शक्ति संचित कर पुनः
पहुँच गया है चांद तक
भारत फिर उठ खड़ा हुआ है,
अपना सीना तान कर।
उदित हुआ है भाग्य देश का,
बेटियाँ भी शान बढ़ा रही,
स्वर्ण, चांदी और कांस्य जीत कर,
देश का मान बढ़ा रही
बेटों के भी क्या कहने,
दुश्मन से हर बाजी जीत रहे,
यदि देश पर आंच भी आए,
तो घर में घुसकर पीट रहे
पर हृदय के किसी कोने में,
तपती आग का गोला है,
पूर्वजों से हुई भूल को,
भरतवंशी कभी न भूला है
अब भी चीखें गूंज रही हैं
राखों में, शमशानों में,
बांट दिया निज माता को ही,
सत्ता के मतवालों ने,
हुईं थी खण्डित सती भी कभी,
पुनर्जन्म फिर पाया था,
महिषासुर मर्दन करके,
माँ ने जग को जगाया था
खण्ड विखण्ड इस पुण्यभूमि को,
फिर से अखण्ड बनना होगा,
हे भारत की संतति,
तुमको भी अब जगना होगा।