सुषमा त्रिपाठी कनुप्रिया
जस्टिस फॉर निर्भया..
जस्टिस फॉर पार्क स्ट्रीट
जस्टिस फॉर कामदुनी..
जस्टिस फॉर संदेशखाली..
अब
जस्टिस फॉर आर जी कर
क्या हम जस्टिस ही मांगते रहेंगे। आंखें खोलिए क्योंकि अपराधियों को बचाने वाली और स्त्री का चरित्र हनन करने वाली भी खुद स्त्रियां ही हैं..इस राज्य की मुख्यमंत्री भी एक स्त्री ही है….हमारे आपके घरों में अपराधियों को बढ़ाने और बचाने वाली भी स्त्री है जो दुष्कर्म करने वाले अपने बेटे..पति …पिता या भाई को गर्म रोटियां बनाकर खिला रही होती है…इनका बचाव कर रही होती है..। पूरा सिस्टम अपराधियों को बचा रहा है…परिवारों में…दफ्तरों में…समाज में बचा रहा है…हमारी लड़ाई सिर्फ अपराधी से नहीं पूरे सिस्टम से होनी चाहिए….जो अपराधी को बचाए…बहिष्कार उनका कीजिए…वर्ना पत्ते उखाड़ कर कोई लाभ नहीं…। एक रात को सड़क पर उतरिए पर ये काफी नहीं…इस कार्य संस्कृति में महिलाओं के हस्तक्षेप की सख्त जरूरत है…। आज जब लिख रही हूँ तो अन्दर से कुछ टूट रहा है और कुछ खौल भी रहा है..। पत्रकारिता के क्षेत्र में जब कदम रखा था तो एक स्कूली छात्रा से दुष्कर्म व हत्या का मामला सामने था। इसी को लेकर रिपोर्टिंग की शुरुआत हुई। तब अलीपुर सेंट्रल जेल में 14 अगस्त 2004 में धनंजय चटर्जी को फांसी दी गई थी। चटर्जी ने 14 वर्षीय हेतल पारिख के साथ बलात्कार कर उसकी हत्या कर दी थी। इसके बाद 2012 में निर्भया कांड सामने आया जिसने पूरे देश को हिला दिया। स्थिति ऐसी हो गयी थी कि जब भी किसी पुरुष को देखती, अनायास ही क्रोध उमड़ जाता। उस दौरान न चाहते हुए बहुतों से उलझ पड़ती थी। निराशा, खीझ, हताशा…का यह दौर रुका नहीं….देश में अलग – अलग जगहों पर इस तरह की घटनाएं होती रहती हैं। पार्क स्ट्राट कांड जब हुआ तो उस महिला के चरित्र की छीछालेदर करने वाले खड़े हो गये…यह कहा गया रात को घूमने वाली, नशा करने वाली महिला थी, उसके साथ यही होना था। इसके बाद कामदुनी कांड और फिर रूह कंपा देने वाले संदेशखाली कांड का उजागर होना और उस पर हो रही राजनीति ने मन में वितृष्णा भर दी। खुद अपने साथ और अपने आस- पास इस तरह का व्यवहार देखा और मन में खटास तब भर आती है जब अपराधियों की सामाजिक प्रतिष्ठा पर कोई असर नहीं पड़ता, परिवार में उनकी जगह जस की तस बनी रहती है। उनकी हिफाजत के लिए घर की ही स्त्रियां ध्वज लेकर खड़ी होती हैं और जिसने सहा है, चरित्र हनन उसी का किया जाता है। 20 साल के पत्रकारिता के कॅरियर में आने से पहले भी महिला उत्पीड़न और उससे जुड़े दोगलेपन को जीने के बाद अनुभवों का दायरा बहुत विस्तृत हो गया है। आखिर कब तक हम अपने हिस्से की आजादी खैरात की तरह लेते रहेंगे? क्यों बांधती हो ऐसे भाइयों की कलाई पर राखी, जिनको राखी बांधना ही रक्षाबंधन की पवित्रता को गाली देना है। बचपन से ही पिता, भाई और बाद में पति व बेटे से मार खाते, गालियां सहते हुए यही विरासत छोड़ते हुए क्या लज्जा नहीं आती तुम्हें? पुरातन पीढ़ी और आज की पीढ़ी की लड़कियां आजादी के नाम पर हो -हल्ला तो खूब मचा रही हैं मगर क्या उनको आजादी का सही अर्थ पता है? गुड़िया बनकर किसी को जब आप रिझाने चलती हैं..वहीं आपकी आजादी खत्म हो जाती है और दूसरी लडकियों के लिए आप एक घिनौनी राह विरासत में देती हैं…यही बात लड़कों के लिए है…कोई जरूरत नहीं किसी के लिए अपनी अच्छाई और सादगी को छोड़ने की
असली साहस और बोल्ड होना…हर उस प्रस्ताव को डंके की चोट पर खारिज करना है जो आपकी गरिमा को चोट पहुंचाता हो…न करना सीखो…भले ही इसके बाद घर और बाहर तुम्हारी जिंदगी नर्क बना दी जाये…मगर तुम खुद को बचा ले जाओगे…ये कठिन है..असंभव नहीं है…ऐसे लोगों को झाड़ना सीखो और सबसे सामने झाड़ दो…घुटना नहीं नहीं है…अगर किसी बेवड़े या अपराधी के साथ हो…सीधे बहिष्कार करो । जो नशे में खुद को नहीं सम्भाल सकता वो किसी को क्या सुरक्षा देगा या देगी? जिसे अपने कपड़ों का होश नहीं..वो तुम्हारी गरिमा को क्या मान देगा या देगी? जो व्यक्ति अपने घर को छोड़कर तुमसे प्रेम का दावा कर रहा/रही है…किसी और के आने पर तुमको नहीं छोड़ेगा…इसकी क्या गारन्टी है??
