आईसीसी महिला विश्व कप जीतकर भारत की बेटियों ने इतिहास रच दिया है। भारतीय कप्तान हरमनप्रीत कौर से लेकर शैफाली वर्मा तक, इन सभी विश्व विजेताओं ने जोश, जज्बे और जुनून के साथ देश का मान बढ़ाया है। भारतीय महिला टीम के पहली बार इस खिताब के जीतने पर महिला क्रिकेट को बढ़ावा मिलने की उम्मीद जताई जा रही है। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि ये बेटियां कैसे घर की दहलीज, सामाजिक और आर्थिक तंगी समेत कितनी बाधाओं को पार कर यहां तक पहुंची हैं। आइये आज आपको इन 16 विश्व विजेतओं के सफर के दिलचस्प किस्से बताते हैं।
लड़कों के खिलाफ खेला करती थीं हरमनप्रीत कौर
भारतीय महिला क्रिकेट टीम की कप्तान हरमनप्रीत कौर को कपिल देव की तरह विश्व विजेता कप्तान के तौर जाना जाएगा। उन्हें 2017 विश्व कप सेमीफाइनल में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 171* रनों की पारी के लिए भी याद किया जाता है। हालांकि, उनकी यही एक बड़ी पारी नहीं है। पंजाब के मोगा की इस खिलाड़ी ने हमेशा बड़े मौके अपना सर्वश्रेष्ठ दिया है। उनका पहला वनडे शतक 2013 में इंग्लैंड के खिलाफ आया था।
वह 2018 के टी20 विश्व कप में भी शतक लगा चुकी हैं। ये उपलब्धि हासिल करने वाली वह पहली भारतीय महिला खिलाड़ी हैं। उनके पिता हरमंदर भुल्लर चाहते थे कि उनके बच्चों में से कोई एक खेल में शामिल हो और जब हरमनप्रीत का जन्म हुआ तो उन्होंने एक टी-शर्ट खरीदी जिस पर ‘अच्छा बल्लेबाज’ लिखा था, जो भविष्यसूचक साबित हुई। हरमनप्रीत अपने पिता के साथ घर के सामने वाले स्टेडियम में स्थानीय लड़कों के साथ क्रिकेट खेलती थीं।
स्मृति मंधाना ने 9 साल की उम्र में किया राज्य स्तर पर डेब्यू
महाराष्ट्र के सांगली के एक क्रिकेट प्रेमी परिवार में जन्मी स्मृति मंधाना की इस खेल में रुचि तब जागी, जब उन्होंने अपने भाई श्रवण को अंडर-16 स्तर पर महाराष्ट्र का प्रतिनिधित्व करते देखा। बाएं हाथ की इस खिलाड़ी ने 9 साल की उम्र में राज्य स्तर पर डेब्यू किया और 16 की उम्र में अप्रैल 2013 में बांग्लादेश के खिलाफ भारत के लिए पहला मैच खेला। 2016 में मंधाना होबार्ट में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अपना पहला वनडे शतक लगाकर सीमित ओवर के फॉर्मेट में एक विश्वसनीय सलामी बल्लेबाज बन गईं।
उन्होंने अगले दशक में कई उपलब्धियां हासिल कीं, जिनमें वनडे में नंबर 1 बल्लेबाज का दर्जा भी शामिल है। जुलाई 2022 में उन्हें भारत की एकदिवसीय टीम की उप-कप्तान नियुक्त किया गया और इस अतिरिक्त ज़िम्मेदारी ने उन्हें एक खिलाड़ी के रूप में और भी बेहतर बना दिया है। स्मृति सर्वाधिक महिला वनडे में शतकों के मेग लैनिंग के रिकॉर्ड से केवल एक शतक (14) पीछे हैं।
महाराष्ट्र के लिए हॉकी भी खेल चुकी हैं जेमिमा रोड्रिग्स
