ऊषा उत्थुप के संघर्ष की बात करें, इससे पहले कुछ गाने याद कीजिए. ‘दोस्तों से प्यार किया, दुश्मनों से बदला लिया… जो भी किया हमने किया…शान से’, ‘हरि ओम हरि-हरि ओम हरि, ‘रंबा हो हो… संबा हो, कोई यहां आहा नाचे नाचे, कोई वहां आहा नाचे नाचे, एक दो च च च, डार्लिंग आंखों से आंखे चार करने दो।
ये वो चुनिंदा गाने हैं जो कहीं भी बज रहे हों, आप गुनगुनाने लगते हैं. ये सारे गाने प्लेबैक सिंगर ऊषा उत्थुप की बड़ी पहचान हैं। उनकी आवाज अलग है। उनकी अदायगी अलग है. उनका अंदाज अलग है. लेकिन ये पहचान बनाना उनके लिए बहुत मुश्किल था। हुआ यूं कि ऊषा को गायकी का शौक बचपन से था. एक रोज वो स्कूल टीचर के पास गईं। छोटी सी ऊषा ने संगीत सीखने की इच्छा जताई. टीचर ने जब ऊषा उत्थुप का गाना सुना, तो उन्होंने मना कर दिया। शिक्षक का कहना था कि ऊषा की आवाज गायकी के लिए है ही नहीं. गायकी के लिए आवाज में मुलायमियत होनी चाहिए जबकि ऊषा उत्थुप की आवाज मर्दानी आवाज के काफी करीब थी। शिक्षक के इस बेरूखे अंदाज का सामना कम ही बच्चे कर सकते हैं। आप ही सोच कर देखिए अगर किसी छोटी सी बच्ची को टीचर ऐसे मना कर दे तो ज्यादातर बच्चे मायूस हो जाएंगे। उनकी आंखों में आंसू होंगे लेकिन ऊषा उत्थुप ने इसका ठीक उलट किया. उन्होंने टीचर की बात को ही अनसुना कर दिया, जैसे गाती थीं वैसे ही गाती रहीं।
ऊषा उत्थुप को कहां से लगा संगीत का चस्का – आजादी के कुछ ही महीने बाद की बात है. मुंबई में ऊषा उत्थुप का जन्म हुआ। पिता क्राइम ब्रांच में नौकरी करते थे. ऐसे परिवार में संगीत हो, ऐसा कम ही सोचा जाएगा लेकिन ऊषा की मां को संगीत का बहुत शौक था. वो शौकिया गाती भी थीं। दिलचस्प बात ये है कि पचास के दशक में भी ऐसा नहीं था कि इस परिवार में कुछ चुनिंदा कलाकारों को सुना जाता हो. बल्कि गजब की वेराइटी थी. वेस्टर्न क्लासिकस में बीथोवेन, मोजार्ट सुने जाते थे। भारतीय शास्त्रीय संगीत में पंडित भीमसेन जोशी, बड़े गुलाम अली खान, बेगम अख्तर से लेकर किशोरी अमोनकर की आवाज घर में गूंजती रहती थी यानि संगीत के शौक की ‘रेंज’ भी कमाल की थी। ऊषा उत्थुप में संगीत के संस्कार यहीं से आए।स्कूल में जैसे ही खाली समय मिलता ऊषा उत्थुप की गायकी शुरू हो जाती। पढ़ाई की टेबल तबले में तब्दील हो जाती. क्लास के बाकि बच्चे ‘कोरस’ में शामिल हो जाते।
ये सिलसिला काफी समय तक चला. घर पर ऊषा की बहनों को भी गाने का शौक था। कुल मिलाकर संगीत सुनने का चस्का धीरे-धीरे गायकी सीखने की तरफ बढ़ा लेकिन जब संगीत सीखने की इच्छा जताई तो उन्हें नकार दिया गया लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ कि ऊषा ने अपने इरादे मजबूत कर लिए. ऊषा 22 साल की थीं, मद्रास में एक कार्यक्रम में उन्होंने गाया। खूब तालियां बजीं. हालांकि वो एक इंग्लिश गाना था। उस दिन मिली तारीफ से ऊषा उत्थुप को एक बड़ा सबक मिला. उन्होंने समझ लिया कि अगर गायकी में पहचान बनानी है तो सबसे पहले ‘ओरिजिनल होना बहुत जरूरी है। इसके बाद वो गायकी के रास्ते पर निकल गयी।
नाइट क्लब में गायकी से शुरू हुआ था सफर – ऊषा उत्थुप ने तो सिंगर बनने का फैसला कर लिया था, लेकिन वो उस दौर में ये प्रयास करने जा रही थीं जब इंडस्ट्री में लता मंगेशकर, आशा भोंसले जैसी गायिका थीं. ऐसे में ऊषा का सफर नाइट क्लब में गायकी के साथ शुरू हुआ। दिल्ली में ऐसे ही एक कार्यक्रम के दौरान ऊषा उत्थुप की किस्मत बदली. दिल्ली से पहले मद्रास, कोलकाता जैसे शहरों में भी ऊषा उत्थुप ने नाइट क्लबों में गायकी की थी। ऊषा की वेशभूषा भी अलग ही होती थी- आज भी वो वैसी ही हैं। चटक रंग की साड़ी… बड़ी सी बिंदी. ऊषा जब नाइट क्लब में फिल्मी गाने गाती थीं तो उस दौरान एक और गाना उनका पसंदीदा था-काली तेरी गुथ ते परांदा तेरा लालनी। दिल्ली के उस नाइट क्लब में नवकेतन फिल्म्स की यूनिट के कुछ बड़े लोग मौजूद थे। उस समय ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ फिल्म के लिए काम चल रहा था। ये उस दौर के बहुत बड़े स्टार देव आनंद की फिल्म थी। इस फिल्म का संगीत पंचम दा बना रहे थे। फिल्म की यूनिट के लोगों ने क्लब में गा रही लड़की के बारे में पता किया। सारी जानकारी इकट्ठा करने के बाद उन्होंने ऊषा उत्थुप से संपर्क किया. ऑफर बिल्कुल सीधा था- क्या आप हमारी अगली फिल्म में गाएंगी? ऊषा के सामने कोई ऐसी वजह नहीं थी कि वो मना करतीं. उन्होंने हामी भर दी। उस फिल्म के लिए गाना बना- हरे कृष्णा हरे राम…बाकि इसके बाद की कहानी इतिहास में दर्ज है। ऊषा उत्थुप के गाने पर आज भी लोग झूमते हैं- नाचते हैं। ऊषा उत्थुप गायकी के साथ साथ एक्टिंग भी कर चुकी हैं लेकिन वो कहती है उन्होंने जो गाया दिल से गाया। अपनी जिंदगी को वो अपने ही गाने से परिभाषित करती हैं- दोस्तों से प्यार किया, दुश्मनों से बदला लिया… जो भी किया हमने किया…शान से।