गणतंत्र दिवस विशेष : संविधान ही नहीं, अधिकार भी जानें

भारत आज अपना 75वां गणतंत्र दिवस मना रहा है। गणतंत्र दिवस भारत का एक राष्ट्रीय पर्व है। इस दिन भारत का संविधान लागू हुआ था। भारत ने आज के दिन समानता, धर्मनिरपेक्षता और स्वशासन के लिए प्रतिबद्ध एक गणतंत्र के रूप में अपनी पहचान अपनाई। हमारे संविधान ने महिलाओं को आजादी से जीने के लिए कई अधिकार दिए हैं, जिनका इस्तेमाल हम एक सम्मान भरी जिंदगी जीने के लिए कर सकते हैं। लेकिन अपने संविधान की ही तरह क्या वाकई महिलाएं अपने अधिकारों को अच्छी तरह जानती हैं। समाज इस बात को स्वीकार करे या ना करे, पर यह सच्चाई है कि महिलाओं पर जिम्मेदारियों का दोहरा बोझ होता है। घर,ऑफिस,बच्चे,परिवार और रसोई की जिम्मेदारियां अकसर एक-दूसरे से घालमेल होती नजर आती हैं। पर, जिम्मेदारियों का इतना बोझ उठाने का मतलब यह नहीं है कि उन्हें अपने सारे वाजिब अधिकार भी मिल जाते हैं। कभी वह घर में तिरस्कार का शिकार हो जाती है, तो कभी ऑफिस में शोषण का। उसे कई बार सिर्फ औरत होने का खामियाजा भुगतना पड़ता है, तो कई बार अपने अधिकारों की जानकारी का अभाव उसे शोषण का शिकार रहने के लिए मजबूर कर देता है। यह समझना जरूरी है कि हम महिलाओं के ऊपर सिर्फ जिम्मेदारियों का बोझ ही नहीं है बल्कि हमारे पास अपनी हिफाजत के लिए कई अधिकार भी हैं। जैसे मातृत्व अवकाश का अधिकार, घर में रहने का अधिकार, ऑफिस में समान वेतन का अधिकार, अपनी बात रखने का अधिकार आदि। समय की जरूरत है कि हम महिलाएं ना सिर्फ अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहें बल्कि उन्हें उठाने के लिए उचित कदम भी उठाएं।
मातृत्व से जुड़े अधिकार- क्या आप जानती हैं कि गर्भवती महिलाओं को संविधान द्वारा कुछ खास अधिकार प्राप्त हैं? संविधान के अनुच्छेद -42 के तहत कामकाजी महिलाओं को तमाम अधिकार हासिल हैं। इसमें महिला यदि किसी सरकारी और गैर सरकारी संस्था, फैक्ट्री में जिसकी स्थापना इम्प्लॉइज स्टेट इंश्योरेंस एक्ट, 1948 के तहत हुई हो में काम करती है, तो उसे मातृत्व से जुड़े तमाम लाभ मिलेंगे, जिसमें 12 सप्ताह से लेकर छह माह तक का मातृत्व अवकाश शामिल है। इस अवकाश को वह अपनी आवश्कता के अनुसार ले सकती है। गर्भपात की स्थिति में भी इस एक्ट का लाभ मिलता है। महिला गर्भावस्था या फिर गर्भपात के चलते बीमार हो जाती है, तो मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर उसे अतिरिक्त एक महीने की छुट्टी मिल सकती है। महिला को मैटरनिटी लीव के दौरान किसी तरह के आरोप पर नौकरी से नहीं निकाला जा सकता। अगर उसे यह सुविधा नियोक्ता द्वारा नहीं दी जाती है, तो वह इसकी शिकायत कर सकती है। यहां तक कि वह कोर्ट भी जा सकती है।
मुफ्त कानूनी सलाह का अधिकार – अगर कोई महिला किसी केस में आरोपी है, तो वह मुफ्त कानूनी मदद ले सकती है। वह अदालत से मुफ्त में सरकारी खर्चे पर वकील की गुहार लगा सकती है, जिसे महिला की आर्थिक स्थिति देखते हुए मुहैया कराया जाता है। पुलिस महिला की गिरफ्तारी के बाद कानूनी सहायता कमिटी से संपर्क करती है और महिला की गिरफ्तारी के बारे में उन्हें सूचित किया जाता है। लीगल ऐड कमेटी महिला को मुफ्त कानूनी सलाह देती है।