2017-18 के बीसीसीआई पुरस्कारों में जूनियर घरेलू वर्ग में सर्वश्रेष्ठ महिला क्रिकेटर चुने के बाद मुंबई की जेमिमा रोड्रिग्स पहली बार सुर्खियों में आईं। रोड्रिग्स ने 17 साल की उम्र में वडोदरा में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ वनडे में भारत के लिए डेब्यू किया था। बल्लेबाजी क्रम में ऊपर-नीचे होने के बावजूद 25 वर्षीय इस खिलाड़ी ने किसी भी क्रम पर ढलने की क्षमता दिखाई है। रोड्रिग्स की एक बड़ी खूबी यह है कि वह पहले या दूसरे क्रम की टीम पर अनावश्यक दबाव डाले बिना अपनी पारी की गति को नियंत्रित कर पाती हैं। एक बल्लेबाज के रूप में अपनी प्रसिद्ध प्रतिष्ठा के बावजूद उनके व्यक्तित्व का एक और पहलू उनकी जबरदस्त मानसिक शक्ति है। उन्होंने इंग्लैंड के खिलाफ मैच में बाहर होने के बाद वापसी करते हुए ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सेमीफाइनल में 134 गेंदों पर नाबाद 127 रन बनाकर भारत को फाइनल में पहुंचाया था। जेमिमा रोड्रिग्स ने अंडर-17 स्तर पर फील्ड हॉकी में महाराष्ट्र का प्रतिनिधित्व किया था।
उत्तर प्रदेश के आगरा की ऑलराउंडर दीप्ति शर्मा का सफर एक थ्रो से शुरू हुआ। वह बचपन में अपने भाई सुमित के साथ स्टेडियम में जाया करती थीं। एक बार दीप्ति ने अपनी ओर आती गेंद उठाई और उसे गोली की तरह वापस फेंक दिया। ये थ्रो पूर्व भारतीय खिलाड़ी हेमलता काला की नजर में आ गई और वह क्रिकेट की दुनिया में आ गईं। 17 साल की उम्र में उन्होंने भारत के लिए डेब्यू किया। उनके भाई सुमित ने एक दशक पहले दीप्ति को पूर्णकालिक प्रशिक्षण देने के लिए अपनी कॉर्पोरेट नौकरी छोड़ दी थी। वह वनडे क्रिकेट में 150 विकेट पूरे कर चुकी हैं और भारतीयों में केवल झूलन गोस्वामी से पीछे हैं। अपने करियर के शुरुआती दिनों में शीर्ष क्रम में बल्लेबाजी करने के बाद उन्होंने निचले क्रम में अपनी पहचान बनाई है। दीप्ति शर्मा का वनडे में सर्वोच्च स्कोर 188 है, जो किसी भारतीय महिला खिलाड़ी का सर्वश्रेष्ठ स्कोर है। यह स्कोर उन्होंने 2017 में आयरलैंड के खिलाफ बनाया था।ऋचा घोष को टेनिस प्लेयर बनाना चाहते थे पिता
पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी की विकेटकीपर-बल्लेबाज ऋचा घोष के पिता मानबेंद्र घोष ने उन्हें हमेशा पावर हिटर बनने के लिए प्रेरित किया। जहां कोच उसकी बुनियादी बातों पर ध्यान केंद्रित करते थे, वहीं मानबेंद्र ने ऋचा को चौके-छक्के लगाने का प्रशिक्षण लेने के लिए प्रोत्साहित किया। भले ही इसके लिए उनके घर की कुछ खिड़कियां टूटी हुई थीं। पिता पहले चाहते थे कि ऋचा टेबल टेनिस खेले, लेकिन ऋचा ने क्रिकेट पर ज़ोर दिया और बाघाजतिन एथलेटिक क्लब में दाखिला लेने वाली पहली लड़की बनीं। जहां से कोलकाता सर्किट पर पुरुष क्रिकेटरों के साथ उनका सफ़र शुरू हुआ। ऋचा के सफ़र में मदद करने के लिए पिता ने सिलीगुड़ी में अपना व्यवसाय बंद कर दिया और कोलकाता की यात्राओं पर उनके साथ जाने लगे। डब्ल्यूपीएल में रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु में शामिल होने के बाद से उनकी पावर-हिटिंग में एक-दो पायदान का सुधार हुआ है। ऋचा घोष ने 16 साल की उम्र में अपना टी20I डेब्यू किया था।
