कोलकाता। सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन द्वारा आयोजित हिंदी मेला में ‘वर्तमान सभ्यता और आदिवासी:साहित्य,समाज और संस्कृति’ विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद का आयोजन किया गया। पहले सत्र में अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए वरिष्ठ आलोचक रवि भूषण ने कहा कि पूंजीवादी सभ्यता प्रकृति से मनुष्य को विच्छिन्न कर रहा है और वह पृथ्वी पर संकट उत्पन्न कर धरती के अनमोल रत्नों को लूट रहा है। प्रसिद्ध कथाकार भगवानदास मोरवाल ने कहा कि आदिवासी समाज सबसे सभ्य समाज है और हमें इस समाज से संवाद स्थापित करना चाहिए। लेखक एवं आईपीएस अधिकारी मृत्युंजय कुमार सिंह ने कहा कि आदिवासी जनजाति को समझने और उनकी समस्याओं पर भी बात करने की जरूरत है। विद्यासागर विश्वविद्यालय के संथाली विभाग के प्रो. श्यामाचरण हेमब्रम ने कहा कि हमें अपनी भाषा को नहीं भूलना चाहिए क्योंकि जब हम भाषा भूल जाते हैं तब अपनी संस्कृति भी भूलते हैं। सिधो कानू बिरसा विश्वविद्यालय के संथाली विभाग के प्रो. डॉ ठाकुर प्रसाद मूर्मू ने कहा कि आदिवासी समाज पर औद्योगिक विकास के कारण खतरा बढ़ा है।
खिदिरपुर कॉलेज के हिंदी विभाग की प्रो. इतु सिंह ने कहा कि जिस प्रकार आदिवासी प्रकृति की पूजा करते हैं उसी तरह हमें भी प्रकृति से प्रेम करना चाहिए ताकि हम प्रकृति के दोहन से बच सकें। कॉलिम्पोंग के गोरूबथान कॉलेज के हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष दीपक कुमार ने कहा कि नदियों का सूखना, तालाबों का खत्म होना सिर्फ आदिवासियों के लिए ही नहीं मानवजाति के लिए चिंता का विषय है। साहित्य अकादमी,कलकत्ता पूर्वी क्षेत्र के सदस्य एवं आलोचक देवेंद्र देवेश ने कहा कि हमें आदिवासी साहित्य लेखन को प्रोत्साहित करना चाहिए और उसके अनुवाद पर भी ध्यान देना चाहिए।इस अवसर पर शिक्षा के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए प्रो. चंद्रकला पांडे और प्रो.अवधेश प्रधान को प्रो.कल्याणमल लोढ़ा-लिली लोढ़ा शिक्षा सम्मान से सम्मानित किया गया। प्रो.चंद्रकला पांडे ने कहा कि एक शिक्षक अपने जीवन में कई पीढ़ी को गढ़ने के दायित्व का निर्वाह करता है।प्रो. अवधेश प्रधान ने कहा कि यह शिक्षा सम्मान मेरे लिए आत्मसमीक्षा का अवसर भी है। हिंदी मेला का यह मंच एक सांस्कृतिक प्रतिरोध और हमारी पहचान का मंच है।द्वितीय सत्र की अध्यक्षता करते हुए मोहनदास नैमिशराय ने कहा कि आदिवासी समाज को हमें समझने की जरूरत है।आज की व्यवस्था ब्लैक लोगों की व्यवस्था नहीं करता। एक्टविस्ट हिमांशु कुमार ने कहा कि पूंजीपति आदिवासियों का शोषण कर रहे और यदि हम यह सोच रहे हैं कि यह शोषण सिर्फ आदिवासियों तक ही सीमित रहेगा और हम बच जाएंगे तो हम गलती कर रहे हैं।
प्रसिद्ध लेखिका मधु कांकरिया ने आदिवासियों की समस्या को भूमंडलीकरण से जोड़कर अपनी बात रखी।
डॉ गीता दूबे ने कहा कि हमलोग कच्चे माल की तरह अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए आदिवासियों का प्रयोग कर रहे हैं। तथा सभ्यता का एक शहरी पैमाना तैयार करके उसमें जबरन आदिवासियों को सभ्य बनाने की कोशिश कर रहे हैं जिससे हम उनसे उनकी पहचान छीन रहे हैं। युवा आदिवासी लेखिका पार्वती तिर्की ने आदिवासी जीवन दर्शन के आधार पर अपनी बातें रखी।
इस अवसर पर बीएचयू के शोधार्थी महेश कुमार, इलाहाबाद के वेदप्रकाश सिंह, हाजीपुर की प्रतिभा पराशर, विद्यासागर विश्वविद्यालय की उष्मिता गौड़ा और प्रकाश त्रिपाठी ने आलेख पाठ किया। रचनात्मक लेखन का प्रथम पुरस्कार शिलांग के रेमन लोंग्कू, द्वितीय पंकज सिंह और तृतीय गौतम कुमार साव को मिला। कार्यक्रम का सफल संचालन राहुल शर्मा, मधु सिंह, श्रद्धांजलि सिंह, पूजा गुप्ता ने किया। पहले सत्र का धन्यवाद ज्ञापन डॉ प्रीति सिंघी और द्वितीय सत्र का सुरेश शॉ ने किया।