स्त्री धन है सिर्फ आपका – स्त्री धन? हैरान होने की जरूरत नहीं है। यह वह धन है, जो महिला को शादी के वक्त उपहार के तौर पर मिलता है। इस पर महिला का पूरा हक होता है। इसके अतिरिक्त वर-वधू दोनों के इस्तेमाल के लिए साझा सामान दिए जाते हैं, वह भी इसी श्रेणी में आते हैं। इस बाबत वरिष्ठ अधिवक्ता संजीव गुप्ता कहते हैं कि अगर ससुरालवालों ने महिला का स्त्री धन अपने पास रख लिया है तो महिला इसके खिलाफ आईपीसी की धारा 406 (अमानत में खयानत) की भी शिकायत दर्ज करा सकती है।
आपकी हां, है जरूरी – महिला की सहमति के बिना उसका गर्भपात नहीं कराया जा सकता। जबरन गर्भपात कराए जाने के लिए सख्त कानून मौजूद हैं। अब आप सोच रही होंगी कि गर्भपात करना ही कानूनी नहीं है। पर, कुछ खास परिस्थितियों में गर्भपात कराया जा सकता है। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रग्नेंसी एक्ट के तहत अगर गर्भ के कारण महिला की जान को खतरा हो या फिर स्थिति मानसिक और शारीरिक रूप से गंभीर परेशानी पैदा करने वाली हों या फिर गर्भ में पल रहा बच्चा विकलांगता का शिकार हो तो गर्भपात कराया जा सकता है।
लिव इन के भी हैं अधिकार – अब लिव इन रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता मिल चुकी है। पर यहां सबसे पहले यह समझना होगा कि आखिर लिव इन है क्या? सिर्फ उसी रिश्ते को लिन-इन रिलेशनशिप माना जा सकता है, जिसमें स्त्री और पुरुष विवाह किए बिना पति-पत्नी की तरह रहते हैं। इसके लिए जरूरी है कि दोनों बालिग और शादी योग्य हों। यदि दोनों में से कोई एक भी पहले से शादीशुदा है, तो उसे लिव-इन रिलेशनशिप नहीं कहा जाएगा। इस रिश्ते में रहने वाली महिलाओं को भी घरेर्लू ंहसा कानून के तहत सुरक्षा हासिल है। अगर उसे किसी भी तरह से प्रताड़ित किया जाता है, तो वह अपने साथी के खिलाफ इस एक्ट के तहत शिकायत कर सकती है। ऐसे में संबंध में रहते हुए उसे राइट-टू-शेल्टर भी मिलता है। यानी जब तक यह रिश्ता कायम है, तब तक उसे घर से निकाला नहीं जा सकता। लिव-इन में रहने वाली महिला गुजारा भत्ता पाने की भी अधिकारी है।
एफआईआर दर्ज होगी कहीं भी – डीवी एक्ट की धारा-12 इसके तहत महिला मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट की कोर्ट में शिकायत कर सकती है। शिकायत की सुनवाई के दौरान अदालत सुरक्षा अधिकारी से रिपोर्ट मांगता है। महिला जहां रहती है या जहां उसके साथ घरेर्लू ंहसा हुई है या फिर जहां प्रतिवादी रहते हैं, वहां शिकायत की जा सकती है। सुरक्षा अधिकारी घटना की रिपोर्ट अदालत के सामने पेश करता है और उस रिपोर्ट को देखने के बाद अदालत अपना आदेश पारित करती है। इस दौरान अदालत महिला को उसी घर में रहने देने , खर्चा देने या फिर उसकी सुरक्षा का आदेश दे सकती है। अगर अदालत महिला के पक्ष में आदेश पारित करती है और प्रतिवादी उस आदेश का पालन नहीं करता है तो डीवी एक्ट-31 के तहत प्रतिवादी पर केस बनता है।