हरलीन देओल को चंडीगढ़ शिफ्ट होना पड़ा
हरलीन देओल ने हिमाचल प्रदेश में जूनियर क्रिकेट में एक कुशल बल्लेबाज और उपयोगी ऑफ-ब्रेक गेंदबाज के रूप में अपनी पहचान बनाई है। हालांकि, सुविधाओं की कमी और अविकसित क्रिकेट संस्कृति के कारण उन्हें चंडीगढ़ शिफ्ट होना पड़ा, जो उनके लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। उन्होंने सबसे पहले महिला टी20 चैलेंज में अपने प्रदर्शन से सुर्खियां बटोरीं और इसी प्रदर्शन के दम पर उन्हें 2019 में इंग्लैंड के खिलाफ एकदिवसीय श्रृंखला के लिए टीम में शामिल किया गया। उनके लिए यादगार पल 2021 में आया, जब उन्होंने अपनी फील्डिंग के लिए सुर्खियां बटोरीं।
नॉर्थम्प्टन में इंग्लैंड के खिलाफ एकदिवसीय मैच खेलते हुए उन्होंने लॉन्ग-ऑफ बाउंड्री पर एक बेहतरीन कैच लपका, जहां उन्होंने अपनी सूझबूझ का इस्तेमाल करते हुए गेंद को समय पर बाउंड्री के अंदर पहुंचाया और फिर कैच लेने के लिए मैदान में वापस आ गईं। हाल ही में देओल को टीम में कुछ स्थिरता मिली और उन्होंने टूर्नामेंट की शुरुआत तीसरे नंबर के बल्लेबाज के रूप में की। इंग्लैंड में देओल के शानदार कैच को ईएसपीएन स्पोर्ट्स सेंटर पर दिखाया गया था और इंस्टाग्राम पर इस पोस्ट को 10 लाख से ज्यादा लाइक्स मिले।
प्रतिका रावल जिमखाना में प्रशिक्षण लेने वाली पहली लड़की
दिल्ली की सलामी बल्लेबाज प्रतिका रावल रोहतक रोड जिमखाना में प्रशिक्षण लेने वाली पहली लड़की हैं। जहां आज 30 लडकियां प्रशिक्षण ले रही हैं। उनके पिता प्रदीप रावल खुद क्रिकेट में रुचि रखते थे और बीसीसीआई-प्रमाणित अंपायर हैं। उन्होंने पहले ही तय कर लिया था कि वह अपनी पहली संतान को एथलीट बनाएंगे। प्रतिका मॉडर्न स्कूल में बास्केटबॉल में भी पारंगत थीं। लेकिन 9 साल की उम्र में उन्होंने तय कर लिया था कि क्रिकेट ही उनका रास्ता होगा। हालांकि लॉकडाउन के कारण भारतीय टीम में उनकी प्रगति में देरी हुई, लेकिन उन्होंने प्रदीप के साथ उनकी इमारत की छत पर अस्थायी नेट पर अभ्यास किया। प्रतिका एक मेधावी छात्रा भी रही हैं। उन्होंने 10वीं और 12वीं बोर्ड परीक्षाओं में 92 प्रतिशत से ज़्यादा अंक प्राप्त किए। वह मनोविज्ञान में स्नातक भी हैं। शैफाली वर्मा की जगह वनडे टीम में चुने जाने के बाद उन्होंने स्मृति मंधाना के साथ कम समय में ही शानदार ओपनिंग जोड़ी बनाई, हालांकि सेमीफाइनल से पहले चोट लगने के कारण उनका विश्व कप अभियान समाप्त हो गया। प्रतिका के नाम महिला वनडे में सबसे तेज़ 1,000 रन बनाने का रिकॉर्ड है।
धोनी और हरमन को अपना आदर्श मानती हैं उमा छेत्री
