झारखंड के रेलवे स्टेशन को चमकाने वाली ‘सोहराई’ ने बदली जयश्री की तकदीर

रांची । झारखंड की सोहराई कला 10 हजार साल पुरानी है। रांची की जयश्री इंदवार इस प्राचीन लोक कला को फिर से राष्ट्रीय फलक पर पहचान दिलाने में जुटी हैं। खास बात यह है कि जयश्री इंदवार इस काम को अकेले न करके महिलाओं को एक समूह से जोड़कर कर रही हैं। जयश्री के ऐसा करने से महिलाएं झारखंड समेत देश के कई राज्यों में सोहराई कला को जीवंत तो बना ही रहे हैं। ऐसा करके वे खुद भी आत्मनिर्भरता की राह पर चल रही हैं।
पक्के मकान बनने से सोहराई कला का महत्व हुआ कम
बढ़ते शहरीकरण के इस दौर में सोहराई कला के समक्ष कई चुनौतियां आने लगी। मिट्टी के घरों की जगह पक्के मकानों ने अपना आकार ले लिया। इन वजहों से भित्ति चित्र यानी सोहराई पेंटिंग को इन अट्टालिकाओं में जगह नहीं मिल पा रही। इस लोक कला को बढ़ावा देने के लिए जयश्री ने वर्ष 2005 में प्रयास शुरू किया। शुरुआती दिनों में जयश्री के साथ महिलाओं का इतना बड़ा समूह नहीं था। वे पहले कपड़ों पर सोहराई पेंटिंग करती थी लेकिन लोगों की रूचि नहीं होने के कारण जयश्री ने कुछ नया करने का सोचा और दीवारों को ही अपनी कला प्रदर्शनी का जरिया बनाना शुरू कर दिया। इस काम में जब जयश्री को सफलता मिलने लगी तब उन्होंने महिलाओं की एक टीम बनाई जिसे ‘स्तंभ’ ट्रस्ट का नाम दिया। इस ट्रस्ट के माध्यम से आज सैकड़ों महिलाएं जयश्री इंदवार के साथ में काम कर रही हैं। सोहराई कला को पहचान दिला रही हैं और आर्थिक रूप से मजबूत भी बन रही है।
रांची रेलवे स्टेशन को सजाने और संवारने का काम
जयश्री इंदवार और इनकी टीम की ओर से बनाई गई पेंटिंग ने झारखंड में अपनी एक अलग पहचान बनाई है। रांची रेलवे स्टेशन को जयश्री और उनकी टीम ने हाल ही में सोहराई पेंटिंग से सजाने और संवारने का काम किया है। इसके अलावा हटिया रेलवे स्टेशन और गोमो स्टेशन समेत कई सरकारी भवन, पर्यटन स्थल और अन्य कई जगहों पर यदि आपको सोहराई पेंटिंग दिख रही हो तो मान लीजिए की इनमें से अधिक से अधिक चित्रकारी रांची की जयश्री इंदवार और उनकी स्तंभ ट्रस्ट की ओर से महिलाओं ने ही किया है।
कई जिलों की महिलाओं को लोक कला में प्रशिक्षण
जयश्री इंदवार समय-समय पर पेंटिंग एग्जिबिशन, वर्कशॉप और विभिन्न शैक्षणिक संस्थाओं के माध्यम से भी इस कला को आगे बढ़ाने के लिए दिन रात प्रयास करती रहती हैं। झारखंड के कई जिले जैसे रांची, गुमला और लोहरदगा समेत अन्य इलाकों की सैकड़ों महिलाओं और युवतियों को जयश्री ने पहले प्रशिक्षित करने का काम किया और उसके बाद उन्हें इस कला से जोड़ा है। हाथों में हुनर आ जाने से आज कई महिलाएं आर्थिक रूप से स्वावलंबी बन गई हैं। सोहराई पेंटिंग की अच्छी डिमांड होने की वजह से अब इन्हें रोजगार के लिए भटकने की भी जरूरत नहीं पड़ रही है।
राज्यपाल और कई हस्तियों ने किया सम्मानित
एक कलाकार की कला तब और अधिक निखरती है जब समाज उसे सराहने का काम करता है। झारखंड के लुप्त हो रही चित्रकला को अपने जुनून के बल पर फिर से एक मुकाम पर ले जाने वाली जयश्री इंदवार को कई जगहों पर सम्मानित भी किया गया। जयश्री इंदवार के काम को तब और अधिक पहचान मिली जब रेल मंत्री पीयूष गोयल ने उन्हें सम्मानित किया था। राज्य के तत्कालीन राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू, रमेश बैस, राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास और ट्राईबल एसोसिएशन समेत कई जानी-मानी हस्तियों और संस्थाओं ने अलग-अलग मौकों पर जयश्री इंदवार को सम्मानित किया।
सोहराई कला के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण का संदेश
सोहराई कला को आगे बढ़ाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही जयश्री इंदवार की पहचान सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है, बल्कि सामाजिक सरोकारों से भी जयश्री इंदवार पूरी तरह से जुड़ी हुई रहती हैं। बात नारी सशक्तीकरण की हो या फिर पर्यावरण संरक्षण की। इन जैसे तमाम मुद्दों पर जयश्री इंदवार काम करने के लिए पहली कतार में खड़ी रहती हैं। बात यदि घर की की जाए तो उनके इस काम में उनके पति संजय और बच्चों का भी पूरा प्रोत्साहन रहता हैं।
(साभार – नवभारत टाइम्स)

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