कोलकाता पुस्तक मेला में पढ़ने के संकट पर चर्चा
कोलकाता । कोलकाता पुस्तक मेला हर साल की तरह पुस्तक प्रेमियों का एक सांस्कृतिक उत्सव बना हुआ है। इस साल वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली और कोलकाता की भारतीय भाषा परिषद द्वारा पुस्तक मेला के प्रेस कार्नर में आयोजित परिचर्चा में पढ़ने के संकट पर चर्चा हुई। चर्चा में वरिष्ठ लेखक डा. शंभुनाथ, रांची से आए प्रसिद्ध कथाकार रणेंद्र, बांग्ला पत्रकार शिवाजी प्रतिम बसु, कवि– इंजीनियर सुनील कुमार शर्मा, वरिष्ठ लेखक मृत्युंजय श्रीवास्तव, कहानीकार शर्मिला बोहरा जालान और आशीष झुनझुनवाला ने हिस्सा लिया। वरिष्ठ लेखक शंभुनाथ ने कहा कि पढ़ने के संकट को पर्यावरण संकट जैसी चुनौती के रूप में देखना होगा। पुस्तकें हमारे सोचने और कल्पना की शक्ति को विकसित करती हैं। पुस्तकें सूचनाओं तक सीमित न रखकर ज्ञान तक पहुंचाती हैं। निश्चय ही पुस्तकों के बिना मनुष्य संवेदनहीन और अकेला होता जाएगा। इसलिए पुस्तकें न पढ़ना धीमी आत्महत्या है। संचालन करते हुए प्रो. संजय जायसवाल ने कहा कि इधर वीडियो गेम और मोबाइल में डूबे रहना युवाओं और विद्यार्थियों को पढ़ने से ही विमुख नहीं करता, उनकी पारिवारिकता और सामाजिकता को भी संकुचित कर देता है। शर्मिला बोहरा जालान ने कहा कि पढ़ने की संस्कृति बनी हुई है, पर अब वह डिजिटल माध्यम की तरफ खिसक गई है।
विद्यासागर विश्वविद्यालय के पूर्व–कुलपति और बांग्ला पत्रकार शिवाजी प्रतिम बसु ने कहा कि पढ़ने से पाठक की आलोचनात्मक दृष्टि बनती है। कवि सुनील कुमार शर्मा का कहना था, नई तकनीक के आने के बावजूद पुस्तकों का अपना महत्व है। सवाल है कि हम कैसी चीजें की पढ़ने की आदत डाल रहे है और विचारशील पुस्तकों में कितनी रुचि है। मृत्युंजय श्रीवास्तव ने कहा कि पढ़ने की संस्कृति के खतरे में पड़ने का अर्थ है कि किसी भाषा के शब्दकोश और संविधान का खतरे में पड़ना। रांची से आए वरिष्ठ कथाकार ने कहा कि पुस्तकें पढ़ने से जिज्ञासा बढ़ती है, जबकि विश्वविद्यालयों में हिंदी की पढ़ाई अब इस तरह सीमित कर दी गई है कि साहित्यिक पुस्तकों की व्यापक जरूरत प्रायः खत्म कर दी गई है।
पुस्तक मेला में वाणी प्रकाशन से धर्मवीर भारती की जन्मशती पर आई पुस्तकों के नए संस्करण, कुसुम खेमानी की ’लावण्यदेवी’ के अंग्रेजी अनुवाद और शंभुनाथ की नई पुस्तक ’हिंदू धर्म : भारतीय दृष्टि’ का लोकार्पण किया गया।
भारतीय भाषा परिषद और वाणी प्रकाशन की ओर से आरंभ में आशीष झुनझुनवाला ने प्रेस कार्नर में अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि अंग्रेजी के दुनिया के पाठकों मातृभाषा की पुस्तकें पढ़नी चाहिए। अंत में श्री घनश्याम सुगला ने धन्यवाद किया। प्रेस कार्नर में विशेष रूप से उपस्थित थे रामनिवास द्विवेदी, उदयराज सिंह, उदयभानु दुबे, मंजु श्रीवास्तव,राज्यवर्धन, प्रो. अमित राय, डॉ चित्रा माली, डॉ संजय राय,प्रो.आदित्य गिरी, आदित्य विक्रम सिंह,प्रो.दीपक कुमार, प्रो. पीयूष कांति, डॉ.धीरेंद्र प्रताप सिंह,प्रो.एकता हेला, डॉ.मधु सिंह, विकास कुमार, रूपेश यादव।इस अवसर पर सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन की ओर से विशाल साव, सुषमा कुमारी, आदित्य तिवारी,चंदन भगत, महिमा केशरी, संजना जायसवाल, फरहान अज़ीज़ ने पुस्तक संस्कृति पर विभिन्न कवियों की कविताओं पर आधारित कविता कोलाज प्रस्तुत किया।
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कविता सृजन और प्रतिरोध की जमीन है : रामनिवास द्विवेदी
कोलकाता । 48वां कोलकाता पुस्तक मेला में सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन और आनंद प्रकाशन के संयुक्त तत्वावधान में आनंद प्रकाशन बुक स्टॉल संख्या-462 पर आयोजित काव्य उत्सव में कविता पाठ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन के संरक्षक श्रीरामनिवास द्विवेदी ने कहा कविता सृजन और प्रतिरोध की जमीन है। कविताएं हमारे भीतर मनुष्यता का भाव भरती हैं।इस अवसर पर शंभुनाथ , अभिज्ञात, मृत्युंजय श्रीवास्तव, मंजु श्रीवास्तव, अतुल कुमार, महेश जायसवाल, शुभ्रा उपाध्याय, शिप्रा मिश्रा, मनोज मिश्र, संजय जायसवाल, विकास कुमार जायसवाल, शिव प्रकाश दास, रूपेश यादव,रेशमी सेनशर्मा, सूर्य देव रॉय, सुषमा कुमारी, आदित्य तिवारी ने अपनी स्वरचित कविताओं का पाठ किया। इस अवसर पर दिनेश त्रिपाठी, डॉ. सुशीला ओझा, डॉ. सुशील पाण्डेय, राजेश पाण्डेय, सौमित्र आनन्द, संजय दास, विनोद यादव, डॉ. अश्विनी झा, प्रीति सहित अन्य साहित्य व पुस्तक प्रेमी उपस्थित थे। कार्यक्रम का सफल संचालन रूपेश कुमार यादव एवं धन्यवाद ज्ञापन नीलकमल त्रिपाठी जी ने दिया।
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