असम के गोलाघाट की रहने वाली विकेटकीपर-बल्लेबाज उमा छेत्री बचपन से ही एमएस धोनी और हरमनप्रीत कौर को अपना आदर्श मानती हैं। छेत्री 2025 महिला विश्व कप टीम में भारत के पूर्वोत्तर से एकमात्र खिलाड़ी हैं और जहां तक देश के उस हिस्से में महिला खेल के भविष्य का सवाल है, वे पूरे क्षेत्र की उम्मीदों का प्रतिनिधित्व करती हैं। मूल रूप से रिजर्व के रूप में चुनी गईं छेत्री को यस्तिका भाटिया के चोटिल होने के बाद टूर्नामेंट से बाहर होने के बाद भारतीय टीम में शामिल किया गया। दरअसल, पहली पसंद की विकेटकीपर-बल्लेबाज ऋचा घोष को लगी एक और चोट ने छेत्री के लिए इस विश्व कप में बांग्लादेश के खिलाफ वनडे में पदार्पण का रास्ता साफ किया। छेत्री ने भारत के लिए जुलाई 2024 में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ टी20 अंतरराष्ट्रीय में पदार्पण किया था।
क्रांति गौड़ ने टेनिस-बॉल मैचों से बनाई पहचान
मध्य प्रदेश के छतरपुर ज़िला मुख्यालय से दो घंटे की ड्राइव पर स्थित घुवारा में क्रिकेट प्रशिक्षण की कोई सुविधा नहीं है। लेकिन, एक पूर्व पुलिस कांस्टेबल की बेटी क्रांति गौड़ वहां के एकमात्र मैदान में टेनिस-बॉल क्रिकेट खेलने वाले लड़कों की तरह बनना चाहती थी। क्रांति अनुसूचित जनजाति परिवार में छह भाई-बहनों में सबसे छोटी हैं। उन्होंने पहले टेनिस-बॉल मैचों में छक्के जड़ने वाली बल्लेबाज के रूप में अपनी पहचान बनाई और फिर छतरपुर स्थित कोच राजीव बिल्थारे, जो इस क्षेत्र में महिला क्रिकेट को बढ़ावा देते हैं, उनके संरक्षण में आई। परिवार ने लड़कों के साथ क्रिकेट खेलने वाली एक लड़की के बारे में अपमानजनक और पूर्वाग्रही टिप्पणियों को क्रांति के क्रिकेट के सपनों के आड़े नहीं आने दिया। जब परिवार पर मुश्किलें आईं तो उसकी मां ने अपने गहने गिरवी रख दिए। उन्होंने इस विश्व कप में पाकिस्तान के खिलाफ प्लेयर-ऑफ-द-मैच का पुरस्कार अपने नाम किया।
स्नेह राणा डब्ल्यूपीएल ऑक्शन में रह गईं थी अनसोल्ड
उत्तराखंड के देहरादून रहने वाली स्नेह राणा का नाम लगभग वापसी का पर्याय बन गया है। उन्होंने 2014 में डेब्यू किया था और 2016 के आसपास उन्हें टीम से बाहर कर दिया गया था। वापसी करने में उन्हें पांच साल लग गए और 2021 में इंग्लैंड में एकमात्र टेस्ट के लिए उन्होंने सफ़ेद जर्सी पहनी। यह उनके पिता भगवान सिंह के निधन के कुछ समय बाद हुआ, जिन्होंने स्नेह के क्रिकेट करियर को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। बचपन में स्नेह बाहरी गतिविधियों में रुचि रखने वाली और लड़कों के साथ कई खेल खेलने वाली महिला खिलाड़ी थीं। 9 साल की उम्र में उनकी प्रतिभा को पहचानकर उनके पिता ने उन्हें एक क्रिकेट अकादमी में दाखिला दिलाया। स्नेह भारतीय टीम में आती-जाती रहीं, इसलिए उन्होंने घरेलू क्रिकेट में अपनी विविधताओं पर काम किया और अपनी बल्लेबाजी को बेहतर बनाने के लिए पावर-हिटिंग पर भी ध्यान केंद्रित किया। महिला प्रीमियर लीग में गुजरात जायंट्स की कप्तानी करने के बाद उन्हें 2025 सीजन से पहले रिलीज कर दिया गया और नीलामी में भी उन्हें नहीं चुना गया। लेकिन बाद में उन्हें आरसीबी ने एक प्रतिस्थापन के रूप में चुना और उन्होंने बल्ले और गेंद से इतना प्रभावित किया कि उन्हें भारतीय टीम में भी वापस जगह मिल गई।
लड़कों की टीम में खेला करती थीं रेणुका सिंह ठाकुर
