कार्यस्थल पर जेंडर समानता एक मिथक है

शिवांशी तनु
जी, आपने सही सुना है, किसी भी प्रोफेशन में लड़कियां सुरक्षित नहीं होती हैं। न मेडिकल, न मीडिया, न ही किसी भी और प्रोफेशन में। पर ज्यादातर समय लड़कों को बहुत ज्यादा परेशानी नहीं होती (हां, कुछ मामले ऐसे भी जरूर हुए है या होते हैं जब एक लड़के को भी उतनी ही या उस तरह की समस्याएं झेलनी पड़ती है, जितनी किसी लड़की को)
वेतन के लिहाज से तो समानता होती ही नहीं है… क्योंकि लड़कों को तो घर चलाना होता है.. इसलिए उन्हें ज्यादा और टाइम पर सैलरी दी जाती है (पर्सनल एक्सपीरियंस है भई)
सेक्सुअल हैरेसमेंट… काम करना है तो बर्दाश्त करना सीखो… और अगर किसी से शिकायत भी कर दिए तो ये भी सुनने के लिए तैयार रहो कि लड़की ने ही प्रोवोक किया था… अगर एक्शन लिया गया तो ये सुनो कि लड़की ने उस लड़के का कॅरियर बर्बाद कर दिया।
पर इन सब में क्या किसी ने कभी भी उस लड़की के बारे में सोचा, जो रात दिन एक करके लड़कों के बराबर काम करती है या शायद कभी लड़कों से भी ज्यादा। क्योंकि जब एक लड़की अपने प्रोफेशन लाइफ में काम करने आती है तब वो ये भूल जाती है कि वो लड़की है… उसकी लिमिट्स क्या है…वो कितनी देर या कौन सा काम कर सकती है। एक लड़की सिर्फ अपना 100% देकर काम करती है।
और सेक्सुअल हैरेसमेंट, तो जनाब जब आप अपने ऊपर किसी और का हुकुम चलाना पसंद नहीं करते तो एक लड़की को उसकी मर्जी के बिना छूने की हिम्मत कैसे कर लेते हैं?

शुभजिता

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