नयी दिल्ली । यदि कोई महिला विवाहित होने के बावजूद अपनी मर्जी के बगैर गर्भवती होती है तो मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के अंतर्गत इसे दुष्कर्म ही माना जाएगा। किसी विवाहित महिला को उसकी सहमति के बगैर छूना और उसके साथ यौन संबंध बनाना अपराध की श्रेणी में आता है, चाहे ऐसा करने वाला उसका विवाहित पति ही क्यों न हो। हम गर्भपात के अधिकार को सिर्फ विवाहित महिलाओं तक ही सीमित नहीं रख सकते। गर्भवती होने पर बच्चे को जन्म देना है या नहीं, यह अधिकार पूरी तरह सिर्फ स्त्री का है। यह स्त्री की स्वायत्ता और उसकी देह पर उसके संपूर्ण एकाधिकार का मामला है। ऊपर लिखी सारी बातें गुरुवार को एक केस के संबंध में फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट न कही हैं। जस्टिस डीवीई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने अबॉर्शन से जुड़े एक केस पर फैसला सुनाते हुए मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ़ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) संशोधन अधिनियम, 2021 के प्रावधानों की व्याख्या करते हुए उपरोक्त बातें कहीं
।हालांकि भारत में अभी भी मैरिटल रेप कानूनन अपराध नहीं है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी इस विषय पर लगातार उठाए जा रहे सवालों और सुप्रीम कोर्ट में दायर की जा रही याचिकाओं का स्पष्ट जवाब तो है। पीठ में जस्टिस चंद्रचूड़ के अलावा एएस बोपन्ना और जेबी पारदीवाला भी शामिल थे। तीन जजों की पीठ ने एकमत से ये फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट एक 25 साल की अविवाहित लड़की की याचिका पर सुनवाई कर रहा था। लड़की ने दिल्ली हाईकोर्ट में अपनी 24 हफ्ते की प्रेग्नेंसी को टर्मिनेट करने की अनुमति के लिए याचिका दायर की थी, जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट में 2021 में हुए संशोधन के तहत गर्भपात करवाने की अवधि को बढ़ाकर 24 हफ्ते कर दिया गया था, लेकिन मौजूदा प्रावधानों के तहत यह अधिकार सिर्फ तलाकशुदा, विधवा और कुछ अन्य श्रेणी की महिलाओं के लिए ही है। अविवाहित सिंगल महिलाओं के लिए अभी भी इस कानून में गर्भपात की अवधि 20 सप्ताह है, जिसे उक्त महिला ने पहले हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में सुनौती दी।
इस केस पर सुनवाई करते हुए जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, “रेप का अर्थ है बिना आपसी सहमति के यौन संबंध बनाना और विवाहित महिला भी रेप की इस परिभाषा के दायरे में आ सकती है। करीबी पार्टनर के द्वारा की जाने वाली हिंसा हमारे समाज का एक सच है। कोई भी प्रेग्नेंसी जो सहमति के विरुद्ध जबरन सेक्स के कारण हुई हो, वह रेप है।” भारतीय संविधान की धारा 375 में रेप को परिभाषित किया गया है, लेकिन रेप की इस परिभाषा के दायरे में मैरिटल रेप नहीं आता। यदि विवाह संस्था के भीतर कोई पुरुष अपनी पत्नी के साथ बलपूर्वक जबर्दस्ती करता है और उसकी इच्छा के विरुद्ध संबंध बनाता है तो वह महिला आईपीसी की किसी धारा के अंतर्गत रेप का मुकदमा दायर नहीं कर सकती। इसी साल दिल्ली हाईकोर्ट में मैरिटल रेप पर दायर की गई एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दोनों जजों की राय बिलकुल भिन्न थी। याचिकाकर्ता ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर करते हुए आईपीसी (भारतीय दंड संहिता) की धारा 375 के तहत मैरिटल रेप को अपवाद माने जाने को संवैधानिक रूप से चुनौती दी थी। सुनवाई के दौरान एक जज का मानना था कि विवाह के भीतर भी मर्जी के बगैर जबर्दस्ती संबंध बनाना रेप के दायरे में आता है और दूसरे जज का कहना था कि विवाह के भीतर बन रहे संबंधों को रेप के दायरे से अलग रखा जाना चाहिए। केंद्र सरकार ने भी 2017 में हाईकोर्ट के जवाब मांगने पर कहा था कि मैरिटल रेप को कानूनन अपराध के दायरे में रखने का नकारात्मक असर विवाह संस्था पर पड़ेगा। दुनिया के 150 देशों में रेप कानून के मुताबिक में मैरिटल रेप अपराध के दायरे में आता है और उसके लिए वैसी ही सजा का प्रावधान है, जो रेप के लिए है। दुनिया के 24 देशों में मैरिटल रेप को लेकर कोई स्पष्ट कानून नहीं है. 19 देशों ऐसे हैं, जहां मैरिटल रेप कानून जुर्म नहीं है। इथियोपिया, इंडोनेशिया, ब्रूनेई, जॉर्डन, म्यांमार, तंजानिया, फिलिस्तीन, श्रीलंका, ईरान, ईराक, सीरिया, जमैका, ओमान, जॉर्डन और नाइजीरिया जैसे देश उन्हीं 19 देशों की फेहरिस्त में शामिल हैं। जहां विवाह के भीतर पति के द्वारा की जा रही जबर्दस्ती किसी यौन अपराध की श्रेणी में नहीं आती. दुर्भाग्य से भारत भी दुनिया के उन 19 देशों की सूची में शामिल है।