पिता की नौकरी पर भी है अधिकार – नौकरी पर रहते हुए पिता की मौत होने पर बेटियों को भी मुआवजे के तौर पर नौकरी पाने का अधिकार है। फिर चाहे बेटी शादीशुदा हो या कुंवारी। 2015 से लागू हुए नियम के तहत नौकरी में रहते हुई पिता की मौत पर शादीशुदा बेटी भी मुआवजे में पिता की नौकरी पाने का अधिकारी रखती है।
समान वेतन का अधिकार – समानता का अधिकार महिलाओं के कार्यक्षेत्र में सामान वेतन पर भी लागू होती है, जिसमें एक जैसा काम करने वाले महिला-पुरुष को एक सा वेतन मिलेगा । कंपनी में जितनी भी सुविधा पुरुष कर्मचारी को मिलती है, उतनी ही सुविधा महिला कर्मचारी को भी मिलेगी। कुछ खास जगहों को छोड़कर शाम सात बजे के बाद और सुबह छह बजे के पहले महिला कर्मचारी को काम पर नहीं लगाया जा सकता है। छुट्टी के दिन महिला कर्मचारी को काम पर नहीं बुलाया जा सकता है। अगर उन्हें बुलाना है तो उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करनी होती है। अगर कोई कंपनी इस कानून को मानने से इंकार करती है तो उसके मालिक को सजा का प्रावधान है। समस्या होने पर श्रम आयुक्त से शिकायत की जा सकती है।
घरेलू हिंसा का शिकार महिला को घर में रहने का पूरा अधिकार है। धारा 17-18 के तहत कानून प्रक्रिया के अतिरिक्त उसका निष्कासन नहीं किया जा सकता।
घरेलू हिंसा की शिकायत व्यक्ति के घरेलू संबंध में रहने वाली महिला के द्वारा अथवा उसके प्रतिनिधि द्वारा दर्ज कराई जा सकती है। पत्नी, बहनें ,माताएं, बेटियां भी शिकायत दर्ज करवा सकती हैं।
आईपीसी की धारा 354डी के अंतर्गत किसी महिला का पीछा करने, बार-बार मना करने के बाद भी संपर्क करने, इलेक्ट्रॉनिक कम्यूनिकेश जैसे ई-मेल, इंटरनेट आदि के जरिए मॉनिटर करने वाले शख्स पर कानूनी कार्रवाई हो सकती है।
आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013 के तहत स्टॉकिंग करने पर जेल हो सकती है।
किसी महिला को सूरज डूबने के बाद और उगने से पहले गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। किसी खास मामले में एक प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट के आदेश पर ही यह संभव है।
प्रत्येक पुलिस स्टेशन में एक महिला पुलिस अधिकारी (हेड कांस्टेबल से नीचे नहीं होना चाहिए) पूरे समय होना अनिवार्य है।
महिला कॉन्स्टेबल की अनुपस्थिति में, पुरुष पुलिस अधिकारी द्वारा महिला को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता।
महिला की तलाशी सिर्फ महिला पुलिस कर्मी ही ले सकती है।
बिना वॉरेंट गिरफ्तार महिला को तुरंत गिरफ्तारी का कारण बताना जरूरी है और उसे जमानत संबंधी अधिकार के बारे में भी बताना जरूरी है।
पुलिस केवल महिला के निवास पर ही उसकी जांच कर सकती है।
एक बलात्कार पीड़िता अपनी पसंद के स्थान पर ही अपना बयान रिकॉर्ड कर सकती है और पीड़िता की चिकित्सा प्रक्रिया केवल सरकारी अस्पताल में ही हो सकती है।

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