‘युद्ध और शांति : हिंदी साहित्य के परिप्रेक्ष्य में’ विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न

कल्याणी । हिंदी विभाग, कल्याणी विश्वविद्यालय के प्रेमचंद सभागार में हिंदी विभाग और आई. क्यू. ए. सी. के संयुक्त तत्वावधान में ‘युद्ध और शांति : हिंदी साहित्य के परिप्रेक्ष्य में’ विषय पर एकदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. डॉ. मानस कुमार सान्याल ने दीप-ज्वलन कर संगोष्ठी का उद्घाटन किया और कार्यक्रम के आरंभ में विभाग के विद्यार्थियों अंजलि चौधरी, पूर्णिमा हरि, अंजलि यादव, अनुश्री साव, प्रिया सिंह, देविका साहनी, रुंपा तिवारी, वरुण साव और नितेश मांझी ने हरिवंश राय बच्चन की कविता ‘अंधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है’ का समूह-गायन प्रस्तुत कर सबका मन मोह लिया।
उद्घाटन सत्र में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. डॉ. मानस कुमार सान्याल ने सबका अभिवादन करते हुए कहा कि युद्ध और शांति आज के समय का बेहद प्रासंगिक विषय है। डॉ. बी. आर. अंबेडकर इंस्टीट्यूट की कुलपति प्रो. डॉ. सोमा बंद्योपाध्याय ने अपने संदेश में कहा कि वर्तमान में युद्ध आर्थिक उद्देश्यों के लिए लड़ें जाते हैं जो अंततः लड़ाई, भुखमरी और अनियंत्रित महंगाई को बढ़ावा देते हैं। संगोष्ठी में उपस्थित कला और वाणिज्य संकाय के अधिष्ठाता प्रो. डॉ. अमलेंदु भुइयां ने रामायण और महाभारत का संदर्भ देते हुए कहा कि यद्ध शांति और सत्य को स्थापित करने का अंतिम विकल्प होता है। आई. क्यू. ए. सी. के निदेशक प्रो. नंद कुमार घोष ने कहा कि युद्ध विरोधी वातावरण की सृष्टि करना ही किसी भी साहित्य का लक्ष्य होता है। लोक संस्कृति विभाग के अध्यक्ष प्रो. डॉ. सुजय कुमार मंडल ने मानवता को सर्वोच्च मूल्य स्वीकार किया। उद्घाटन सत्र में विभाग के एसोसिएट प्रोफोसर डॉ. हिमांशु कुमार ने विषय प्रस्तावना करते हुए कहा कि युद्ध आज कोमोडिटी हो गया है। युद्ध के प्रभावों पर विचार करने के साथ-साथ हमें युद्ध के कारणों की गहराई से पड़ताल करनी होगी। वैश्विक वर्चस्व की लड़ाई और साम्राज्यवाद के नए रूप को भी हमें युद्ध के आधारों के रूप में समझने की जरूरत है। विभागाध्यक्ष डॉ. विभा कुमारी ने उद्घाटन सत्र का संचालन करते हुए कहा कि हिंदी साहित्य युद्ध के भीषण प्रभावों के कारण उसकी खिलाफत और प्रेम, करुणा, सौहार्द जैसे मानवीय मूल्यों की निरंतर वकालत करता रहा है।

पहले तकनीकी सत्र के अध्यक्ष भारतीय भाषा परिषद के निदेशक, वागर्थ पत्रिका के संपादक और वरिष्ठ आलोचक शंभुनाथ ने कहा कि युद्ध दरअसल करोड़ों लोगों को भूखा रखने का तरीका है। धनांधता, धर्मांधता और राष्ट्रांधता को अब तक के युद्धों का कारण बताते हुए उन्होंने हिंदी साहित्य के युद्ध विरोधी तत्वों की पड़ताल की। पहले तकनीकी सत्र के वक्ता बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर महत्वपूर्ण कवि और आलोचक डॉ. आशीष त्रिपाठी ने युद्ध के आधारभूत तत्वों की चर्चा करते हुए कहा कि हत्या मनुष्य का प्रभावशाली आविष्कार है। प्रथम विश्वयुद्ध, द्वितीय विश्वयुद्ध, शीत युद्ध और हाल के रूस-यूक्रेन युद्ध के समानांतर हिंदी कविता की चर्चा करते हुए युद्ध विरोध में लिखी गई दार्शनिक कविताओं के बजाय यथार्थवादी कविताओं को महत्वपूर्ण बताया। इस संदर्भ में उन्होंने हिंदी के समकालीन कवि सोमदत्त की कविता ‘काग्रुएवात्स में पूरे स्कूल के साथ तीसरी क्लास की परीक्षा’ का बार-बार जिक्र किया। विद्यासागर विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. संजय कुमार जायसवाल ने नाट्य साहित्य के संदर्भ में विषय पर बोलते हुए कहा कि पूँजीवादी उभार और साम्राज्यवादी सोच ने एक ओर युद्ध-परिस्थिति निर्मित की, वहीं दूसरी ओर साहित्य ने मानवीय संवेदनाओं को जागृत कर युद्ध विरोधी मानसिकता तैयार की।
दूसरे तकनीकी सत्र की अध्यक्षता हिंदी विभाग, कलकत्ता विश्वविद्यालय के पूर्व अध्यक्ष डॉ. प्रो. अमरनाथ ने की । अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में उन्होंने युद्ध को असभ्यता की निशानी बताते हुए हमारी तथाकथित सभ्यता पर सवाल खड़े किए और कहा कि सरकारें शिक्षा और स्वास्थ्य के बजाय रक्षा के लिए कई गुना अधिक बजट आवंटित कर रही हैं, यह हमारे लिए चिंता का विषय है। दूसरे तकनीकी सत्र के वक्ता प्रेसिडेंसी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. वेद रमण पांडेय ने हिंदी कहानी के संदर्भ में विषय पर बोलते हुए कहा कि युद्ध मानव की नियति लिखने का कार्य करते हैं। विस्थापन, अलगाव और अवसाद किसी भी युद्ध की अंतिम परिणति गढ़ते हैं। स्कॉटिश चर्च कॉलेज की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. गीता दूबे ने हिंदी एवं अन्य भाषाओं में इस विषय पर लिखे उपन्यासों के हवाले से अपनी बात रखते हुए कहा कि युद्ध अंततः अमानवीयता, बर्बरता और आर्थिक मंदी को बढ़ावा देते हैं। जब तक दुनिया में कट्टरता, नस्लवादी सोच और जातीय घृणा की हिंसक प्रवृत्ति बनी रहेगी, युद्ध होते रहेंगे, इससे बचने का एकमात्र उपाय है, प्रेम की लौ को बचाए रखना। तीसरे सत्र में ‘युद्ध और शांति : हिंदी साहित्य के परिप्रेक्ष्य में’ विषय पर शिक्षकों, शोधार्थियों और विद्यार्थियों ने शोध-पत्र वाचन किया।
संगोष्ठी के अंत में विभाग के विद्यार्थियों ने डॉ. इबरार खान के निर्देशन में ‘मूक प्रहार’ लघु नाटक का मंचन किया। संगोष्ठी का संचालन विभागाध्यक्ष डॉ. विभा कुमारी, अनूप कुमार गुप्ता और डॉ. संजय राय ने किया। विभागाध्यक्ष डॉ. विभा कुमारी के धन्यवाद ज्ञापन से कार्यक्रम संपन्न हुआ।

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