भारतीय भाषा परिषद और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र द्वारा आयोजित पुस्तक परिचर्चा
कोलकाता । भारतीय भाषा परिषद में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, रांची एवं भारतीय भाषा परिषद द्वारा डॉ कुमार संजय झा के संपादन में प्रकाशित पुस्तक ‘फणीश्वरनाथ रेणु:समय, साहित्य और समाज के शिल्पी’ पर परिचर्चा आयोजित हुई। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ. शंभुनाथ ने कहा कि अंचल पर लिखते हुए भी रेणु की दृष्टि भारत माता और वैश्विक मानव-सत्य पर है। रेणु की आंचलिकता पृथकता नहीं पैदा करती है। यही वजह है कि रेणु की दृष्टि अंचल केंद्रिक नहीं बल्कि मूल्य केंद्रिक है। ऑनलाइन माध्यम से जुड़े कमल कुमार बोस ने कहा, “रेणु के साहित्य में आम जन की बातें हैं, जिनमें भारतीय ग्रामीण, जनजातीय समाज और अस्मिता को स्थान दिया गया है।”प्रोफेसर हितेंद्र पटेल ने कहा, “रेणु ग्राम्य समाज का चित्रण गाँव को देश और दुनिया से काट कर नहीं करते। उनके साहित्य में 1946 से 1977 तक का राजनीतिक इतिहास बोल उठता है। सिर्फ मेला आंचल और परिकथा नहीं, दीर्घतपा के माध्यम से वे शरणार्थियों और 1971 के मुक्ति युद्ध की कथा भी कहते हैं, जिनके नारी पात्र हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण सूत्र देने वाले चरित्र हैं।”डॉ संजय जायसवाल ने कहा, “वर्तमान समय में रेणु को और ज़्यादा याद करने की ज़रूरत है।मैला आंचल का नायक का सपना है प्रेम की खेती करना। रेणु भारतीय लोक जीवन की कथा कहने वाले लेखक हैं। रेणु की प्रतिबद्धता सामाजिक और राजनीतिक थी।” कार्यक्रम का सफल संचालन करते हुए पुस्तक के संपादक डॉ कुमार संजय झा ने पुस्तक के प्रकाशन में सहयोग के लिए सभी के प्रति आभार प्रकट किया। इस अवसर पर विमला पोद्दार,प्रो.ममता त्रिवेदी समेत कोलकाता एवं आसपास के साहित्य प्रेमी उपस्थित थे।