रिश्ते निभाने के लिए आदर और स्नेह काफी है…इससे ज्यादा की तो जरूरत ही नहीं. .प्यार करना है..खुद से करो. ..अपने आत्मसम्मान से..अपने भविष्य से. ..अपनी रुचियों से. .अपने लक्ष्य से..अपनी किताबों से..
अपने दोस्तों से करो. ..तुम्हारे लिए सबसे बड़ा संबल तुम खुद हो. ..क्योंकि हर बार तुम्हारे जीवन का युद्ध खुद तुमको लड़ना है…तुम्हारा सबसे बड़ा सहारा. ..सबसे बड़ी शक्ति तुम खुद हो और वो जो ऊपर है. ..वही है. .सारथी उसे बनाओ. ..रास्ते खुद ही खुल जायेंगे । लडकियों रक्षा बंधन आ रहा है और ये तुम ही कर सकती हो….अगर तुम्हारे भाई ऐसे हैं तो दूसरी बहनों के बारे में सोचो और अपने साथ उनकी भी सुरक्षा का वचन लो…लड़के भी ऐसा ही करें…जो गलत राह पर जाने से रोके…असली संबंध वही है…हर गलत को न कह सको …असली आज़ादी..असली साहस वही है पर इसकी शुरुआत खुद से होगी । पहले आजादी का मतलब समझो और समझाओ ।
आखिर इतनी नृशंसता आती कहां से है? ये कौन से संस्कार परवरिश के नाम पर बच्चों को दिए जा रहे हैं जहाँ भटकाव के अतिरिक्त कुछ नहीं। क्या शराबखोरी को महिमामंडित करके आप अपराध कम कर सकते हैं? क्या मां – बहनों के नाम की गाली देकर आप समाज में स्त्री स्वाधीनता को प्रतिष्ठित कर सकते हैं? ऐसा क्यों है कि हर एक स्त्री आपके लिए सिर्फ एक देह बनकर रह जाती है? स्वाधीनता दिवस का उत्सव सारा देश मना रहा है मगर उत्सव जैसा कुछ लगे तब तो हम उत्सव मनाएं। क्या 15 अगस्त और 26 जनवरी पर झंडा फहराकर और दो – चार देशभक्ति गीत गा लेना ही स्वाधीनता का मतलब रह गया है।
इस देश में माताओं को बड़ा आदर दिया जाता है, जरा माताएं पूछें खुद से कि अपने बेटों को कैसे संस्कार दे रही हैं ? क्या परवरिश का मतलब प्यार में अंधा होकर समाज को अपराधी देना भर रह गया है? क्या आप अपनी भूमिका के साथ न्याय कर पा रही हैं और अगर नहीं कर पा रही हैं तो आपको सम्मान मिलना ही क्यों चाहिए? क्या मुफ्तखोर संस्कृति हम पर इतनी भारी है कि हम सच को सच कहने का साहस नहीं जुटा पा रहे ..क्या यही वह बंगाल है जहां प्रीतिलता वादेदर, बाघा जतीन, खुदीराम बोस, नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने जन्म लिया ? क्या कैसा बंगाल है जो अपने पूर्वजों के अपमान पर चन्द रुपयों के लालच में चुप्पी साधे रहा । हम सब जानते हैं कि संदेशखाली में किस तरह की बर्बरता की गयी, सब जानते हैं कि किस प्रकार वहाँ पर गुंडों ने आतंक मचाया…क्या यह वही ममता हैं जो तापसी मलिक की लाश लेकर राजनीति करती रही हैं। निर्भया कांड में सवाल उठे कि रात को वह क्या कर रही थी, पार्क स्ट्रीट में इस सवाल के साथ चरित्र हनन भी जोड़ दिया गया। सब जानते हैं कि आरजी कर कांड में सत्ता का वरदहस्त प्राप्त अपराधी शामिल हैं मगर कोई कुछ नहीं कह रहा है, सबके मुंह पर ताले पड़ गये हैं ।