हिमाचल प्रदेश के शिमला की रहने वाली रेणुका जब केवल 3 साल की थीं, तब उनके पिता की मृत्यु के बाद उनकी मां सुनीता और उनके भाई विनोद ने उनके सफर को आकार दिया। 2021 में भारतीय टीम में शामिल होने के बाद रेणुका ने बताया था कि उनके पिता को क्रिकेट बहुत पसंद था। उन्होंने मेरे भाई का नाम अपने पसंदीदा क्रिकेटर विनोद कांबली के नाम पर रखा था। रेणुका के पिता सिंचाई एवं जन स्वास्थ्य विभाग में काम करते थे। रेणुका भाई विनोद के साथ गांव के मैदान पर जाती थीं और लड़कों की टीम में खेलती थीं। रेणुका के चाचा भूपिंदर सिंह ठाकुर ने उन्हें धर्मशाला स्थित एचपीसीए महिला आवासीय अकादमी में ट्रायल्स में शामिल होने की सलाह दी थी। वहां उन्होंने अपनी फिटनेस और नियंत्रण में सुधार किया। रेणुका 2022 राष्ट्रमंडल खेलों में 11 विकेट लेकर सबसे ज़्यादा विकेट लेने वाली खिलाड़ी थीं।
सब्जी बेचा करते थे राधा यादव के पिता
मुंबई में जन्मी राधा यादव घरेलू क्रिकेट में बड़ौदा के लिए खेलती हैं और भारतीय टीम में चुनी जाने वाली गुजरात टीम की पहली महिला क्रिकेटर हैं। निस्संदेह, टीम की सर्वश्रेष्ठ क्षेत्ररक्षक, राधा लंबे समय तक टी20I विशेषज्ञ रहीं और 2018 से इस प्रारूप में खेल रही हैं। 2021 में अपना वनडे डेब्यू करने के बाद उन्होंने 2024 तक इस प्रारूप में दोबारा नहीं खेला। अगर नई स्पिनर शुचि उपाध्याय चोटिल न होतीं, तो राधा शायद इस गर्मी में इंग्लैंड दौरे के लिए टीम में जगह नहीं बना पातीं। कोच प्रफुल नाइक ने 2012 में कांदिवली के एक परिसर में युवा राधा को क्रिकेट खेलते देखा और यह बात उनके ज़ेहन में बस गई कि कैसे वह एक लड़के की ओर दौड़ीं, जो आउट होने के बावजूद बल्ला पकड़े हुए था। उन्होंने उनके पिता, जो एक सब्जी विक्रेता थे, को उन्हें क्रिकेटर बनाने के लिए मनाने की पहल की। यादव परिवार एक छोटे से घर में रहता था और खेलों पर खर्च नहीं कर सकता था। नाइक के स्थानांतरित होने पर राधा बड़ौदा चली गईं। राधा ने एक बार लगातार 27 टी20 अंतरराष्ट्रीय मैचों में कम से कम एक विकेट लेने का रिकॉर्ड बनाया था।
विकेटकीपर बनना चाहती थीं अरुंधति रेड्डी
अरुंधति रेड्डी ने 2018 में टी20 अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण किया, लेकिन उन्हें वनडे खेलने का मौका पाने के लिए लंबा इंतज़ार करना पड़ा। 2024 में बेंगलुरु में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ उन्हें 50 ओवरों के मैच में खेलने का मौका मिला और एक साल बाद उन्होंने विश्व कप के लिए जगह बनाई। घरेलू क्रिकेट में हैदराबाद के साथ अपना सफर शुरू करने और अपनी स्वाभाविक एथलेटिक क्षमता से प्रभावित करने के बाद अरुंधति रेलवे में चली गईं। अरुंधति बचपन में एमएस धोनी को अपना आदर्श मानती थीं और विकेटकीपर बनना चाहती थीं, लेकिन उनके कोचों ने उन्हें तेज़ गेंदबाज़ी ऑलराउंडर बनने के लिए प्रेरित किया।
पिता ने बनाया था अमनजोत कौर का पहला बल्ला
