रात की कालिमा में मैंने खिड़की के बाहर पलंग पर सोये सोये कुछ देखने की कोशिश की। गूलर के पेड़ से सटा हुआ था वह कब्रिस्तान। वहां कल ही एक कब्र दफनाई गई थी। सन्नाटे की चादर ओढ़े पूरा अंधेरा किसी चमगादड़ों की छाया से कम नहीं लग रहा था। मैं उस अंधेरे को पढने की कोशिश कर रही थी। वहाँ कोई सुराग नहीं मिल रहा था जिससे मैं कब्र में सोये व्यक्ति को देख सकूं। डर भी लग रहा था कि वह कहीं उठ के वहाँ घूमने न लग जाए।
क्या ऐसा होता है कि मरा हुआ आदमी मरने के बाद भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराता हो।
मैं जानती हूं कि वह कैंसर जैसी भयानक बीमारी से जूझ रहा था। क्या घर वालों के साथ वह भी अपने आप से ऊब चुका था? क्या वह वाकई में जीवन नहीं जीना चाहता था?
घर वालों के लिए भी उसकी अहमियत ख़त्म हो गई थी । अपनी जवानी में उसने मल्टीनेशनल कंपनियों में काम किया। अपने जीवन के स्वर्णिम दौर में ढेर सारा रुपया कमाया। अपनी पत्नी और बच्चों को सुरक्षा दी। सुख सुविधाएं दीं।
रोग लगने के साथ ही घर वालों के साथ बाहर वाले भी धीरे-धीरे उससे अलग होते चले गए। वह दुनिया में दस सालों से अलग-थलग रह रहा था। जीवन की सभी रंगीनियाँ उसकी नहीं रही। पत्नी भी साथ रहकर भी साथ नहीं रहती। वह चाह कर भी कुछ कह नहीं पाता। उसे इस बात का अहसास था कि वह अब उसका प्रेम भी टुकडों में बांट दिया गया है।
पत्नी का चेहरा भी उदासी को झेलते- झेलते यंत्रवत हो चला था। वह दूसरी लगने लगी थी। वह प्यार से नहीं, बोझिल नजरों से देखती। रूपयों की कमी न भी रही हो तो भी जीवन में जीवन नहीं बचा था। कहते हैं न जीते जी मरी हुई लाश की तरह जिंदगी घसीट रही थी।
आनंद फिल्म में राजेश खन्ना के अभिनय ने कैंसर रोगी के भीतर भी जान डाल दी थी। वह कितना खुश रहता था। अकेलेपन को भी जीता था। कैंसर कितना जानलेवा है न जीने देता है और न मरने देता है।
कभी-कभी लगता है कि आत्महत्या करना अच्छा है जिसमें एक बार ही पूरी दुनिया से छुटकारा।
खैर, मैं सोच रही थी कि कैसे एक व्यक्ति जीवन से मृत्यु और मृत्यु के बीच भी अपने आप को संतुलित करने का नाटक करता है। मरने के बाद किसने देखा।
उस कब्र में वही हँसता मुस्कुराता और सुंदर हैंडसम कबीर था जिसे मैं अक्सर खिड़की से देखा करती थी। वह रात कालिमा से भरी थी। धीरे-धीरे मेरी आंखें नींद से कब बोझिल हो गईं पता ही नहीं चला। खिड़की से आती धूप की पहली किरण ने मेरी खिड़की पर दस्तक दी। फिर उस दुनिया की हलचलें सुनाई पड़ने लगीं।