षों से एक महिला पुजारी हनुमानजी की पूजा-अर्चना कर रही हैं। बोरेगांव एक छोटा गांव है, जहां रहने वाले लोगों की जनसंख्या कम है। यह गांव मुंबई से पूर्व दिशा में 430 किमी दूर है।
42 वर्षीय शारदाबाई गुराओ, हनुमानजी के इस मंदिर में नियमित आरती वर्षों से करती आ रही हैं। बोरेगांव में मुस्लिम धर्म को मानने वाले अनुयायी भी रहते हैं। जो हनुमान मंदिर में शाम को होने वाली आरती और हिंदू धार्मिक त्योहारों में शामिल होते हैं। इस तरह यह गांव साम्प्रदायिक सद्भावना की मिसाल पेश करता है।
अंग्रेजी वेबसाइट इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक बोरेगांव में रहने वाली ग्रामीण अंबिका गाडवरे बताती हैं, ‘उस समय मंदिर परिसर में यह पहचानना मुश्किल हो जाता है कि कौन हिंदू है और कौन मुस्लिम।’
वर्षों पहले बोरेगांव की ग्राम पंचायत ने शारदाबाई को सर्वसम्मति से मंदिर का पुजारी नियुक्त किया था। वैसे, बोरेगांव की आबादी 1,570 है लेकिन यहां मुस्लिम धर्म के अनुयायी 115 हैं।
हनुमान मंदिर की पुजारी इस गांव की एक माहिला है जो कन्नड़ भाषा भी बोलती हैं। शारदाबाई बताती हैं, ‘जिस तरह शनि शिंगणापुर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर हाईकोर्ट ने कहा कि वह भी वहां पूजा कर सकती है। यह काबिलेतारीफ है।’
गोरेगांव मे ही रहने वाले ओमकांत गाडवरे बताते हैं, ‘शारदाबाई अविवाहित हैं। जब 10 वर्ष की आयु से हनुमान मंदिर की पूजा कर रही हैं, वजह थी उनके पिता का देहांत हो जाना। शारदा बाई के दो भाई भी हैं। वह रोज मंदिर की सफाई करती हैं और इसके बाद रामभक्त हनुमानजी की आरती करती हैं।’
शारदाबाई जब 8 वर्ष की थीं तब वह एक पेड़ के ऊपर से गिर गईं जिसमें उनकी कोहनी में काफी चोट आई। जिसके कारण उनका एक हाथ टूट गया।
शारदाबाई बताती हैं कि इसके बाद शादी का कोई प्रस्ताव भी नहीं आया। पिता की मृत्यु बचपन में ही हो चुकी थी। घर की जिम्मेदारियों के चलते उन्होंने पुजारी बनना ही स्वीकार कर लिया। मेरे पिता इस मंदिर के पुजारी थे। पिता की मृत्यु के बाद भाई खेतों में काम करता तो उसे मंदिर की पूजा करने का वक्त नहीं मिलता था। ऐसे में पुजारी के तौर पर मंदिर की पूजा करनी शुरू कर दी।
हर रोज सुबह 7 बजे शारदाबाई मंदिर की पूजा शुरू करती हैं। मंदिर में शाम की पूजा 4.30 बजे होती है। जब शारदाबाई बीमार होती हैं या कोई अन्य काम आ जाता है तो उनका भाई भी यहां पूजा करते हैं।