बढ़ई भूपिंदर सिंह ने एक शाम देखा कि उनकी बेटी अमनजोत परेशान थी, क्योंकि उनके पड़ोस के लड़के बल्ला नहीं होने पर उन्हें खेलने नहीं दे रहे थे। वह अपनी दुकान पर गए और देर रात एक लकड़ी का बल्ला लेकर लौटे, जिसे उन्होंने खुद बनाया था। चंडीगढ़ की ये पेस-ऑलराउंडर अमनजोत का ये पहला बल्ला था। तानों के बावजूद भूपिंदर ने उसे खेलने के लिए प्रोत्साहित किया। जब वह 14 साल की हुई तो वह अमनजोत को कोच नागेश गुप्ता के पास ले गए। शुरुआत में उसके लिए जगह न होने के बावजूद नागेश ने उसे अपने साथ ले लिया। अमनजोत अपने टी20I डेब्यू में प्लेयर ऑफ़ द मैच रहीं, लेकिन पीठ में स्ट्रेस फ्रैक्चर और हाथ के लिगामेंट में चोट के कारण उन्हें 2024 का एक बड़ा हिस्सा मिस करना पड़ा। इस साल मुंबई इंडियंस के साथ WPL में अमनजोत ने अपनी वापसी के संकेत दिए। अमनजोत महिला विश्व कप में आठवें या उससे नीचे नंबर पर बल्लेबाजी करते हुए 50+ का स्कोर बनाने वाली केवल दूसरी खिलाड़ी हैं, ये कमाल उन्होंने श्रीलंका के खिलाफ किया था।
एमएसके प्रसाद ने पहचानी श्री चरणी की प्रतिभा
आंध्र प्रदेश के कडप्पा की रहने वाली श्री चरणी जब तीसरी कक्षा में थीं, तब चरणी ने अपने मामा किशोर रेड्डी के साथ उनके घर पर प्लास्टिक के बल्ले से खेलना शुरू किया। इसके बाद उन्होंने अपनी उम्र से कहीं बड़े खिलाड़ियों के साथ खेलना शुरू कर दिया। तब उन्हें क्रिकेट का सिर्फ शौक था, लेकिन यही चरणी के तेजी से आगे बढ़ने का आधार बना। स्कूल के शुरुआती दिनों से ही वह एथलेटिक्स के प्रति गंभीर थीं। जब वह दसवीं कक्षा में थीं तो उनके शारीरिक शिक्षा प्रशिक्षक नरेश उन्हें गाचीबोवली स्थित भारतीय खेल प्राधिकरण के प्रशिक्षण केंद्र में चयन के लिए हैदराबाद ले आए। भारत के पूर्व चयनकर्ता एमएसके प्रसाद ने उनकी एथलेटिक क्षमता को देखा और उन्हें क्रिकेट में हाथ आजमाने का सुझाव दिया। डब्ल्यूपीएल में चरणी ने इतना प्रभावित किया कि उन्हें वनडे टीम में जगह मिल गई।
पिता ने 10 साल की उम्र में शैफाली का करया था बॉय कट
हरियाणा के रोहतक की रहने वाली शैफाली की कहानी भी कुछ कम दिलचस्प नहीं है। पिता संजीव वर्मा ने 10 साल की उम्र शैफाली के बाल बहुत छोटे करवा दिए, ताकि वह लड़कों की एक स्कूल टीम में खेल सके। शैफाली उस टूर्नामेंट की सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी बनी। शैफाली को भारतीय क्रिकेट का ध्यान अपनी ओर खींचने में ज़्यादा समय नहीं लगा। डब्ल्यूपीएल, महिला टी20 चैलेंज के पहले सीजन में 15 साल की उम्र में उनका ज़बरदस्त आक्रामक अंदाज महिलाओं के खेल में पहले कभी नहीं देखा गया था। वह सचिन तेंदुलकर की बहुत बड़ी फैन हैं। उन्होंने पहले अंडर-19 टी20 विश्व कप में महिलाओं के किसी भी आयोजन में भारत को अपना पहला आईसीसी खिताब भी जिताया था। प्रतिका रावल के चोटिल होने बाद उनका वनडे टीम में शानदार कमबैक हुआ है। शैफाली मिताली राज के बाद टेस्ट क्रिकेट में दोहरा शतक लगाने वाली दूसरी भारतीय महिला हैं।





