रंग

डॉ. वसुंधरा मिश्र

रंग सिर्फ रंग है
जीवन से जुड़ जीवन में घुल जाते हैं
सुख बनकर मुस्कान में
दुख बनकर रुदन में
नृत्य बनकर थिरकन में
मोती बनकर सागर में
वर्ण बनकर शब्द में
सृष्टि चलती रहती धूरी पर
घुला श्वेत रंग सब रंगों में
अध्यात्म आत्मा से जुड़ा
ऋजु पथ का वाहक
तब का शोधक
रंग दिखा दे जीवन के चित्र
रंग रंग है।
गोरे काले श्याम चितकबरे
नीले बैंगनी गुलाबी पीले
रंगों का जीवन से मिलना
जीवन अर्थ सिखाता
सूखा गीला भारी हल्का
सब रंगों का खेल
भिन्न-भिन्न रूपों का रंग
पहचानो रंगी दीवारों को
सुर असुर देव नर किन्नर
सब रंगों का खेल।
जन-जन रंगे रंगों में
रंग बिरंगी बदरंगी राहों में
लगे हैं मन के दर्पण
पहचानो तो हरे गुलाबी
नहीं तो काले मतवाले
खेल दिखाते बलखाते से
रंग रंग के नाच नचाते
नई गति ताल छंद मृदंग भी बचते
उद्भव स्थिति संहार में घुलकर
प्रकृति और जीवन में खिलते
आओ अपने रंगों को एक सकारात्मक आकार में ढालें
आओ अपने रंगों को एक सकारात्मक आकार में ढालें
एक नया इतिहास रचने का संकल्प बनाएं रंग सिर्फ रंग ही तो हैं ।

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