नयी दिल्ली । जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ इस समय भारतीय न्याय व्यवस्था का सबसे चर्चित नाम। न्यायिक गलियारों में उनकी स्टार जैसी छवि है और इसके पीछे है कानूनी ज्ञान का असीम भंडार, बेबाक राय, सामाजिक मुद्दों के प्रति चेतना व संवेदना, कोर्टरूम में दोस्ताना रवैया और चेहरे पर हर समय खिली रहने वाली बाल सुलभ मुस्कान।
यूं शुरू हुआ न्याय की गलियों का सफर
वर्ष 1982 में दिल्ली विश्वविद्यालय से कानून में स्नातक की उपाधि लेने के साथ न्याय की गलियों में उन्होंने जो यात्रा आरंभ की थी, वह आज भारतीय न्याय व्यवस्था के शीर्ष पद तक पहुंच चुकी है। लगभग 40 वर्ष के दरमियान जस्टिस चंद्रचूड़ के व्यक्तित्व के विभिन्न पहलू देखने को मिलते हैं जो यह बताते हैं कि वह एक इंसान, वकील और जज के बीच बेहतरीन सामंजस्य बिठाने में न केवल सक्षम हैं, बल्कि वर्ष दर वर्ष अपनी इस अद्भुत काबिलियत को और समृद्ध भी करते रहते हैं।
कानून के लेक्चर सुन बदला मन
उनके पिता जस्टिस यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ सबसे लंबे समय तक भारत के चीफ जस्टिस रहे हैं। जब पिता सात वर्ष तक देश के चीफ जस्टिस और उसके पहले सुप्रीम कोर्ट व हाई कोर्ट के जस्टिस रहे हों, तो बेटे के लिए कानून को पेशे के तौर पर चुनना स्वाभाविक लग सकता है, लेकिन एेसा था नहीं। युवा डीवाई चंद्रचूड़ के लिए कानून में करियर बनाने की प्राथमिकता नहीं थी। वह तो प्रतिष्ठित सेंट स्टीफेंस कालेज में इकोनॉमिक्स आनर्स पढ़ रहे थे। दिल्ली स्कूल आफ इकोनॉमिक्स से परास्नातक कर इसी दिशा में आगे बढ़ने का इरादा भी था, लेकिन एक संयोग ने रास्ता ही बदल दिया।
द वीक के एक लेख के अनुसार दिल्ली विश्वविद्यालय के सौ वर्ष पूरे होने पर लिखी गई एक पुस्तक में खुद जस्टिस चंद्रचूड़ इस वाकये का उल्लेख करते हैं। किताब कहती है कि जस्टिस चंद्रचूड़ को इकोनॉमिक्स में परास्नातक की पढ़ाई के लिए एडमिशन मिलने में कुछ वक्त था तो वह कैंपस ला सेंटर में कानून के व्याख्यान सुनने पहुंच गए। अध्यापकों के पढ़ाने का तरीका इतना रुचिकर था कि उन्हें कानून की पढ़ाई रास आने लगी और यहीं से भारत के 50वें चीफ जस्टिस बनने की उनकी राह की शुरुआत मानी जा सकती है।
वर्ष 1979 में इकोनॉमिक्स का छात्र दिल्ली विश्वविद्यालय में कानून पढ़ने लगा और फिर परास्नातक करने हार्वर्ड विश्वविद्यालय पहुंचा। ज्यूरिडिकल साइंस में डाक्टरेट की उपाधि भी ली। देश लौटे, बांबे हाई कोर्ट में वकालत शुरू की। कानून इस कदर भा गया था कि 39 वर्ष की उम्र में ही सीनियर एडवोकेट का तमगा मिल गया। आमतौर पर बांबे हाई कोर्ट में 40 वर्ष से कम में सीनियर एडवोकेट का दर्जा किसी को मिलता नहीं है।
हिंदी को चुना था बतौर सहायक विषय
जस्टिस चंद्रचूड़ ने इकोनॉमिक्स आनर्स में सहायक विषय के रूप में हिंदी को चुना। उनका यह चुनाव बहुत काम आया जब वह वर्ष 2013 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस बने। कोर्टरूम में दोस्ताना व्यवहार का उदाहरण प्रस्तुत करने वाले जस्टिस चंद्रचूड़ वकीलों की सहजता के लिए हिंदी में भी बहस सुनने लगे। तीन वर्ष बाद सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस के तौर पर प्रोन्नत हुए डीवाई चंद्रचूड़ ने एक मुखर और सामाजिक मुद्दों से जुड़े जस्टिस की छवि गढ़ी है। दरअसल इसकी भूमिका उनके वकील के तौर पर कार्य करने के दौरान लिखी जा चुकी थी।