आरजी कर मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल में महिला डॉक्टर के साथ हुई हैवानियत का सच सामने आ गया है। यहां चेस्ट विभाग में पीजी के दूसरे साल की छात्रा का शव सेमिनार हॉल में मिला था।शव को देखते हुए दुष्कर्म के बाद हत्या की आशंका जताई गई थी और पोस्टमार्टम रिपोर्ट में इसकी पुष्टि हुई है। रिपोर्ट में सामने आया है कि गला घोंटकर महिला की हत्या की गई। इस दौरान लगातार उसका मुंह और गला दबाए रखा ताकि उसकी आवाज न निकले। इसी वजह से महिला के गले की हड्डी भी टूट गई। चार पन्ने की रिपोर्ट में बताया गया है कि महिला के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध जबरन बनाए गए। इसी वजह से उसके प्राइवेट पार्ट्स से खून निकल रहा था। महिला डॉक्टर की हत्या और दुष्कर्म 9 अगस्त को तड़के 3 बजे से 5 बजे के बीच हुआ था। आरोपी ने महिला का मुंह और नाक बंद करके उसका सिर दीवार से सटा दिया ताकि वह चीख चिल्ला न सके। महिला के चेहरे पर खरोंच के निशान हैं, जो आरोपी के नाखूनों से बने हैं। इससे साफ होता है कि महिला ने खुद को बचाने और लड़ने की पूरी कोशिश की थी। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि महिला की दोनों आखों, मुंह और प्राइवेट पार्ट से खून निकल रहा था। हालांकि, आंखों से खून निकलने की वजह पोस्टमार्टम में नहीं पता चल पाई है। आरोपी ने स्वीकार किया है कि वह बॉक्सर रह चुका है और जब उसने महिला के चेहरे पर मुक्का मारा तो चश्मे का कांच उसकी आंखों में चला गया। इसी वजह से आंख से खून निकला था। आरोपी अस्पताल में ही काम करता था। उसके पास सभी विभागों में आने-जाने की अनुमति थी। सीसीटीवी फुटेज में वह सुबह 4 बजे सेमिनार हॉल में जाता दिखा था। इसके बाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार करके पूछताछ की। महिला के शव के पास ब्लूटूथ इयरफोन भी मिले थे, जो आरोपी के फोन से कनेक्ट हो गए। ऐसे में पुलिस का शक यकीन में बदल गया। आरोपी ने भी दुष्कर्म और हत्या की बात स्वीकार की है। हाईकोर्ट ने मामले की जांच सीबीआई को सौंप भले दी हो मगर सबूतों को मिटाने का प्रयास आरम्भ हो गया है। वैसे भी सीबीआई के पास पहले से ही इतने मामले हैं..एक के बाद एक मामले जुड़ते रहेंगे पर क्या इससे कोई ठोस समाधान निकलेगा? कल्पना कीजिए कि देश के सुदूर देहात में क्या स्थिति होगी और वहां की मीडिया के लिए काम करना कितना कठिन होगा..एक अजीब सी घुटन और एक अजीब सी संड़ाध इस पूरे वातावरण में है…
क्या अपने सम्मान..अस्तित्व की रक्षा करते हुए आगे बढ़ना क्या इतना बड़ा अपराध है कि बार – बार हर जगह लड़कियों को औकात ही दिखाई जाती रहती है? क्या एक स्वस्थ समाज की रचना और उसे सहेजना इतना कठिन है कि हम आने वाली पीढ़ी को कुछ दे ही न सकें। क्यों नहीं ..स्त्री – पुरुष एक दूसरे की उपस्थिति को सम्मान दे पा रहे हैं। आजादी के बीच आजादी का सही अर्थ तलाशने की जरूरत है कि हम भारतीय होने के नाते आने वाली पीढ़ी को एक सशक्त भारत दे सकें।