1997 में लड़ा था एचआइवी संक्रमित का केस
सुप्रीम कोर्ट आब्जर्वर के अनुसार, वर्ष 1997 में एक वकील के तौर पर उन्होंने एक ऐसे कामगार का केस लड़ा और जीता जिसे एचआइवी संक्रमित होने के कारण नियोक्ता ने आगे रोजगार देने से इनकार कर दिया था। महिलाओं से जुड़ी समस्याओं और मुद्दों पर भी बेहतर समझ का श्रेय वह जस्टिस रंजना देसाई को देते हैं। सामाजिक विषयों पर जस्टिस चंद्रचूड़ की समझ 1998 से 2000 तक एडिशनल सालिसिटर जनरल रहने और उसके बाद विभिन्न हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में न्याय देने के क्रम में जारी है।
बतौर जज उनके व्यक्तित्व का एक और दमदार पहलू है आदेश लिखने का। जस्टिस चंद्रचूड़ अब तक करियर में 513 आदेशों के ‘आथर’ रहे हैं। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में वह सबसे अधिक आदेश लिखने वाले जज हैं। 1,057 बेंच का हिस्सा रह चुके जस्टिस चंद्रचूड़ के प्रमुख केस और फैसलों से भी झलकता है कि वह समाज को सामने रखकर सोचते हैं।
मुंबई में जन्में जस्टिस चंद्रचूड़ को कानून और संगीत विरासत के तौर पर मिला है। हालांकि उनका परिवार मूलतः पुणे से है। उनकी मां प्रभा चंद्रचूड़ के आल इंडिया रेडियो पर गायन कार्यक्रम होते थे। पिता को भी शास्त्रीय संगीत में गहरी रुचि थी। जस्टिस चंद्रचूड़ को पुस्तकें पढ़ने का शौक है, लेकिन वह पाश्चात्य संगीत जगत में लोकगीतों के राकस्टार के नाम से ख्यात बाब डिलन को भी सुनते रहे हैं। समय के साथ वह अपने शौक को अपडेट भी करते रहे हैं और स्पेनिश भाषा के वायरल गाने ‘डेस्पासिटो’ को भी सुनते हैं।
कई ऐतिहासिक फैसला दे चुके हैं 50वें चीफ जस्टिस चंद्रचूड़
कोई भारत में हो और क्रिकेट न पसंद करे, ऐसा कम ही होता है। जस्टिस चंद्रचूड़ भी क्रिकेट पसंद करते हैं। सुनील गावस्कर और सचिन तेंदुलकर से होता हुआ आजकल विराट कोहली तक उनका फैनब्वाय मोमेंट इस खेल के साथ अपडेट होता रहा है। आम भारतीयों की तरह चाय से भी जस्टिस चंद्रचूड़ का गहरा नाता है। मशहूर है कि शाम के चार बजते ही वह बहस कर रहे वकीलों से पूछ लेते हैं कि क्या आपको चाय पीने की इच्छा नहीं हो रही है।
जस्टिस केएस पुत्तास्वामी बनाम यूनियन आफ इंडियाः आधार कार्ड की वैधता से जुड़े इस चर्चित मामले की सुनवाई कर रही पीठ में असहमति जताने वाले डीवाई चंद्रचूड़ अकेले जस्टिस थे। उन्होंने कहा था कि आधार को गैरसंवैधानिक तरीके से लागू किया गया है।
सबरीमाला मंदिर केसः इस धार्मिक आस्था से जुड़े मामले में उन्होंने कहा था कि 10 से 50 वर्ष की महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर रोक संवैधानिक नैतिकता का हनन है।
अयोध्या केसः देश के कानूनी इतिहास के सबसे बड़े फैसलों में से एक अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का फैसला देने वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच में भी जस्टिस चंद्रचूड़ शामिल थे। यह फैसला उन्होंने ही लिखा भी था।
निजता के अधिकार का मामलाः वर्ष 2017 के इस मामले में उन्होंने ही आदेश लिखा, जिसमें पीठ के फैसले के तहत कहा गया कि निजता संविधान में प्रदत्त अधिकार है।
धारा 377 का मामलाः इस केस में उन्होंने अलग से राय व्यक्त की थी और समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से मुक्त करार दिया था।
(साभार – दैनिक जागरण)